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सरपंच बनी शिक्षा की मिसाल… घर-घर जाकर बच्चों को भेज रहीं स्कूल, कॉपी-पेन देकर पढ़ाई के लिए कर रहीं प्रेरित

CG News: बस्तर की सरपंच तामेश्वरी कश्यप घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल भेजने की प्रेरणा दे रही हैं। उनकी इस पहल से शिक्षा के प्रति ग्रामीणों में जागरूकता बढ़ी है।

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बस्तर की सरपंच बनी शिक्षा की मिसाल (photo source- Patrika)

बस्तर की सरपंच बनी शिक्षा की मिसाल (photo source- Patrika)

बस्तर ज़िले की घटकवाली ग्राम पंचायत शिक्षा और सामाजिक जागरूकता के लिए समर्पण की मिसाल पेश कर रही है। गांव की मुखिया तामेश्वरी कश्यप ने बच्चों की शिक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाया है और एक अनोखी पहल शुरू की है- वह खुद घर-घर जाकर उन बच्चों से मिलती हैं जो रेगुलर स्कूल नहीं जाते।

तामेश्वरी न सिर्फ़ बच्चों को स्कूल जाने के लिए बढ़ावा देती हैं, बल्कि उन्हें नोटबुक, पेन और दूसरी ज़रूरी चीज़ें भी देती हैं ताकि कोई भी बच्चा पैसे की कमी की वजह से पढ़ाई से दूर न रहे। उनकी कोशिशें शिक्षा को लेकर एक नए नज़रिए और गांव के समाज में अच्छे बदलाव की निशानी बन गई हैं।

गांव से उठी शिक्षा की नई पहल

जिला हेडक्वार्टर से करीब 10 किलोमीटर दूर घाटकवाली ग्राम पंचायत में तीन प्राइमरी स्कूल और एक सेकेंडरी स्कूल है, जिसमें कुल 224 बच्चे पढ़ते हैं। सरपंच तामेश्वरी कश्यप कहती हैं, "शिक्षा जीवन में सफलता का रास्ता बनाती है। जब तक हर बच्चा शिक्षित नहीं होगा, समाज का विकास अधूरा रहेगा।" उनका लक्ष्य यह पक्का करना है कि पंचायत का हर बच्चा रेगुलर स्कूल जाए, ताकि कोई भी शिक्षा से वंचित न रहे।

हर सप्ताह होती है शिक्षा की समीक्षा

ग्राम पंचायत एजुकेशन कमेटी हर हफ़्ते स्कूलों का इंस्पेक्शन करती है ताकि स्टूडेंट की अटेंडेंस और पढ़ाने की क्वालिटी का रिव्यू किया जा सके। स्कूल न आने वाले बच्चों की लिस्ट बनाने के बाद पेरेंट्स से पर्सनली कॉन्टैक्ट किया जाता है। कमेटी ने यह भी ज़रूरी किया है कि टीचर रोज़ाना प्रार्थना के समय बच्चों के साथ ग्रुप फ़ोटो अपलोड करें ताकि अटेंडेंस पर नज़र रखी जा सके। इसके अलावा, ग्राम सभा हर साल अच्छे नंबर लाने वाले स्टूडेंट्स को कैश प्राइज़ और सर्टिफिकेट ऑफ़ ऑनर देकर इनाम देती है।

गांव की शिक्षा व्यवस्था में आया बदलाव

घटकवाली सेकेंडरी स्कूल के हेड टीचर मनोज साव बताते हैं कि जब से गांव की काउंसिल लेवल की एजुकेशन कमिटी बनी है, बच्चों की अटेंडेंस में काफी सुधार हुआ है। अब, लगभग 100% बच्चे रेगुलर स्कूल आते हैं। पेरेंट्स भी एजुकेशन को लेकर ज़्यादा सीरियस हो गए हैं। इस पहल से न सिर्फ एजुकेशन का लेवल मजबूत हुआ है, बल्कि गांव के समाज में मिलकर ज़िम्मेदारी और सहयोग की भावना भी बढ़ी है।