Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

कांग्रेस: संगठन लचर, जनाधार कमजोर

बिहार, बंगाल, तमिल नाडु और असम में होने हैं चुनाव

2 min read
Congress

MP congress executive (फोटो सोर्स : पत्रिका क्रिएटिव)

शादाब अहमद

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के सामने अब एक के बाद एक प्रदेशों में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने की चुनौती है। बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल, असम और तमिल नाडु तक कांग्रेस की हालत एक जैसी है। लचर होता कांग्रेस संगठन और सिकुड़ते जनाधार के साथ क्षेत्रीय दलों पर बढ़ रही निर्भरता है। पार्टी रणनीतिकारों के लिए भाजपा से मुकाबले के साथ क्षेत्रीय दलों पर निर्भरता कम करने के लिए रणनीति बनाने की चुनौती है।

दरअसल, कांग्रेस इन दिनों बिहार चुनाव की तैयारी में जुटी है। लचर संगठन और पिछले चुनावों में प्रदर्शन के चलते महागठबंधन के सहारे चुनाव लड़ने के दौरान सीट बंटवारे के लिए सहयोगी दल राजद के भरोसे है। यही तमिलनाडु में भी हैं, जहां 2026 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहां डीएमके के भरोसे चुनाव लड़ना होगा।

बिहार: संगठन के नाम पर सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष

बिहार कांग्रेस में इस वक्त संगठन के नाम पर सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष हैं। जिलों में पार्टी की इकाइयां बनी ही नहीं है। महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर भी खींचतान चल रही है। दरअसल, कांग्रेस ने 2020 में 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से सिर्फ 19 पर जीत मिली। वहीं वोट शेयर भी 9.5% ही रहा।

पश्चिम बंगाल: तृणमूल और भाजपा की लड़ाई में कांग्रेस हाशिए पर

बिहार के बाद कांग्रेस के लिए सबसे कठिन इम्तिहान पश्चिम बंगाल है। यहां ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में सीधी टक्कर है। कांग्रेस का असर महज कुछ जिलों तक सिमटा है। वाम दलों के साथ गठबंधन के बावजूद पार्टी को जनता तक पहुंच बनाने में मुश्किल हो रही है। यहां 2021 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला और वोट शेयर सिर्फ 2.94% तक सिमट गया। पार्टी का असर मालदा और मुर्शिदाबाद जैसे जिलों तक सीमित हो गया।

असम: वापसी की राह बनाने की कोशिश

असम में 2016 से सत्ता से बाहर कांग्रेस अभी तक वापसी का रास्ता नहीं खोज पाई है। भाजपा ने यहां संगठन को जड़ से खड़ा किया है और लगातार दूसरी बार सरकार बनाई। यहां कांग्रेस ने चुनाव से करीब एक साल पहले सांसद गौरव गोगोई जैसे युवा नेता पर दांव खेला है। कांग्रेस का बिहार और बंगाल के मुकाबले संगठन और जनाधार की हालत ठीक है। कांग्रेस ने पिछले चुनाव में 29 सीटें जीती और 29.7% वोट शेयर हासिल किया था। इस राज्य में कांग्रेस अपने दम पर सत्ता में वापस आने के लिए जोर लगा रही है।

तमिलनाडु: सहयोगी पर निर्भरता

तमिलनाडु में कांग्रेस पूरी तरह डीएमके के सहारे है। डीएमके के साथ गठबंधन में सीटें जरूर मिलती हैं, लेकिन कांग्रेस की स्वतंत्र पहचान लगभग समाप्त हो चुकी है। राज्य की राजनीति में पार्टी का कोई अलग जनाधार अब नहीं दिखता। यहां पार्टी का वोट शेयर सिर्फ 4.30% रह गया है।

राज्यों में कांग्रेस की मुख्य चुनौतियां

- बूथ लेवल तक संगठन का अभाव और निष्क्रिय कार्यकारिणी

- करिश्माई राज्य स्तरीय चेहरों की कमी

- क्षेत्रीय दलों पर निर्भरता

- लगातार घटता वोट शेयर और जनाधार