Wildlife के असली हीरो- episode 3: चौकाने वाली कहानियां
MP News: मध्य प्रदेश की वाइल्डलाइफ दुनियाभर को आकर्षित करती है। खासतौर पर वाइल्डलाइफ लवर्स इसके दिवाने हैं। सैकड़ों प्रजातियों के वन्य जीवों का घर एमपी के ये जंगल बेहद महफूज माने जाते हैं। ह्यूमन लाइफ से पूरी तरह दूर घने-गहरे जंगलों की इस विरासत को सहेजने में सैकड़ों चेहरे हमेशा अलर्ट मोड में रहते हैं… ताकि इनका संरक्षण किया जा सके। इन चेहरों में आज सबसे खास होने वाला है patrika.com की सीरीज Wildlife के असली हीरो का तीसरा एपिसोड… क्योंकि आज हम जानेंगे वाइल्डलाइफ के उन हीरोज की रियल लाइफ कहानियां…जिन्हें जंगलों, वन्य जीवों को बाहरी दुनिया से बचाने अपनी जान हथेली पर रखकर चलना होता है।
ये खतरा वन्य जीवों से ज्यादा उन अपराधियों का है, जो कभी भी उनकी सांसें छीन सकते हैं। कहना होगा कि अवैध मानवीय गतिविधियों का विरोध करने वाले कई वनकर्मियों ने अपनी जान तक गंवाई है। फिर बात चाहे माइनिंग की हो, पेड़ों को काटने की या फिर वन्य जीवों के शिकार की। इन असली हीरोज से जब हमने बात की तो ऐसे किस्से भी सामने आए, जिन्हें सुनकर हैरानी हुई, तो वहीं महिला वनकर्मचारियों के रौंगटे खड़े करने वाली घटनाएं महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर सवाल भी उठाती हैं… आप भी पढ़ें Wildlife के असली हीरो… का Episode 3
MP News: क्या आपने कभी सोचा है कि यदि जंगल न रहे..तो क्या होगा? क्योंकि इनके बिना हमारी सांसें तक थम जाएंगी.. इनके हरे-भरे साये हमें रोमांच और जोश से भर देते हैं… क्योंकि इनकी सुरक्षा का जिम्मा है फॉरेस्ट गार्ड, डिप्टी रेंजर, रेंज ऑफिसर के हाथ में... ये ऐसे ओहदे हैं, जिन पर बैठे वनकर्मियों को वाइल्डलाइफ की सुरक्षा के लिए कदम-कदम पर खतरों से जूझना होता है, लेकिन जान जाने का जोखिम भी इन्हें रोक पाने की जुर्रत नहीं कर पाता। कुछ भी करने को तैयार ये वनकर्मी अपराधियों की साजिश का शिकार भी होते हैं… तो कभी अपराधियों को पकड़कर ही दम लेते हैं... दर्द और साहस से भरी ये सच्ची कहानियां पढ़कर, सुनकर क्या आप भी बनना चाहेंगे फॉरेस्ट ऑफिसर...?
-patrika- एक फॉरेस्ट गार्ड के रूप में आपको क्या करना होता है, क्या जिम्मेदारियां हैं आपकी
-Ans- जंगल की निगरानी करनी होती है, वनों की कटाई से लेकर वन्य जीवों की सुरक्षा के साथ ही बिजली लाइन कहीं है तो उसकी भी लगातार निगरानी रखनी होती है कि कहीं कोई वायर तो नहीं लगा रहा, इसके लिए गांव वालों की मदद लेनी पड़ती है।
-patrika- इन जिम्मेदारियों को निभाते हुए आपको किन चुनौतियों का सामना करना होता है…?
-Ans- यहां सबसे बड़ा चैलेंज उस जमीन को बचाना होता है, जहां वन विभाग की ओर से पौधारोपण करवाया गया हो। जंगलों के आसपास के ग्रामीण लोग इन पौधारोपण वाले स्थानों पर मवेशियों को चरने के लिए छोड़ देते हैं। फिर भले ही फैंसिंग लगाई गई हो, वो फैंसिंग तोड़ने से भी नहीं चूकते। इस दौरान उन्हें समझाना बहुत मुश्किल होता है। वो समझना ही नहीं चाहते…। जबकि हमारे पास करीब 30-50 सेक्टर का एक बेल्ट होता है जंगल में जिसे हमें संरक्षित करना है।
2008 से मैं वन विभाग की ड्यूटी कर रहा हूं। कई बार परिवार से मिलने के लिए लंबा इंतजार भी करना होता है। लेकिन वन और वन्य जीवों की सुरक्षा पहली ड्यूटी है।
-धनकुमार चौधरी, फॉरेस्ट गार्ड, छिंदवाड़ा।
-patrika- एज ए फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर आपके क्या कर्तव्य हैं, आपके वर्क के बारे में बताएं?
-Ans- हम लोग वनक्षेत्र पाल हैं, वन क्षेत्र अधिकारी के पद पर पदस्थ होते हैं। इन्हें फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर कहा जाता है। हमारा काम वनों के साथ ही वन्य जीवों का संरक्षण, रेसक्यू, उनकी देखभाल करना शामिल है।
-patrika- 13 साल से आप इस फील्ड में हैं, आपकों किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
-Ans- सबसे बड़ा चैलेंज होता है वनों की सुरक्षा। क्योंकि जंगल खुला खजाना हैं… सभी को वन्य क्षेत्र बेहद सुविधाजनक लगते हैं। किसी को लकड़ी लानी है, किसी को अवैध कटाई कर बेचना है, किसी को वन्यजीवों का शिकार कर उनके अंग बेचकर पैसा कमाना है, कोई अंधविश्वास जैसे कृत्यों धन वर्षा आदि के लिए खास तौर पर टाइगर, चीता आदि के नाखून, बाल, खाल, मूछों के बालों से जल्दी सफलता, धन वर्षा कराने आदि के लिए शिकार करते हैं।
यहां सुनें अंधविश्वास जैसे- सफलता और धनवर्षा की कहानी, अपराधी पकड़ने जब बदलना पड़ता है भेष-
-patrika- फॉरेस्ट गार्ड के रूप में आप क्या-क्या करते हैं?
Ans-- मैं 13 साल से wildlife की सुरक्षा कर रहा हूं। वन सुरक्षा, वन्य जीवों की सुरक्षा के साथ ही आसपास के ग्रामीणों को भी इसके लिए तैयार करना है, ताकि उनका सहयोग भी हमें मिले।
-patrika- इन 13 साल के एक्सपीरियंस के बारे में बताएं..
-Ans- इन 13 साल में मैंने कई वन्य जीवों का रेस्क्यू किया था। अवैध शिकार के 4-5 केस मेरे हाथ से गुजरे हैं। एक जंगली सूअर का शिकार करने वालों को हमने 2015 में पकड़ा था, जिन्हें 2018 में सातों अपराधियों को सजा हुई थी।
-patrika- इस काम में तो बड़ा जोखिम है... जान भी जा सकती है, अपराधियों का क्या भरोसा, क्या कहना चाहेंगे?
-Ans- हां रिस्क तो रहता है, क्योंकि शिकारियों के पास तलवारें, बंदूकें अन्य तेज धारदार हथियार भी रहते हैं। लेकिन हमारे पास हथियार के नाम पर अपनी सुरक्षा के लिए कुछ भी नहीं होता। फिर वे जानवर से खतरे की बात हो या फिर अपराधियों से।
यहां सुनें फॉरेस्ट गार्ड सौरभ सिंह चौहान से बातचीत का पूरा ऑडियो-
-एक रिपोर्ट के मुताबिक एमपी के जंगलों में पेड़ों की अवैध कटाई के 776 मामले सामने आ चुके हैं
- एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां 2 हजार से भी ज्यादा मामले अतिक्रमण के दर्ज किए गए हैं। एमपी में वन क्षेत्र और फॉरेस्ट कवर में कमी देखी गई है, यही कमी अतिक्रमण का कारण बनी। 2019 से 2023 के बीच एमपी करीब 408.56 स्कवायर किलोमीटर वन क्षेत्र खो चुका है। ये आंकड़ा दर्शाता है कि अतिक्रमण एमपी के जंगलों की बड़ी समस्या है।
-वन कर्मियों पर वन्यजीवों के हमलों और अपराधियों असामाजिक तत्वों द्वारा उनकी हत्याओं के मामले भी सामने आते रहते हैं।
-एमपी के 95000 वर्ग किमी वन क्षेत्र में फॉरेस्ट गार्ड की कमी है, यहां एक गार्ड औसतन 30-50 सेक्टर की जिम्मेदारी संभाल रहा है।
- यहां हर साल औसतन 400 से ज्यादा वन्यजीव अपराध दर्ज किए जाते हैं। इन मामलों में 70% मामले अंधविश्वास या अवैध शिकार से जुड़े होते हैं।
- बड़ी खुशखबरी भी है, कि महिला फॉरेस्ट ऑफिसर्स की संख्या लगातार बढ़ रही है। लेकिन जेंडर बायस, सामाजिक नजरिए से अब भी उन्हें लड़ना पड़ता है।
-सबसे बड़ी खुशखबरी ये कि एमपी के जंगलों में इन वनकर्मियों की मेहनत रंग लाती है, इस बार भी न केवल टाइगर की संख्या बढ़ी है, बल्कि लेपर्ड के साथ ही अन्य वन्य जीवों की संख्या में भी लगातार इजाफा ही दर्ज किया जा रहा है।
-patrika- वन्य प्राणियों और वनों की रक्षा करना एक बड़ी जिम्मेदारी है, आप क्या-क्या करती हैं?
-Ans- हमारे अंडर जो फील्ड है, उस क्षेत्र की सुरक्षा का सारा जिम्मा हमारा होता है। इनकी निगरानी करते हैं। आपराधिक मामलों में अपराधियों के बयान लेना, उनके खिलाफ मामले दर्ज करवाना, पूरे प्रकरण की जांच करते हुए रिपोर्ट तैयार कर वरिष्ठ अधिकारियों को सौंपना भी हमारे दायित्व में आता है।
-patrika- ये दायित्व खतरे से खाली नहीं हैं, इस दौरान आपको किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
-Ans- अपराधी हम पर हावी होने की कोशिश करते हैं, अपशब्द कहते हैं, लड़ाई-झगड़े की नौबत तक आ जाती है।
-patrika-इस दौरान आप कैसे मैनेज करती हैं?
-Ans- स्थानीय बीट गार्ड की मदद लेते हैं, कभी परिचित ग्रामीणों जैसे सरपंच, समिति के अध्यक्ष के सहयोग से प्रकरण निपटाने की कोशिश करते हैं। कहीं बहुत ज्यादा जरूरत लगती है, तो स्थानीय पुलिस की भी मदद ली जाती है।
-patrika- इस फील्ड में कभी आपको एक महिला होने के नाते कभी लगा कि काश आप भी पुरुष होतीं…?
-Ans- कई सारी चीजें ऐसी झेलनीं पड़ीं… जब हम पर आरोप लगाया जाता है कि तुमने ऐसे किया… तब लगता है, ये ही लोग ठीक हैं… इनसे कोई नहीं पूछता कि कहां गए थे, किसके साथ गए थे। ग्रामीण भी कई बार आपके चरित्र पर ही सवाल उठाते हैं। परिवार से लेकर कार्यस्थल तक बहुत कुछ झेलना पड़ता है।
-patrika- क्या ऑफिसर का व्यवहार भी महिला-पुरुष के साथ भेदभाव वाला रहता है, आप क्या कहना चाहेंगी?
-Ans- हां कई ऑफिसर्स ऐसे होते हैं, जो भेदभाव करते हैं। कई बार ये भेदभाव कास्ट की वजह से भी हमें झेलना पड़ता है। कुछ तो इस कदर हावी होने की कोशिश करते हैं कि वो मौका ढूंढ़ते हैं कि कब नीचा दिखाया जाए। लेकिन सब ऑफिसर्स ऐसे नहीं होते।
-patrika- नई जनेरेशन की युवतियां इस फील्ड में आना चाहती है, आप क्या मैसेज देना चाहेंगी?
-Ans- यही कहूंगी कि हम किसी भी शासकीय क्षेत्र की नौकरी में आ रहे हैं, तो उस फील्ड की चुनौतियों को स्वीकारते हुए काम करना पडे़गा, तभी काम कर पाएंगे।
यहां सुनें डिप्टी रेंजर भलावी से बातचीत का ऑडियो-
Published on:
22 Oct 2025 04:42 pm
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