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एमपी के जंगलों की सेहत की कहानी, वाइल्डलाइफ हेल्थ ऑफिसर की जुबानी, ‘चीता प्रोजेक्ट दिल के सबसे करीब’

MP News: Wildlife के असली हीरो सीरीज के दूसरे एपिसोड-2 में आज हम जानेंगे Wildlife health के डॉक्टर की कहानी... जहां इलाज सिर्फ दवाओं से नहीं बल्कि, हिम्मत और दिल-ओ-दिमाग की अटेंशन और हार्मनी पर निर्भर होता है। वाइल्ड एनिमल्स की सेहत का ख्याल रखने वाले डॉक्टर जितेंद्र कुमार जाटव से patrika.com ने जाना खुले रहवास के वन्यजीवों का इलाज पालतू और चिड़ियाघरों में रहने वाले एनिमल्स से कितना अलग, सबसे बड़ा चैलेंज और अब तक का सबसे यादगार पल...

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Wildlife ke Asli hero episode 2

Wildlife ke Asli hero episode 2

MP News:संजना कुमार@patrika.com: Wildlife के असली हीरो सीरीज के एपिसोड-2 में आज हम बात कर रहे हैं वन और वन्यप्राणियों के उस वाइल्डलाइफ हेल्थ ऑफिसर की, जिसका हर दिन खुले जंगलों में विचरण करने वाले जंगली जानवरों के बीच गुजरता है। ये कहानी है डॉ. जितेंद्र कुमार जाटव की…जो वर्तमान में कूनो में सीनियर वाइल्डलाइफ हेल्थ ऑफिसर के रूप में तैनात हैं। एक ऐसी शख्सियत जिसे वन्यप्राणी को देखकर ही उसकी तबियत और ताकत का अंदाजा लगाना होता है…

25 साल से मध्यप्रदेश की वाइल्डलाइफ से जुड़े डॉ. जाटव एक नजर में भांप जाते हैं किस जानवर का रेस्क्यू जरूरी है, किस एनिमल की जान को खतरा है… चीतों की लगातार मौतें उन्हें भीतर तक तोड़ रही थीं… लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते एक उम्मीद भी उनसे बंधी रही… यही ख्वाहिश उनके लिए आगे के रास्ते आसान बनाती चली गई। आशा की यही राहें देश में जन्मीं पहली फीमेल चीता शावक मुखी को मौत के मुंह से खींच लाई…

संघर्ष के सवाल पर याद आया घर-परिवार

लेकिन वाइल्डलाइफ की सेहत को लेकर अपनी जिद पर डटे रहने वाले (Wildlife के असली हीरो) एमपी के सीनियर वाइल्डलाइफ हेल्थ ऑफिसर जीतेंद्र कुमार जाटव Wildlife करियर में संघर्ष के सवाल पर युवा पीढ़ी को एक ही मैसेज देते हैं… 'डेडिकेशन बेहद जरूरी... अगर वो है... तो वाइल्डलाइफ फील्ड में आप भी करियर बना सकते हैं…

डॉ. जितेंद्र कुमार जाटव से patrika.com की सीधी बात

Q. भारत में चीतों की वापसी ऐतिहासिक, आप कब से इस प्रोजेक्ट से जुड़े हैं, शुरुआती चैलेंज क्या रहे?

A. चीता प्रोजेक्ट (चीता पुनर्वास परियोजना) से मैं तब से जुड़़ा जब ये प्रोजेक्ट तैयार ही किया जा रहा था। चीता के आने से पहले ही हमने फील्ड में काम शुरू कर दिया था। बात चैलेंज की... तो वाकई हमारे लिए ये प्रोजेक्ट बड़ी चुनौती इसलिए था क्योंकि चीता भारत के लिए बिल्कुल नयी प्रजाति है। भारत में किसी भी इंस्टिट्यूट में इसके बारे में कोई भी शोध नहीं किया गया था और न ही कोई ऐसा रिसोर्स पर्सन था जो इंडिया का था और जो हमें चीतों के बारे में जानकारी दे सके। मैं पर्सनली बताऊं तो मेरा गुरु चीता ही है। चीता के आने के बाद मैंने उसे अपना पूरा समय दिया। सबकुछ चीता से ही सीखा।

Q. साउथ अफ्रीका-नामीबिया से लाए गए चीतों की सेहत को बनाए रखना आपके लिए कितना कठिन रहा होगा, क्या आपको उसके शरीर या व्यवहार में कुछ ऐसा देखने को मिला जो आपकी उम्मीद से अलग रहा हो?

A. वाइल्ड एनिमल थे, शुरुआत में ये बहुत ही शर्मिले थे, उनकी साइटिंग भी अपने आप में कठिन थी। साइटिंग होने के बाद भी उनकी बॉडी को हेल्थ प्वॉइंट ऑफ व्यू से देख पाना बड़ा चैलेंजिंग काम था। धीरे-धीरे हमने उस प्रजाति के व्यवहार को समझते हुए उसे टाइम देना शुरू किया, तब वो हमें कॉपरेट करने लगे। फिर हम विज्युअली उनकी हेल्थ का बारीकी से ऑब्जर्वेशन करने लगे।

Q. चीतों की शुरुआती जो मौतें हुईं..आपने उनसे क्या सीखा, क्या उनकी लगातार मौतों के बाद उनकी डायट या मॉनिटरिंग या फिर हेल्थ मैनेजमेंट के तौर-तरीके बदले गए?

A. शुरुआती दौर में ज्यादातर चीतों की मौत का कारण कूनो का एक्स्ट्रीम हॉट एंड ह्यूमिड वेदर रहा, जिसकी वजह से उनके शरीर में छोटे से टिक्स या माइट्स की बाइट की जगह पर मक्खियां अपने अंडे दे देतीं और फिर वो बहुत ही कम समय में मगोट्स के रूप में पूरे शरीर फैल जाते थे। जो एनिमल को बहुत ही तेजी से इन्फेस्ट (प्रभावित) कर देते थे। शुरुआत में एक दो एनिमल की डेथ पर हम जज नहीं कर पाए, लेकिन पोस्टमार्टम से बाद सही आंकलन हुआ। फिर हमने उसी के अनुसार उन्हें इलाज देना शुरू किया। एनिमल रिकवर होने लगे। वर्तमान में हर साल हम उस परिस्थिति से जूझते हैं। लेकिन अब इसके लिए हमने एक प्रोटोकॉल बनाया, जिसे फॉलो करते हुए हम ब्रेवेक्टो नामक दवा जो बहुत ही प्रभावी रहती है, हम सभी एनिमल्स को देते हैं। प्रतिवर्ष हम इस रूटीन को फॉलो करते हैं।

Q. वाइल्ड एनिमल की हेल्थ को संभालना पेट एनिमल या जू एनिमल्स से कितना अलग है ?

A. बहुत फर्क है दोनों एनिमल्स में। पालतू जानवर (PET Animals) या चिड़ियाघर के जानवर (Zoo Animals) ह्यूमन प्रजेंस को टॉलरेट कर लेते हैं, लेकिन वाइल्ड एनिमल जो खुले जंगलों में रहते हैं ह्यूमन प्रजेंस को अवॉइड करता है। वो ह्यूमन के सामने आना ही नहीं चाहता। ऐसे में वन्यप्राणियों को डील करना भी हमारे लिए बहुत बड़ा चैलेंज होता है, वो आपको देखना नहीं चाहता...लेकिन आपको उसकी केयर करना होती है। इस पर भी अगर चीता...वो तो एकदम नयी प्रजाति...आप समझ सकती हैं। जब चीता को यहां ट्रांसलोकेट किया गया, तो उसके लिए भी सब कुछ नया था, यहां का रहवास, आबोहवा और साथी वन्यप्राणी से लेकर हमारे चेहरे तक।

Q. वाइल्डलाइफ हेल्थ के लिए अगर आपका रूटीन जानना चाहें, तो क्या आपकी ड्यूटी 9-5 या 10-6 वाली होती है या फिर कभी भी जंगल को आपकी जरूरत पड़ती है…?

पर्सनली हमारा (Wildlife के असली हीरो) ये एक्सपीरियंस रहा है कि पिछले साढ़े तीन साल से हमारा यही रूटीन है कि सुबह से शाम के बीच केवल लंच के वक्त को छोड़कर पूरा समय जंगल में जंगली जानवरों की देखरेख में जाता है। खासतौर पर चीता अभी हमारी प्राथमिकता है। सुबह 7.30 बजे जाते हैं, तो हम लंच करने ही आते हैं। इस दौरान हम चीता को समझने उसकी रिक्वायरमेंट को जज कर उसे इस हेबिटेट में ढालने का प्रयास करते हैं। इतना समय देने के कारण ही अब हम उनकी मूल आवश्यकताएं पूरी कर पा रहे हैं और वो खुद को यहां कंफर्टेबल महसूस कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि इस नई प्रजाति के एनिमल चीता की ब्रीडिंग यहां पर शुरू हो गई, एक अध्ययन के अनुसार जिस काम को अफ्रीका को करने में 25 साल का समय लगा, उसे हमने 2 से ढाई साल में कर दिखाया।

चीता प्रोजेक्ट दिल के सबसे करीब, चीता मुखी है प्रेरणा

25 साल के Wildlife के इस सफर में ऐसे तो बहुत से भावुक पल मेरी जिंदगी में आए। लेकिन चीता प्रोजेक्ट मेरे लिए सबसे अनोखा रहा। इस प्रोजेक्ट के हर पल का मैं गवाह हूं… इसलिए ये प्रोजेक्ट मेरे दिल के सबसे करीब है.. और फीमेल चीता ज्वाला की बेटी चीता मुखी मेरी प्रेरणा…

वाइल्ड एनिमल अपने जीवन को कैसे आगे ले जाते हैं। इसका उदाहरण है देश में चीतों की पुनर्स्थापना के बाद पहली बार जन्म लेने वाले शावकों में से एक मात्र जीवित फीमेल शावक मुखी। मध्यप्रदेशके कूनो नेशनल पार्क में जन्मीं मुखी की कहानी बड़ी ही प्रेरणादायक है। भारत में पहली बार इंडिया में फीमेल चीता ज्वाला ने 4 शावकों को जन्म दिया था। ये चार बहन-भाई भीषण गर्मी के दिनों में जन्मे थे। जब कूनो का तापमान करीब 47-48 डिग्री था, हीट वेव्ज चल रही थीं। हम चीता के पास पहुंचे तो बड़े खुश थे कि पहली बार भारत की धरती पर चीता शावकों ने जन्म लिया है। तभी हमने देखा कि तीन शावक गर्मी और हीट वेव्ज को सह नहीं पाए और उनकी मौके पर ही मौत हो गई। चीता शावकों के शव इधर-उधर पड़े थे और हम देख पा रहे थे कि उनकी मदर ज्वाला कितनी बेचैनी से एक शावक के आसपास घूम रही थी… निगरानी के दौरान हमने उसमें हल्की सी हरकत महसूस की। वह सांस ले रही थी...ज्वाला इसीलिए अपने उस शावक के आसपास घूम रही थी। वो पल इतना इमोशनल था कि आप समझ सकती हैं कि कैसे एक मां से उसके बच्चे दूर हो रहे हों और वो कुछ नहीं कर पा रही.. उस मां की बेचैनी…।

फर्स्ट एड देते ही मुखी के रिस्पॉन्ड ने हमें खुश कर दिया

चीता मुखी (Cheetah Mukhi) भी अपने तीन भाई-बहनों की तरह मौत के करीब... लगभग पूरी तरह से मरणासन्न स्थिति में थी। उसकी मां उसके आसपास घूमती जा रही थी। लेकिन वो अपने उस आखरी बच्चे को बचाने के लिए कुछ नहीं कर पा रही थी और न ही एक्स्ट्रीम वेदर से उसे बचा पा रही थी। स्थिति को देखते हुए हमें लगा इसे तुरंत हमारी जरूरत है। उसी वक्त वरिष्ठ अधिकारियों (Wildlife के असली हीरो) से डिस्कस किया रेस्क्यू की अनुमति मिलते ही हमने तुरंत रेस्क्यू प्लान किया। उसकी मां के सामने रेस्क्यू करना खतरे से खाली नहीं था, लेकिन जैसे ही ज्वाला का ध्यान हटा हमने उसका रेस्क्यू किया और उसे फर्स्ट एड दिया। थोड़ी देर में ही वह रिस्पॉन्ड करने लगी। उसका ये रिस्पॉन्ड देख हम खुशी से उछल पड़े थे… हमें उसमें मौत से लड़ने की स्पीरीट नजर आई। आधे घंटा में उसकी तबियत में और सुधार दिखा… धीरे-धीरे वह रिवाइव होती चली गई।

मां ज्वाला ने मुखी को एक्सेप्ट ही नहीं किया… तब लगा अब हम ही इसका भविष्य

वाइल्ड एनिमल का एक नेचुरल इंस्टिट होता है 'survival is the fittest…' और यहां तो मां ज्वाला का अपनी शावक मुखी (Cheetah Mukhi) के लिए इमोशनल अटैचमेंट भी पूरी तरह से खत्म हो गया था। मेरे लिए वो भी मानसिक रूप से एक ऐसा एक्सपिरीयंस था…जो दिमाग हिला देने वाला था। उस वक्त मैंने सीखा कि वाइल्डलाइफ में एक जीवन कैसे आगे बढ़ता और चलता है। तब समझ पाए वाइल्ड एनिमल के नेचुरल इंस्टिट 'survival is the fittest' के सही मायने… हमारे लगातार प्रयासों के बावजूद मां ने उस बच्चे को एक्सेप्ट नहीं किया।

चीता मुखी की कहानी सुनने यहां करें क्लिक

मुखी को मां ज्वाला से मिलाना था रिस्की एफर्ट

बच्चे (Cheetah Mukhi) को उसकी मां से मिलाने के हमारे प्रयास काफी रिस्की नजर आ रहे थे। क्योंकि उस बच्चे पर मां का एग्रेशन था। अगर हम समझदारी और संजीदगी से इस काम में इंटरफेयर नहीं करते तो, शायद वो मर भी सकता था। जब हमें लगा कि अब इसके जीवन को खतरा है, मां इसे पूरी तरह से नकार चुकी है, अब वो उसे एक्सेप्ट नहीं करेगी, तब हमने निर्णय लिया कि इसका अगला भविष्य हम ही हैं।

हमें उसकी सुरक्षा करनी थी इसलिए साथ ले आए

हम मुखी को वापस अपने साथ ले आए। उसे खिलाना-पिलाना शुरू किया। उसकी नेचुरल लाइफ का ध्यान रखते हुए उसे पाला। ताकि बिना किसी मानव हस्तक्षेप के वो अपनी लाइफ शुरू सके। वो संघर्ष के साथ आगे बढ़ी। इसी बीच उसका पैर फ्रैक्चर हो गया। दो-तीन महीने उसका इलाज चला। मुश्किलों का सामना करते हुए, वो आगे बढ़ती रही। ये शायद उसकी जीने की दृढ़ इच्छा ही थी कि आज वह जीवित है और अडल्ट हो गई है। कितनी खुशी हो रही है ये बताते हुए कि भारत की जमीन पर जन्मी पहली फीमेल चीता मुखी बड़ी हो गई है और यह जानकर पूरा देश खुश हो रहा है।

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Wildlife के असली हीरो का एपिसोड-2 आपको कैसा लगा? हमें कमेंट करके जरूर बताएं। अगले एपिसोड-3 में हम मिलेंगे ऐसी शख्सियत से जो Wildlife के सबसे करीब हैं... रात का अंधेरा हर पल बड़ा खतरा... सन्नाटों के बीच सफर करते ये न डरते हैं न पीछे हटते हैं, असामाजिक तत्वों और अपराध का जंगल में दखल इन्हें कतई बर्दाश्त नहीं.... तब तक ताजा खबरों के लिए पढ़ते रहिए patrika.com...


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