फोटो- सोशल मीडिया
जयपुर। भले ही अब भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध हास्य कलाकार गोवर्धन असरानी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वे हमेशा जयपुर के लोगों की यादों में बसे रहेंगे।
बहुत कम लोगों को मालूम है कि असरानी का जयपुर की सिंधी कॉलोनी में पैतृक घर है। जहां पर उन्होंने अपने दोस्तों के साथ शुरुआती संघर्ष के दिनों को बिताया है। ऐसे में असरानी का मुंबई से जयपुर आना-जाना लगा रहता था।
असरानी की रंगमंच की शुरुआत जयपुर से हुई थी। राजस्थान के सिने जगत के कई कलाकारों ने कहा कि असरानी होना इतना आसान नहीं है, क्योंकि राजस्थान के लिए उनका दिल हमेशा धड़कता रहता था। जयपुर के बुलावे पर आने में असरानी जरा भी देर नहीं किया करते थे।
असरानी का जन्म 1 जनवरी 1941 को जयपुर में हुआ था। असरानी के पिता भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से आकर जयपुर में बस गए और कारोबार शुरू किया। हालांकि परिवार चाहता था कि असरानी भी व्यापार संभालें, लेकिन उनका मन बचपन से ही उन्हें अभिनय की ओर खिंचता था। अभिनय के जुनून ने असरानी को घर छोड़कर मुंबई पहुंचा दिया।
असरानी ने जयपुर के सेंट जेवियर्स स्कूल से पढ़ाई की और राजस्थान कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। सिर्फ 15 साल की उम्र में उन्होंने जयपुर आकाशवाणी केंद्र में वॉइस टेस्ट दिया, जिसमें वे सफल रहे। यहीं से उनके करियर की शुरुआत हुई। साल 1967 में फिल्म हरे कांच की चूड़ियां से असरानी ने बॉलीवुड में डेब्यू किया था।
23 नवंबर 2024 को अजमेर में आयोजित सिंधी मेले में जब असरानी ने फिल्म शोले का यह डायलॉग हमारी इजाजत के बिना यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता है.. बोला तो लोगों ने जमकर ठहाके लगाए। असरानी ने कहा था कि किसी भी देश में आपने सिंधी भिखारी नहीं देखा होगा। यह बयान उनके समुदाय के परिश्रम और आत्मनिर्भरता पर गर्व का प्रतीक था।
असरानी की जयपुर में एक एक्टिंग इंस्टीट्यूट खोलने की इच्छा थी। उन्होंने मीडिया के समक्ष भी इस ख्वाहिश को जाहिर किया था। उन्होंने कहा था कि जयपुर के कलाकारों में हुनर की कमी नहीं है। उन्हें बस तराशने की जरूरत है। हालांकि उनकी यह हसरत अधूरी रह गई।
असरानी का अभिनय कला की उस परंपरा का हिस्सा था, जो जीवन की थकान में मुस्कुराने का सबक देती है। वे हर किरदार में आम आदमी की भोली-भाली सूरत लेकर आते थे।
कभी घबराया हुआ बाबू, कभी चालाक, कभी डरपोक जेलर, और दर्शक उनसे भावनात्मक रिश्ता जोड़ लेते थे। असरानी ने न केवल हिंदी बल्कि गुजराती और तेलुगु फिल्मों में भी यादगार काम किया। सिनेमा की दुनिया में उन्होंने हास्य को मर्यादा और संवेदना से जोड़ा।
असरानी ने अपने अभिनय से हिंदी फिल्मों में हंसी की ऐसी लकीर खींची, जो पीढ़ियों तक मिटने वाली नहीं। वह केवल एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि हंसी के शिल्पी थे, जिन्होंने हर किरदार में जीवन का एक उजला रंग भरा।
सत्तर और अस्सी के दशक के दौर में, जब फिल्मी परदे पर त्रासदी और एक्शन का साया गहराया था, असरानी ने सहजता, संवादों और चेहरे की भावनाओं से दर्शकों के मन में एक जगह बनाई।
उनकी हर मुस्कान में सादगी थी, हर ठहराव में अभिनय का गाढ़ा रंग। शोले फिल्म का उनका मशहूर संवाद हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं हिंदी सिनेमा के इतिहास में हास्य का सबसे जीवंत प्रतीक बन गया। यह संवाद आज भी सुनने भर से चेहरों पर मुस्कान खिला देता है।
असरानी ने शोले, चलते-चलते, चुपके-चुपके, गोलमाल, दिल ही तो है, हेरा फेरी, बवाल, अब मैं क्या करूं और छोटी सी बात जैसी फिल्मों में ऐसा अभिनय किया जो दर्शकों को न केवल हंसाता था, बल्कि जीवन की सच्चाइयों से भी जोड़ता था।
असरानी (84) का दिवाली के दिन सोमवार को करीब 4 बजे मुंबई के आरोग्य निधि अस्पताल में निधन हो गया है। वे पिछले 5 दिन से फेफड़ों की समस्या के कारण अस्पताल में भर्ती थे।
Updated on:
22 Oct 2025 11:39 am
Published on:
22 Oct 2025 10:02 am
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