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मिंटो हॉल की नींव वर्ष 1909 में रखी गई थी। जानकारों के मुताबिक वर्ष 1909 में भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड मिंटो भोपाल आए हुए थे। उन्हें तब के गेस्ट हाउस (मौजूदा राजभवन) में रुकवाया गया। वायसराय वहां की व्यवस्थाओं से काफी नाराज हुए इसके बाद तत्कालीन नवाब सुल्तान जहां बेगम ने आनन-फानन में मिंटो हॉल बनवाने का निर्णय लिया और लॉर्ड मिंटो से ही उसकी नींव रखवाई। बताया जाता है कि वायसराय को खुश करने के लिए ही इसका नाम मिंटो हॉल रखा गया था। नवाबों के शहर भोपाल में वैसे तो कई हेरिटेज इमारतें हैं, पर एक इमारत है जो कभी यहां आने वाले मेहमानों की आरामगाह हुआ करती थी। जैसे-जैसे समय बीता, इस इमारत का उपयोग भी बदलता रहा। कभी ये भोपाल राज्य की सेना का मुख्यालय रहीं तो कभी होटल और विधानसभा के रूप में चमचमाती रही, पर आज इसकी दशा दयनीय है। इस ऐतिहासिक इमारत के निर्माण की आधारशिला सुल्तानजहां बेगम ने 12 नवंबर 1909 को रखी थी, पर इसे बनने में 24 साल लग गए। इतनी भव्य इमारत के निर्माण का खर्च तब मात्र तीन लाख रुपए था। इसके मुख्य आर्किटेक्ट एसी रोवन थे, जिन्होंने इस इमारत को आलीशान बनाने की चुनौती ली थी। कहा जाता है कि इसका आकार लॉर्ड पंचम के मुकुट के समान है। मिंटो हॉल को बनाने के लिए एक अनूठी सोच थी। सुल्तानजहां चाहती थीं कि लालकोठी के पास एक ऐसा भव्य भवन हो, जहां सभी सुविधाएं हों और यहां मध्यप्रदेश आने वाले वीवीआईपी मेहमान आराम फरमा सकें। बताते हैं कि इस भवन के निर्माण की अधिकांश सामग्री इंग्लैंड से मंगवाई गई थी। इसमें सीमेंट से लेकर मिट्टी तक ब्रितानी लगी हुई है। नवाब हमीदुल्ला ने इस इमारत का फर्श संगमरमर से बनवाया था, जबकि उनकी बड़ी बेटी आबिदा बेगम को ये फर्श इतना पसंद आया कि उन्होंने इसे स्केटिंग का मैदान बनवा दिया था। बाद में यहां पुलिस मुख्यालय रहा। फिर 1946 में इंटर कॉलेज, सितंबर 1956 में विधानसभा भवन भी चला।

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