हिण्डौनसिटी. बड़े आकार के लिहाज से प्रदेश की ख्यात बावडियों में शुमार जच्चा की बावड़ी प्राचीन स्थापत्य को सजोए हुए है। करीब 7 शताब्दी पुरानी बावड़ी की सारसंभाल के लिए समुचित संरक्षण की दरकार है। खरेंटा रोड स्थित जच्चा की बावड़ी का अमृत योजना के तहत सौंदर्यीकरण किया गया, लेकिन 52 लाख का बजट सफाई और रंगाई पुुताई में सिमट गया। योजना की मंशा के अनुरूप कार्य नहीं होने से 9 माह में ही धरोहर पर अस्तित्व का संकट गहरा गया है।
क्षेत्र के बुजुर्गों के अनुसार प्रहलाद कुण्ड के पास स्थित जच्चा की बाबड़ी 700 वर्ष पुरानी बताई जाती है। जयपुर रियासत के ठिकाने रहे हिण्डौन की बावड़ी को रियासतकाल से पहले की बताया गया है। इतिहासकारों के अनुसार इसका निर्माण 14 वीं सदी में लक्खीराय बंजारा द्वारा कराया गया था। स्थापत्य शैली से बावड़ी का स्वरूप प्रदेश की अन्य ख्यात बावडियों से मिलता जुलता है। इस धरोहर को संवारने के लिए वर्ष 2016 में राज्य सरकार ने जल स्वावलंबन अभियान के तहत कार्य किए गए। जिसमें बावडियों की सीढिय़ों से झाडिय़ों की सफाई और रंगाई पुताई करवाई गई। नियमित सारसंभाल नहीं करने से कुछ माह बाद ऐतिहासिक विरासत बदहाल हो गई। करीब पांच वर्ष बाद वर्ष 2023 में अमृत योजना के दूसरे चरण में शहरी पर्यटन विकास के तहत बावड़ी की फिर से सुध ली गई। विरासत के ऐतिहासिक स्वरूप को बरकार रखते हुए बावड़ी के पुनरुद्धार के लिए 52 लाख स्वीकृत किए गए, लेकिन आस-पास अतिक्रमणों के चलते सौंदर्यीकरण कार्य रंगाई पुताई और झाडिय़ों की सफाई सीमित रह गया। और दरकती धरोहर को संभालने को नहीं हो सके। ऐसे में जच्चा की बावड़ी को अमृत योजन से भी संरक्षण की संजीवनी नहीं मिल सकी।
यूं पड़ा जच्चा की बावड़ी नाम
किवदंतियों के अनुसार बावड़ी की काफी गहराई होने के बावजूद पानी नहीं निकला। इस पर एक साधु ने कोई गर्भवती महिला को बावड़ी के अंदर प्रसव होने पर जलभराव की बात कही थी। बुजुर्गों के अनुसार बावड़ी में तली तक सफाई के दौरान मध्य में पत्थर के तख्त पर बच्चे को दूध पिलाती एक लेटी हुई महिला की प्रतिमा बताई जाती है। इससे इसका नाम जच्चा की बावड़ी ख्यात हो गया।
चौकोर बावड़ी, एक जैसी हैं सीढिय़ां
जच्चा की बाबड़ी बुलआ पत्थर(सेण्ड स्टोन) से 200 फीट के वर्गाकार में बनी है। बावड़ी में पानी तक पहुंचने के लिए चारों ओर दोनों तरफ उतार वाली साढिय़ां हैं। लोगों के अनुसार बावड़ी में करीब 5 हजार सीढिय़ां हैं। बावड़ी में प्रवेश के लिए चारों तरफ से 10 रास्ते हैं। साथ ही चारों कोनों में 4 चबूतरे बने हुए हैं। जच्चा की बावड़ी धरोहर की दृष्टि से प्रदेश की सात बड़ी बावडिय़ों में शामिल हैं।
गुजरात में संवत्सर कलेण्डर में छापा चित्र
ऐतिहासिक दृष्टि से ख्यात जच्चा की बावड़ी का फोटो बीते वर्ष गुजरात में नवत्सर में छापा गया। राजस्थानी भाषा और संस्कृति प्रचार मंडल अहमदाबाद ने राजस्थानी भाषा के नवसंवत्सर कलेण्डर में 12 माह के पृष्ठों पर 12 बावडियों के चित्र प्रकाशित किए थे। इसमें वैशाख माह के पृष्ठ पर फोटो व राजस्थानी भाषा में बावड़ी पर आलेख प्रकाशित किया गया।