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वनदेवी यूपी के मऊ जिले में स्थित है। इस वनदेवी धाम को लोग देश में आस्था के केंद्र के रूप में पूजते हैं। कहते हैं। इस मंदिर में पुराणों में लिखित कई साक्ष्य हैं। त्रेता युग में यह स्थान आदिकवि महर्षि बाल्मिकी की तपोस्थली भी रही है। पुराणों में लिखित साक्ष्यो के अनुसार जहां महर्षि बाल्मिकी ने रामायण जैसे ग्रन्थ की रचना की। वहीं भगवान श्री राम की प्रजा द्वारा माता सीता पर सवाल खड़ा करने के बाद लक्ष्मण ने इसी वन में माता सीता को छोड़ा था। तब महर्षि बाल्मिकी ने सीता को अपनी कुटीया में जगह दी थी और इसी स्थान पर माता सीता ने अपने दोनों पुत्र लव और कुश को जन्म दिया था। जिसके बाद माता सीता की पहचान समाज से छिपाने के लिए महर्षि बाल्मिकी ने सीता का नाम वनदेवी रख दिया। इसी स्थान पर वनदेवी के रुप में (मां सीता) और मां वनदुर्गा की एक साथ प्रतिमा स्थापित है। पहले यह स्थान एक घना जंगल हुआ करता था। जिसका अवशेष यहां आज भी विघमान है इस वनदेवी धाम के आस-पास जंगल ही जंगल है। आज पूरे देश में यह मंदिर आस्था का केन्द्र माना जाता है। यह ऐसा मंदिर है जहां मांगी गई मुराद खाली नहीं जाती। यहां विवाह के बाद जोड़े दर्शन को आते हैं। मां के दर्शन से महिलाओं को अखण्ड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है।     महर्षि बाल्मिकी ने माता सीता का नाम बदलकर वनदेवी रख दिया जिससे किसी को उनकी पहचान न हो सके। इस स्थान को जिले में पौराणिक स्थल के रुप में जाना जाता है। किवदन्तियों के अनुसार हजारों वर्ष पहले यहां पर खुदाई के दौरान धरती के अन्दर से एक सिंहासन निकला जिस पर दो मूर्तियां बनी थी, जिसकी चर्चा पूरे इलाके में फैल गयी थी तभी एक ब्राम्हण को स्वपन्न आया कि जो सिंघासन प्रकट हुआ है उस पर वनदेवी और वनदुर्गा की मूर्ति है जिसको स्थापित करके पूजा अर्चना करना है इससे समाज का कल्याण होगा।

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