Kumbh Rashi Mein Surya Shani Ki Yuti: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और शनि में पिता पुत्र का संबंध हैं। लेकिन यह संबंध जटिल है, लेकिन दोनों के विचार मतभेद का कारण बनते हैं। सूर्य जहां आत्मबल, ऊर्जा और प्रकाश के प्रतीक है, वहीं शनि कर्म, अनुशासन और अंधकार के, इससे सूर्य शनि की युति प्रकाश और अंधकार के संयोग के रूप में समझी जाती है। इसी कारण सूर्य शनि की युति लोगों पर अलग-अलग प्रभाव डालती है।
यह सूर्य शनि युति जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित कर सकती है। विशेष रूप से पिता पुत्र और पति पत्नी के संबंध प्रभावित हो सकते हैं। इसके कारण स्वास्थ्य, मानसिक तनाव और नींद से जुड़ी परेशानियां भी हो सकती हैं। आइये जानते हैं कुंडली के अलग-अलग भावों में सूर्य शनि की युति का क्या असर पड़ेगा।
12 राशियों के आधार पर जन्मकुंडली में 12 भावों की रचना की गई है। प्रत्येक भाव जीवन के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता है और किसी ग्रह का गोचर और युति एक ही समय में सभी राशियों के अलग-अलग भावों को प्रभावित करता है। आइये जानते हैं अलग-अलग भावों पर सूर्य शनि युति का क्या प्रभाव होगा …
कुंडली का पहला भाव लग्न कहलाता है। यह स्थान व्यक्ति के शरीर की बनावट, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा के रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
पहले भाव में सूर्य-शनि की युति शुभ नहीं मानी जाती। यहां सूर्य आपको आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है, वहीं शनि इस आत्मबल को प्रभावित करता है।
लेकिन सूर्य मजबूत है तो गंभीर बीमारियों से छुटकारा भी इस समय मिल सकता है। अगर आप इस युति से प्रभावित हैं आत्मकेंद्रित हो सकते हैं। इस समय आपको जीवन में सच्चे मित्र या शुभचिंतक का मिलना मुश्किल हो सकता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दूसरा भाव धन भाव होता है। यह व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दायीं आंख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
जिस व्यक्ति की कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य-शनि की युति हो रही है, यह ग्रह बातचीत के दुष्प्रभाव के कारण संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि कुछ मामलों में यह लाभदायक हो सकता है। जैसे सुख सुविधा, धन संपत्ति बढ़ सकती है। वहीं स्वास्थ्य संबंधी कुछ समस्याएं भी लेकर आ सकता है।
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जन्मकुंडली का तीसरा भाव जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
इस भाव में सूर्य शनि की युति शुभ परिणाम देती है और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है, जो जीवन में लगातार प्रगति की राह तैयार करती है। इस भाव में सूर्य शनि की युति राजनीतिक क्षेत्र में सफलता दिलाती है। हालांकि, परिवार में भाई-बहनों के साथ मतभेद हो सकते हैं।
कुंडली का चौथा स्थान मातृ स्थान है। यह स्थान मातृसुख, गृह सुख, वाहन सुख, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र, छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
चौथे भाव में सूर्य शनि की युति अशुभ मानी जाती है। इस स्थिति में प्रभावित राशि के व्यक्ति को परिवार से दूर रहना पड़ सकता है। साथ ही माता-पिता के साथ बहस और मनमुटाव से घर का वातावरण तनावपूर्ण हो सकता है। हालांकि वैवाहिक जीवन में जीवनसाथी का सहयोग बना रहेगा। स्वास्थ्य समस्याएं और मानसिक तनाव भी ला सकता है।
कुंडली का 5वां भाव पुत्र भाव और ज्ञान का कारक होता है। यह संतति, बच्चों से मिलने वाले सुख, विद्या बुद्धि, उच्च शिक्षा, विनय-देशभक्ति, पाचन शक्ति, कला, रहस्य, शास्त्रों में रूचि, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यश, नौकरी परिवर्तन आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
5वें भाव में सूर्य शनि की युति के प्रभाव से लक्ष्य को लेकर बड़े फैसले ले सकते हैं। हालांकि, शिक्षा और वित्तीय मामलों में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। यह युति बच्चों और विवाह से संबंधित समस्याओं का कारण बन सकती है।
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कुंडली का छठा भाव शत्रु या रोग स्थान है। इससे जातक के शत्रु, रोग, भय, तनाव, कलह, मुकदमे, मामा-मौसी का सुख, नौकर-चाकर, जननांगों के रोग आदि का पता चलता है।
इस भाव में सूर्य शनि की युति शुभ मानी जाती है। यह आपको अच्छी नौकरी, जीवन में सफलता और प्रेम संबंधों में स्थायित्व प्रदान करती है। हालांकि, इस युति के दौरान क्रोध और असंतोष की भावना भी बढ़ सकती है। स्वास्थ्य समस्याओं जैसे चिंता और अनिद्रा का खतरा रहता है।
कुंडली का 7वां भाव विवाह सुख, शैय्या सुख, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार, पार्टनरशिप, दूर के प्रवास योग, कोर्ट कचहरी प्रकरण में यश-अपयश आदि का ज्ञान का परिचायक है। यह विवाह स्थान कहा जाता है।
विवाह स्थान पर सूर्य और शनि की युति का प्रभाव शनि के शुभ नक्षत्र में होने पर सूर्य के नकारात्मक प्रभाव को कम करता है। लेकिन वैवाहिक जीवन में समस्याएं और पारिवारिक कलह की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
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कुंडली का 8वां भाव मृत्यु स्थान माना जाता है। इससे आयु निर्धारण, दु:ख, आर्थिक स्थिति, मानसिक क्लेश, जननांगों के विकार, अचानक आने वाले संकटों का पता चलता है।
इस स्थान में सूर्य शनि की युति जीवन में गहरे आध्यात्मिक और व्यक्तिगत बदलाव ला सकती है। हालांकि करियर में समस्याएं, नौकरी पाने में देरी और प्रमोशन में रूकावटें भी हो सकती हैं।
कुंडली का 9वां भाव भाग्य स्थान कहा जाता है। यह भाव आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, बुद्धिमत्ता, गुरु, परदेश गमन, ग्रंथपुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि का संकेत देता है।
भाग्य स्थान पर सूर्य और शनि की युति सफलता-विफलता, दोनों का कारक हो सकती है। इस दौरान आपको विदेश यात्रा के अवसर मिल सकते हैं और आपकी कार्यक्षमता में सुधार हो सकता है। हालांकि, सामाजिक कार्यों में असफलता की आशंका रहती है।
कुंडली का 10वां भाव कर्म स्थान होता है। इससे पद-प्रतिष्ठा, बॉस, सामाजिक सम्मान, कार्य क्षमता, पितृ सुख, नौकरी व्यवसाय, शासन से लाभ, घुटनों का दर्द, सासू मां आदि का पता चलता है।
कर्म स्थान पर सूर्य शनि की युति करियर में मिलेजुले परिणाम देती है। जहां एक ओर यह अच्छी नौकरी और उन्नति के अवसर प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर करियर से संबंधित उलझनें और अस्थिरता भी बढ़ा सकती है।
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कुंडली का 11वां भाव लाभ भाव होता है। इससे मित्र, बहू-जमाई, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके, पिंडली के बारे में पता चलता है।
लाभ भाव में सूर्य शनि की युति वित्तीय लाभ दिलाती है, लेकिन आप सामाजिक कार्यों से दूर रह सकते हैं। इसके अलावा शनि सूर्य की युति के कारण मां के स्वास्थ्य को लेकर चिंता बनी रह सकती है।
कुंडली का 12वां भाव व्यय स्थान माना जाता है। इससे कर्ज, नुकसान, परदेस गमन, संन्यास, अनैतिक आचरण, व्यसन, गुप्त शत्रु, शैय्या सुख, आत्महत्या, जेल यात्रा, मुकदमेबाजी का संकेत मिलता है।
व्यय स्थान में सूर्य शनि युति मानसिक अशांति और जीवन से निराशा का अनुभव करा सकती है। इस दौरान आपको अपनी आध्यात्मिकता पर ध्यान देने की जरूरत होती है।
Updated on:
06 Feb 2025 08:59 am
Published on:
06 Feb 2025 06:00 am