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Green crackers : कहीं ये ग्रीन पटाखे भी ‘जहर’ से भरे तो नहीं! इन्हें फोड़ना कितना सही, जानिए पूरा सच

Green crackers Good or Bad : दिवाली 2025 पर भी पटाखों को लेकर तीखी चर्चा चल रही है। साथ पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है। एक्सपर्ट से समझिए Green Patake कितने सुरक्षित हैं?

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ग्रीन पटाखों की प्रतीकात्मक फोटो (Photo- CSIR)

Green crackers Good or Bad : दिवाली के आते ही पटाखों को लेकर बहस छिड़ जाती है। हां, ये सच है कि खतरनाक बारूद से भरे पटाखों से प्रदूषण फैलता है और सांस, कान से संबंधित बीमारी भी होती है। इसलिए, भारत सरकार ने ग्रीन पटाखों को लेकर कदम उठाया है। फिर भी दिवाली (Diwali 2025) पर सिंथेटिक पटाखे (जहरीले) बिक रहे हैं, ग्रीन पटाखों (Green Patake) के नाम पर भी गलत चीजें बेची जा रही हैं…। ऐसे में सही ग्रीन पटाखों को चेक करने के बारे में जानना जरूरी है, साथ ही क्या ग्रीन पटाखे पूरी तरह हेल्थ के लिए सुरक्षित हैं… चलिए, इसके बारे में भी जान लें।

Green Patake v/s Synthetic Crackers : सिंथेटिक और ग्रीन पटाखों में अंतर

परंपरागत पटाखों में खतरनाक रसायन बेरियम नाइट्रेट, पोटैशियम क्लोरेट, सल्फर, एल्युमिनियम जैसे जहरीले पाउडर आदि से भरा होता है। ये रसायन जहरीली गैसें (SO₂, NO₂, CO) आदि पैदा करते हैं जो सांस की बीमारी पैदा करने के लिए काफी है।

ग्रीन पटाखों में पोटैशियम नाइट्रेट, स्ट्रॉन्शियम नाइट्रेट कम मात्रा में होते हैं। रंग के लिए बेरियम, सीसा, तांबा की जगह स्ट्रॉन्शियम, सोडियम, आयरन जैसे हल्के धातु यूज होते हैं। ध्वनि बढ़ाने वाला एल्युमिनियम, मैग्नीशियम की जगह कुछ नहीं या ना के बराबर ही चीजों को यूज ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होता है।

ग्रीन पटाखे क्या हैं और कैसे करें पहचान?

ग्रीन पटाखे (Green Crackers) भारत सरकार की संस्था CSIR–NEERI (Council of Scientific and Industrial Research – National Environmental Engineering Research Institute) ने विकसित किया है। ये असली हैं या नकली इसके लिए संस्था की ओर से लोगो जारी किया गया है जो कि पैकेट में होता है। साथ ही अधिकारिक निर्माता का नाम भी CSIR–NEERI की वेबसाइट पर चेक कर सकते हैं। अगर आप इन बातों को ध्यान देकर ग्रीन पटाखे खरीदेंगे तो ठगी से खुद को बचा पाएंगे और कुछ हद तक पर्यावरण को बचाने में मदद कर पाएंगे।

ग्रीन पटाखों के प्रकार करें चेक (Types Of Green Patake)

  • SWAS Green Patake- ये पटाखे फूटने के बाद हवा में भाप रिलीज करते हैं।
  • SAFAL Green Patake- इनमें एल्युमिनियम की सुरक्षित मात्रा डाली जाती है इसलिए कम आवाज करते हैं।
  • STAR Green Patake- इनमें पोटैशियम नाइट्रेट या सल्फर नहीं होते। इसलिए, बहुत अधिक धुआं नहीं निकलता।

चेक करना जरूरी क्यों?

अगर आप नकली ग्रीन पटाखे खरीदते हैं तो उसमें खतरनाक-जहरीले केमिकल्स हो सकते हैं। इस तरह के पटाखे अनजाने में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। इसलिए, चेक करके खरीदना जरूरी है।

केमिकल्स वाले पटाखों से प्रदूषण डबल

केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की जानकारी के मुताबिक, दीवाली के बाद लगभग भारत हर बड़े शहर में AQI दोगुना तक बढ़ जाता है। हवा में PM2.5 और PM10 कणों की मात्रा 3–6 गुना तक मिलते हैं। इसके अलावा बच्चे, बुजुर्ग, और सांस की समस्या वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

शहरAQI दीवाली से पहलेAQI दीवाली के बादवृद्धि (अनुमानित%)मुख्य कारणवर्ष
दिल्ली230 (Poor)480 (Severe)109पटाखे, पराली जलाना, ठंडी व धीमी हवा2024
मुंबई150 (Moderate)290 (Poor)93पटाखे, वाहन व अन्य धुआं, आर्द्रता"
कोलकाता170 (Moderate)360 (Very Poor)112पटाखे व अन्य कारक"
चेन्नई130 (Satisfactory)260 (Poor)100पटाखे व अन्य कारक"
लखनऊ210 (Poor)420 (V. Poor)100पटाखे व अन्य कारक"

(नोट-प्रदूषण (हवा की गुणवत्ता) की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर दी गई है। साथ ही हवा प्रदूषण के कारण भी पटाखों के धुआं के अलावा भी कई सारे हैं। हालांकि, लंबे समय से दिवाली के बाद खराब होने के कारण पटाखों को मुख्य कारण के तौर पर मानते हैं।)

ग्रीन पटाखों से कितना बचाव?

CSIR–NEERI ने साफ तौर पर ये कहा है कि इससे 20-30 % तक कम प्रदूषण फैलाता है। साथ ही SO₂, NOx और भारी या खतरनाक धूलकण का स्तर घटता है। इसके अलावा कम शोर (125 dB से नीचे) होना भी सही है। खासकर, बेरियम नाइट्रेट जैसे बेहद हानिकारक तत्व नहीं होते हैं।

Expert Advice: ग्रीन पटाखे पूरी तरह सुरक्षित नहीं?

इसको लेकर डॉ. हिमांशु गुप्ता और आयुर्वेदिक डॉक्टर अर्जुन राज से बातचीत की। उनका कहना है कि पटाखे तो पटाखे हैं उनको फोड़ने पर धुंआ निकलता है, सामान्य से अधिक आवाज निकलती है।

डॉ. हिमांशु ने ये भी समझाया कि धुआं, CO2 ग्रीन पटाखों से निकलते हैं। ये अस्थमा, एलर्जी या फेफड़ों की बीमारी वालों के लिए हानिकारक हो सकते हैं।साथ ही जलाने पर आग और चोट का खतरा तो रहता ही है।

एनवायरोमेंटलिस्ट सुनंदा भोला के अनुसार, कम प्रदूषण, कम आवाज वाले पटाखे सही विकल्प नहीं माने जा सकते हैं। क्योंकि, लोग ये मानकर यूज करेंगे कि ये तो सुरक्षित हैं और संभवत इस चक्कर में अधिक इस्तेमाल कर दें। इस लिहाज से उनको सुरक्षित मानकर अधिक फोड़ना भी खतरनाक है। बल्कि, इसकी बजाय कोशिश हो कि दिवाली दीयों के साथ मनाएं ना कि पटाखों के साथ।