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बिहार: जाति-धर्म के ध्रुवीकरण के बीच नए समीकरणों की तलाश

बड़ा सवाल: क्या चिराग, साहनी और प्रशांत बदल पाएंगे समीकरण?

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Bihar Election 2025

Bihar Election 2025

शादाब अहमद

नई दिल्ली। बिहार का चुनाव एक बार फिर ध्रुवीकरण की पुरानी जमीन पर जाता दिख रहा है। लेकिन इस बार तस्वीर थोड़ी जटिल है। जहां भाजपा धार्मिक ध्रुवीकरण की रणनीति पर है तो राजद जातीय समीकरणों को साधने में लगी है। इसके बीच जेडीयू और कांग्रेस अपने परंपरागत वोट बैंक को बचाने की कोशिश कर रही हैं। उधर, लोजपा रामविलास और वीआईपी पिछले चुनाव के प्रदर्शन के दम पर नए समीकरण बनाने की जुगत में है। इन सबके बीच प्रशांत किशोर की नई नवेली जन सुराज पार्टी धर्म जाति से इतर युवाओं पर फोकस कर चुनाव में अपनी मौजूदगी दिखाने के प्रयास में हैं।

भाजपा: धार्मिक ध्रुवीकरण का दांव

भाजपा पिछले कुछ वर्षों से हिंदुत्व के एजेंडे को मजबूती से आगे बढ़ा रही है। घुसपैठ, मंदिर, सांस्कृतिक प्रतीक और राष्ट्रवाद के साथ वह युवाओं और शहरी मतदाताओं पर भी फोकस कर रही है। 2025 के चुनाव में भाजपा की रणनीति साफ है – हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कर विपक्षी गठजोड़ की गणितीय बढ़त को चुनौती देना। हालांकि उनके इस दांव से सहयोगी जेडीयू और चिराग पासवान असहज हो सकते हैं।

राजद: जातीय समीकरण पर भरोसा

आरजेडी अब भी यादव–मुस्लिम (एमवाई) समीकरण को अपनी सबसे बड़ी ताकत मानकर चल रही है। इसके साथ दलित और अति पिछड़ों में पैठ बनाने की कोशिशें भी हो रही हैं। तेजस्वी यादव ने रोजगार, शिक्षा के साथ वोट चोरी जैसे मुद्दों को जोड़ा है, लेकिन मूल रणनीति जातीय आधार पर ही टिकी है।

जेडीयू: सत्ता बचाने की चुनौती

नीतीश कुमार की जेडीयू सामाजिक न्याय और सुशासन की छवि पर टिकी है। लेकिन जेडीयू के सामने अपने पारंपरिक वोट बैंक कुर्मी, अति पिछड़े और महिलाओं को बचाने की चुनौती है।
एनडीए और महागठबंधन के बीच बार-बार के राजनीतिक फेरबदल से जेडीयू को स्थायी आधार कमजोर होने का खतरा है।

कांग्रेस: राष्ट्रीय उपस्थिति का संकट

कांग्रेस राज्य स्तर पर अब भी हाशिए पर है। उसका सहारा मुस्लिम और ऊंची जातियों का छोटा-सा वोट बैंक है। महागठबंधन में रहते हुए वह सीटों के बंटवारे पर निर्भर है। राहुल गांधी ने वोटर अधिकार यात्रा निकाल कर पार्टी के लिए माहौल जरूर बनाया है। पार्टी महिलाओं, युवाओं के लिए गारंटी योजना का दांव भी चल रही है।

छोटे दलों और नई पार्टी की एंट्री

चिराग पासवान की लोजपा-रामविलास ने 2020 में अकेले चुनाव लड़कर करीब 23 लाख से अधिक वोट लेकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। वे दलित–पासवान समाज के नेता के रूप में भाजपा की राजनीति में महत्वपूर्ण साझेदार बन सकते हैं।

मुकेश साहनी की वीआईपी ने 6 लाख से ज्यादा वोट लेकर मछुआरा समाज को संगठित किया है। उनका फोकस अब पिछड़ी जातियों पर है। पिछली बार वीआईपी एनडीए का हिस्सा थी, लेकिन इस बार महागठबंधन में शामिल हो चुकी है।

प्रशांत किशोर (जन सुराज) युवाओं को रोजगार और बदलाव के मुद्दे पर साथ लाने का दावा कर रहे हैं। पारंपरिक जाति-धर्म की राजनीति से अलग खड़े होने की कोशिश उनका सबसे बड़ा दांव है।