हिण्डौनसिटी. 26 वर्ष पहले करगिल की बर्फीली पहाड़ियों में दुश्मन से लड़ते हुए गांव मुकंदपुरा के सपूत हीरा सिंह देश के लिए बलिदान हो गए। ढाई दशक से अधिका अरसा बीत गया है, लेकिन सैनिक की शहादत की यादें सरहद से भेजी चिट्टियों और उसकी सेना की वर्दी में सिमटी हुई है। जिन्हे आए दिन संभाल कर करीने से रख वीरांगना उर्मिला जांबाज पति की यादों को सहेजे हुए है। गांव मुकंदपुरा निवासी वीरांगना उर्मिला देवी ने बताया कि शादी के वक्त हीरासिंह फौज में नहीं थे। बड़े भाई के सेना में होने से उनमें भी देश सेवा जज्बा था और अलग ही वर्ष 1995 में 4 जाट राजपूत रेजीमेंट में बतौर सिपाही भर्ती हो गए। सेना की सेवा में 4 वर्ष ही निकले थे कि वर्ष 1999 में करगिल युद्ध छिड़ गया और हीरासिंह 21 जून 1999 में शहीद हो गए। उस दौरान इकलौता पुुत्र चंद्रशेखर 6 माह का था। उर्मिला ने बताया कि उस दौरान गांवों में फोन नहीं होने से चिट्ठियों से संवाद का माध्यम थी। बॉर्डर से पति की चिट्ठी के लिए हर दिन घर की चौखट पर इंतजार रहता। बकौल वीरांगना उर्मिला, वह निरक्षर है, ऐसे में सरहद से आए पत्रों को दूसरे से पढ़वा कर पति का संदेश जान पाती। बक्से में यादों की चिठ्ठियों के साथ अनेकों कोरे अंतर्देशीय पत्र रखे है, जिन पर शहीद हीरासिंह ने अपना नाम पता लिख छोड़ा था कि उर्मिला उन्हें किसी से लिखवाकर भेज सके। शहीद हीरासिंह की सेना की अनेकों वर्दियां हिण्डौन स्थित निवास व गांव मुकंदपुरा के घर में रखी हैं। जिन्हे संवार कर रखा है। शहीद हीरासिंह का पुत्र चंद्रशेखर करौली कोषागार कार्यालय में कार्यरत है। वीरांगना उर्मिला व उसका पुत्र हर पर्व व त्योहार पर शहीद स्मारक पर पहुंचते हैं।