
जुनूनी निर्माताओं की दर्दभरी दास्तां। (पत्रिका डिजाइन, @FilmHistoryPic)
Bollywood Producers Who Lost Everything: अभिनेता रणवीर शौरी, निर्देशक और कोरियाग्राफर फराह खान और अभिनेता गोविंदा में क्या समानताएं हैं? इसके अलावा कि ये तीनों बॉलीवुड से जुड़े हैं… सिर्फ ये तीन नाम ही क्यों, और भी कई हैं, जिनके पिता ने इंडस्ट्री में बहुत नामा कमाया, लेकिन जब गंवाया तो ऐसे गंवाया कि घर-बार तक बिक गया। फराह खान ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में अपने बचपन की दर्दभरी दास्तां कुछ ऐसे सुनाई थी, ‘एक वक्त में मेरे पापा बहुत अमीर थे। इंपाला जैसी बड़ी गाड़ी चलाते थे, बहुत बड़ा घर था हमारा। दिन भर हमारे घर में सितारों का जमावड़ा रहता। फिर पापा ने संजीव कुमार के साथ एक बड़ी फिल्म बनाने की ठान ली। पापा बहुत एंबीशियस थे। कुछ भी छोटा नहीं सोचते थे। फिल्म बनने लगी। एक-एक करके पापा ने अपना सब-कुछ दांव पर लगा दिया। यह कहते हुए कि जब फिल्म हिट होगी तो वो वापस से सबकुछ बना लेंगे। लेकिन फिल्म पूरी बन ही नहीं पाई। पापा और संजीव कुमार के बीच कुछ अनबन हो गई।
संजीव कुमार पिक्चर बीच में छोड़ कर चले गए। पापा फिल्म के प्रोड्यूसर थे। एकाएक हम लोग अमीर से गरीब हो गए। गाड़ी बिक गई। घर बिक गया। एक-एक करके घर की सारी चीजें बिक गईं। पापा ये जिल्लत सह नहीं पाए। शराबी बन गए। मैं और भाई साजिद बच्चे थे। पर पापा का बाकि तीन लाख का कर्ज चुकाना था। भाई छोटे-मोटे काम करने लगा। बच्चों की पार्टी में मिमिक्री, कभी बीच में तो कभी घर में। वो पैसे कमा कर मुझे देता। मैं तय करती कि इससे घर का आटा-दाल आएगा या हम उधार के पैसे चुकाएंगे। बस, कभी-कभार एक फिल्म देख लेते, वो हमारे लिए बहुत बड़ी बात होती।’
फराह खान के पापा कामरान खान अकेले ऐसे निर्माता नहीं थे, जिन्होंने फिल्म बनाने में अपना सर्वस्व गंवा दिया। एक वक्त था, जब फिल्म बनाना खतरे का सौदा माना जाता था। फिल्म सफल हो गई तो निर्माता के वारे-न्यारे हो जाते। फिल्म पिट गई तो निर्माता सड़क पर आ जाता था। साठ से ले कर नब्बे के दशक तक फिल्म निर्माण के साथ एक बहुत बड़ा दांव जुड़ा रहा। वैसे भी यह बात जग जाहिर है कि फिल्मों को सफल बनाने का कोई फॉर्मूला नहीं है। कई बार अच्छी फिल्में भी पिट जाती हैं और कई बार बकवास फिल्में भी चल जाती हैं।
1970 में आई 'मेरा नाम जोकर' राज कपूर की बेहद महत्वाकांक्षी फिल्म थी। वे एक कामयाब निर्माता और निर्देशक थे। उनकी इच्छा थी एक शाहकार फिल्म बनाने की। धर्मेंद्र, मनोज कुमार, राजेंद्र कुमार और कई विदेशी कलाकारों के साथ उन्होंने 'मेरा नाम जोकर' फिल्म बनाई। फिल्म लंबी थी, राज कपूर की दूसरी फिल्मों से अलग थी। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह धराशाई हो गई। कर्ज चुकाने के लिए राज साहब को अपना घर गिरवी रखना पड़ा। आरके स्टूडियो को भी गिरवी रख कर उन्होंने कर्ज चुकाया। लेकिन वे हारे नहीं। उनके दिमाग ने कहा कि उन्हें जल्द से जल्द मुफलिसी से बाहर आना होगा। तुरंत ही उन्होंने एक टीनएज लव स्टोरी 'बॉबी' पर काम करना शुरू किया। अपने बेटे ऋषि कपूर के साथ अपने मित्र चुन्नी लाल कपाड़िया की सोलह साल की बेटी डिंपल कपाड़िया के साथ बॉबी फिल्म बना डाली।
बॉबी फिल्म में राज साहब ने वो सब किया, जो 'मेरा नाम जोकर' में नहीं किया था। बॉबी मार्डन जमाने की थी, नायक-नायिका विद्रोही थे और नायक अमीर और नायिका गरीब घर की थी। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर झंडे गाड़ दिए। देखते ही देखते ये ना सिर्फ एक सफल फिल्म, बल्कि एक कल्ट फिल्म बन गई। 'बॉबी' के बाद राज कपूर एक बार फिर से इंडस्ट्री के बहुत बड़े शो मैन बन गए। हारी हुई शोहरत और गिरवी पड़ा घर वापस लिया। 'बॉबी' के बाद भी उनकी बनाई फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम खास नहीं चली, पर तब तक राज कपूर संभल चुके थे और अपने पैसे दांव पर नहीं लगाए थे। यह हाल साठ और सत्तर के दशक के कई निर्माताओं का हुआ। एक फिल्म बनाने के चलते उन्हें धूल चाटनी पड़ी।
जो लोग 'नाम बड़े और दर्शन छोटे' गाने के लाजवाब एक्टर भगवान दादा को जानते हैं, उन्हें पता होगा कि हिंदी फिल्मों में एक समय उनका ही जलवा था। उनकी अदाएं ऐसी थीं कि युवा उनकी कॉपी करते। कहा जाता है कि अमिताभ बच्चन ने भी अपने डांस स्टेप्स उनसे ही उधार लिए थे। बाद के सालों में भगवान दादा ने अपना सब कुछ गंवा दिया और मुंबई के एक चाल में फाकाकशी करते हुए अपने दिन गुजारे। वजह थी, वही एक नाकामयाब फिल्म।
गोविंदा के पिता अरुण आहूजा भी एक छोटे-मोटे निर्माता थे। चुल थी बड़ा कुछ करने की। फिल्म बनाने में रहा-सहा पैसा भी गंवा दिया। उनके पूरे परिवार को जुहू में बड़ा घर छोड़ कर मुंबई के एक सुदूर उपनगर विरार में किराए के घर में आना पड़ा। गोविंदा का बचपन अभावों में बीता। लेकिन पिता का डीनएनए तो था उनमें। फिल्मों ने अपनी तरफ खींच ही लिया। हाल ही में किसी ने गोविंदा से सवाल किया था कि वे अपने बेटे यशवर्धन को लॉन्च करने के लिए खुद फिल्म क्यों नहीं बना रहे? गोविंदा ने हंस कर जवाब दिया था कि जो गलती मेरे पापा ने की और जिंदगी भर हम भोगने के लिए अभिशप्त रहे, वो गलती मैं अपने साथ अपने बेटे के साथ नहीं करना चाहता। जाहिर है उनका इशारा फिल्म बना कर पैसे गंवाने की तरफ था।
रणवीर शौरी के पिता कृष्ण देव शौरी भी अपने वक्त में कामयाब निर्माता थे। फिर एक दिन सड़क पर आ गए और अपने तीनों बेटों को ताकीद कर दिया कि उनमें से कोई भी फिल्म लाइन में नहीं जाएगा। रणवीर ने कोशिश बहुत की कि वे टेलिविजन में ही रहे। लेकिन फिल्मों का आकर्षण उन्हें खींच ही लाया। उनके पिता अंत तक यही कहते रहे कि फिल्मों से दूर रहना, यहां इतनी उथल-पुथल होती है कि आदमी बौरा जाता है।
अमिताभ बच्चन ने भी नब्बे के दशक में तय किया कि वो अपना ब्रांड और बड़ा करेंगे, एबीसीएल के नाम से अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू किया। फिल्में, टीवी सीरियल और दूसरे शोज बनाने के लिए। तेरे मेरे सपने बनाई भी, जो ठीक-ठाक चली। फिर गलती कहां हुई? एक साथ कई मोर्चे खोलने की गलती। मिस वर्ल्ड कार्यक्रम का आयोजन, कई सारे टीवी सीरियल की डमी और हद से ज्यादा भारी स्टाफ एबीसीएल को ले डूबा। नतीजा, वही बंगला प्रतीक्षा गिरवी रखना पड़ा। करोड़ों का कर्ज सिर पर चढ़ गया। उस समय अभिषेक भी काम करने लायक नहीं हुए थे। अमिताभ बच्चन एक दिन खुद सड़क पार कर अपने पुराने दोस्त यश चोपड़ा से मिलने पहुंचे और कहा कि किसी भी तरह उन्हें किसी फिल्म में काम दिला दे। उनका बेटा आदित्य उन दिनों अपनी दूसरी फिल्म मोहब्बतें की कास्टिंग कर रहा था। अमिताभ बच्चन ने वो फिल्म साइन कर ली। इसके तुरंत बाद उन्हें टीवी पर कौन बनेगा करोड़पति शो का मेजबान बनने का निमंत्रण मिला। इस तरह से धीरे-धीरे करके बिग बी ने अपना कर्जा उतारा और कसम खा ली कि वे कभी अब फिल्म निर्माण में नहीं उतरेंगे।
पचास के दशक के चर्चित नायक भारत भूषण का भी फिल्म निर्माण के चक्कर में बुरा हश्र हुआ था। वे मुंबई में अपना सबकुछ बेच कर खाली हाथ मेरठ लौट आए थे। ये तो कुछ नाम भर हैं, ऐसे कई लोग हैं जो फिल्में बनाने के चक्कर में दिवालिया हो गए और लुट-पिट कर घर लौट आए।
लेकिन आज फिल्मों की कहानी अलग है। कोई भी फिल्म पूरी तरह नहीं पिटती और ना ही कोई निर्माता अपनी जेब से पूरा पैसा लगाता है। फिल्में बेचने के थियेटर के अलावा भी और कई माध्यम है। फिल्म सुपर हिट बेशक ना हो, पर लगभग 70 प्रतिशत फिल्में अपनी लागत और थोड़ा सा मुनाफा कमा लेती है। कामयाब होने वाली फिल्मों का तो गणित और ही होता है। वो तो सालों तक निर्माताओं को कमा कर देती हैं।
वैसे एक बात और गौर तलब है। एक समय में खारिज कर दी गई फिल्में भी एक वक्त के बाद बिकाऊ हो जाती हैं। वो फिल्म जिसकी वजह से राज कपूर बर्बाद होते-होते रह गए, पिछले बीस सालों से कपूर खानदान को कमा कर दे रही हैं। हां, मेरा नाम जोकर वही फिल्म हैं जो टीवी और ओटीटी पर खूब देखी जा रही है और उसकी कमाई से राज कपूर के बेटे रणधीर कपूर के दवा-दारू का खर्च चल रहा है। उसी तरह राज कुमार संतोषी की फिल्म अंदाज अपना अपना भी अपने समय में थियेटर पर नहीं चली, उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ा। पर अब वो फिल्म कल्ट मानी जाती है और किसी भी सफल फिल्म से कहीं अधिक कमाई कर रही है।
Updated on:
26 Oct 2025 10:28 am
Published on:
26 Oct 2025 07:30 am
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