भारत में चाय की तरह लोकप्रिय पेय कॉफी। (फोटो: द वाशिंगटन पोस्ट.)
Coffee Drain Environmental Impact: भारत में कॉफी पीने का क्रेज दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। मिंटेल रिसर्च 2025 के अनुसार, देश में 56% लोग कॉफी का आनंद (India Coffee Consumption) लेते हैं, जिसमें महिलाएं, युवा और छोटे शहरों के लोग भी शामिल हैं। दक्षिण भारत में तमिलनाडु (60%), कर्नाटक (25%), आंध्र प्रदेश (10%), और केरल (5%) में फिल्टर कॉफी (Filter Coffee) का चलन है, जबकि उत्तरी भारत में इंस्टेंट कॉफी बहुत लोकप्रिय हो रही है। सन 2016 से 2023 के बीच कॉफी खपत 84,000 टन से बढ़ कर 91,000 टन हो गई, हालांकि प्रति व्यक्ति खपत अभी 100 ग्राम के आसपास है। लेकिन इस बढ़ते चलन का एक गहरा पहलू सामने आया है,कॉफी के बचे हुए हिस्से को नाली में फेंकना पर्यावरण के लिए खतरा बन रहा है।
पश्चिमी लंदन की रहने वाली बुर्कू येसिलयुर्ट पर कॉफी के अवशेष सड़क नाली में डालने के लिए 150 पाउंड का जुर्माना लगाया गया, ऐसा पर्यावरण संरक्षण कानून के तहत किया गया। इस कानून के तहत जल या जमीन को प्रदूषित करने वाला कचरा रोकने की कोशिश की जाती है। हालांकि, रिचमंड-अपॉन-थेम्स काउंसिल ने बाद में जुर्माना रद्द कर दिया। लेकिन वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि कॉफी फेंकने से नदियां और मछलियां प्रभावित हो सकती हैं। भारत में भी, जहां गंगा-यमुना जैसी नदियां पहले से प्रदूषित हैं, ये आदत नुकसानदेह साबित हो रही है।
घर के सिंक से कॉफी सीवेज सिस्टम में जाती है, लेकिन सड़क की नालियां अक्सर बिना साफ किए नदियों और झीलों में बह जाती हैं। एक कप कॉफी छोटा लगता है, लेकिन 56% कॉफी पीने वालों (लगभग 80 करोड़ लोग) के एक-एक कप का कुल असर बड़ा हो सकता है। एमजेडआर ड्रेनेज के माइकल बरोज के अनुसार, "यह हानिरहित लगता है, लेकिन हजारों लोग रोजाना ऐसा करें तो पर्यावरण पर भारी बोझ पड़ता है।" नालियां जाम हो सकती हैं, बदबू फैल सकती है, और जल पारिस्थितिकी बिगड़ सकती है। पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गैरी फोन्स ने बताया कि दूध और चीनी का मिश्रण बैक्टीरिया बढ़ाता है, जो ऑक्सीजन सोख लेते हैं।
ब्लैक कॉफी में कैफीन की मात्रा कम होती है, जो 1.2 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से ज्यादा होकर मछलियों के लिए जहरीली बनती है। एक कप से इतनी मात्रा नहीं आती, लेकिन लट्टे या कैपुचीनो जैसे दूध वाली कॉफी खतरनाक हैं। दूध नदियों में पहुंच कर एल्गी ग्रोथ बढ़ाता है, जो ऑक्सीजन कम करता है। प्रोफेसर फोन्स ने कहा, "दूध का जैविक ऑक्सीजन डिमांड (BOD) सीवेज से 400 गुना ज्यादा हो सकता है।" भारत में दूध वाली चाय-कॉफी का चलन इसे और गंभीर बना रहा है, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां फिल्ट्रेशन कम है।
कॉफी ग्राउंड्स पाइप्स में चिपक कर नालियां जाम करते हैं, जिससे महंगे मरम्मत का खर्चा आता है। ये ग्राउंड्स बदबू भी फैलाते हैं। वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि कॉफी के अवशेषों को कचरे में डालें या कंपोस्ट बनाएं। इससे मिट्टी उपजाऊ बनेगी और ग्रीनहाउस गैसें कम होंगी। लंदन जैसी घटनाएं हमें सिखाती हैं कि छोटी आदतें बड़े नुकसान का कारण बन सकती हैं। भारत में सरकार को जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है, ताकि लोग नदियों को बचाने में योगदान दें।
बहरहाल भारत में स्टारबक्स और कैफे कॉफी डे जैसे ब्रांड्स से युवा आकर्षित हो रहे हैं। दक्षिण में पारंपरिक फिल्टर कॉफी और उत्तरी भारत में इंस्टेंट कॉफी की मांग बढ़ी है, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय को कॉफी कचरे पर गाइडलाइंस जारी करनी चाहिए। छोटे कदम जैसे अवशेष फेंकना बंद करना नदियों को स्वच्छ रख सकता है। वैज्ञानिकों का संदेश साफ है: कॉफी का मजा लें, लेकिन प्रकृति का ध्यान रखें।
Updated on:
23 Oct 2025 05:51 pm
Published on:
23 Oct 2025 05:48 pm
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