<strong>विवरण</strong>
मां कात्यायनी पीठ उन अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक सिद्ध पीठ है, जहां मां के केश गिरे थे। कात्यायनी पीठ का पुनरुद्धार कामरूप मठ के स्वामी रामानंद तीर्थ से दीक्षित होने के बाह हिमालय की कंदराओं में कठोर साधना करने के बाद मां के आदेश पर स्वामी केशवानंद ने 1923 को माघी पूर्णिमा के दिनो वैष्णवीय परंपरा से मंदिर में प्रतिष्ठा करवाई। मान्यता है कि ब्रजगोपियों ने बालू से मां कत्यायनी की प्रतिमा बनाकर एक महीने व्रत रखा और भगवान श्रीकृष्ण को अपने वर रूप में मांगने की प्रार्थना की। गोपियों की पूजा से प्रसन्न होकर मां कात्यायनी ने उन्हें वरदान दे दिया। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने मां के वरदान का मान रखने के लिए वंशीवट पर महारास किया।