भारत के बच्चों में मोबाइल स्क्रीन की लत पड़ रही है। (Image: Perplexity)
Mobile Addiction in Children: बच्चों में मोबाइल की लत और बढ़ता स्क्रीनटाइम उनका बचपन छीन रहा है। आज शायद ही कोई ऐसा घर हो, जहां बच्चे स्मार्टफोन के आकर्षण से बचे हों।
मैकएफी के अध्ययन में सामने आया है कि देश में 10-14 वर्ष के 83 फीसदी बच्चे स्मार्टफोन का उपयोग (Smartphone Uses in Children) करते हैं, जो वैश्विक औसत 76 फीसदी से सात फीसदी ज्यादा है। बच्चों की दिनचर्या में मोबाइल का बढ़ता दखल उन्हें न केवल अपनों से अलग-थलग कर रहा है, बल्कि उन्हें मानसिक रूप से चिड़चिड़ा और बीमार बना रहा है।
बच्चों में बढ़ती मोबाइल-स्क्रीन की लत आज अभिभावकों के लिए बड़ी चिंता बन गई है। बच्चों को इस डिजिटल निर्भरता से निकालने के लिए देश के कई हिस्सों में अनोखे और रचनात्मक प्रयोग किए जा रहे हैं। कहीं नो स्क्रीन डे अभियान चलाया जा रहा है तो कहीं बच्चों को आउटडोर गेम्स खिलाए जा रहे हैं। पढ़ने के रोचक तरीके अपनाकर शिक्षक बच्चों को मोबाइल की निर्भरता से दूर ले जा रहे हैं। आइए देश में ऐसे ही कुछ अजब-अनोखे प्रयोगों पर एक नजर डालते हैं।
कोलकाता, दिल्ली, इंदौर आदि शहरों में फैमिली गेम नाइट का चलन बढ़ा है। इसमें सप्ताह में एक दिन मोबाइल छोड़ पूरा परिवार बोर्ड गेम, क्विज और कहानी सत्र में शामिल होता है।
दिल्ली, पुणे और बेंगलूरु के कुछ स्कूलों में हफ्ते में एक दिन नो स्क्रीन डे घोषित किया गया है। उस दिन बच्चे मोबाइल, टैबलेट की जगह आउटडोर गेम्स, क्राफ्ट या पढऩे-लिखने में हिस्सा लेते हैं।
कुछ स्कूलों ने मोबाइल बैंक पहल शुरू की है। इसमें कक्षा में जाने से पहले बच्चों से मोबाइल लेकर जमा कर लिए जाते हैं। हालांकि ज्यादातर स्कूलों में मोबाइल ले जाना वर्जित है।
बेंगलूरु में कर्नाटक सरकार, एआइजीएफ और एक हेल्थकेयर कंपनी ने बियॉन्ड स्क्रीन डिजिटल डिटॉक्स अभियान शुरू किया है। इसका मकसद है बच्चों और युवाओं में डिजिटल निर्भरता कम करना और मानसिक स्वास्थ्य के लिए परामर्श सुविधा उपलब्ध कराना। इसके अलावा यहां निम्हांस (राष्ट्रीय मानसिक आरोग्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान) की ओर से अभिभावकों के लिए एक्सेसिव गेमिंग एंड स्क्रीन टाइम वर्कशॉप आयोजित की जा रही हैं। इसमें उन्हें समझाया जाता है कि बच्चों के डिजिटल व्यवहार को कैसे समझें और उसे स्वस्थ आदतों में बदलें।
राजकोट के विनोबा भावे पे सेंटर स्कूल के 650 बच्चों को हर सप्ताह अलग-अलग टास्क दिया जाता है। कभी साज सज्जा तो कभी वेस्ट से बेस्ट जैसे विषय दिए जाते हैं। इससे बच्चों में रचनात्मकता आती है और मोबाइल के इस्तेमाल से भी दूर रहते हैं। हर सप्ताह पुरस्कृत कर उन्हें प्रोत्साहित भी किया जाता है।
कर्नाटक सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा के दौरान स्क्रीन टाइम सीमा तय करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। अब प्राथमिक कक्षाओं के लिए 30 मिनट से अधिक की ऑनलाइन क्लास की अनुमति नहीं है।
जयपुर की मीनाक्षी सुखवाल कहती हैं, हमारे बच्चे मोबाइल की लत के शिकार थे। इसके बाद हमने सभी के लिए घर में मोबाइल इस्तेमाल का समय तय कर दिया। बच्चों के साथ इनडोर और आउटडोर गेम खेलते हैं। बच्चे को कहानियां सुनाने और किताबें पढऩे के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अब बच्चे मोबाइल से दूर रहकर खुश हैं।
मध्यप्रदेश के बुरहानपुर की वर्षा सोनी ने बच्चों को मोबाइल से दूर रखने के लिए रचनात्मक तरीके अपनाए। बच्चों को पेंटिंग, क्राफ्ट और डांस जैसी गतिविधियों में जोड़ा और खुद भी मोबाइल से दूरी बनाई। उन्होंने बेटी नीबा और बेटे बरनीत को खाने में भी प्रतियोगिता का भाव जोडकऱ बच्चों को मोबाइल से दूर किया।
सूरत. गोड़ादरा क्षेत्र की एक सोसायटी के प्रवेश भूतड़ा ने बताया कि कुछ साल पहले तक सोसायटी के बच्चे नवरात्र और गणेशोत्सव के दौरान भी घरों में मोबाइल पर ही व्यस्त रहते थे। इसके बाद हमने इन्हें रोचक प्रतियोगिताएं शुरू की। अब अन्य सोसायटियों में भी ऐसा आयोजन होने लगा है और बच्चे जुडऩे लगे हैं।
सागर के शासकीय रविशंकर स्कूल में शिक्षिका शोभा मिश्रा ने ‘नो मोबाइल’ पहल शुरू की है। बच्चों को ड्रॉइंग, पेंटिंग सहित कई सांस्कृतिक कार्यक्रम में व्यस्त रखा जाता हैं। घर पर भी व्यस्त रखने के लिए विभिन्न प्रतियोगिताएं कराई जाती हैं। नतीजा ये हुआ कि मोबाइल पर ज्यादा समय देने वाले बच्चों ने इससे दूरी बना ली।
जयपुर के शिक्षक अविनाश मिश्रा ने बताया, खेल-कूद, पेंटिंग, कहानी सुनाना और समूह में मिलकर प्रोजेक्ट बनाते हैं। इससे बच्चे आपस में चर्चा करते हैं और उनकी सोच बढ़ी है। घर के लिए भी क्रिएटिव टास्क दिए जाते हैं, ताकि बच्चा बिना मोबाइल का इस्तेमाल किए दिमाग लगाकर इन्हें पूरा करे। ये तरीके कारगर भी हुए, अब बच्चों में मोबाइल से दूरी भी बनी।
6 अक्टूबर 2025: पश्चिम बंगाल के सबंग में मोबाइल नहीं मिलने से 16 वर्षीय किशोर ने जान दी।
2 अक्टूबर 2025: दिल्ली के लालबाग में मोबाइल गेम को लेकर बहन से झगड़े के बाद 15 वर्षीय किशोर ने खुदकुशी की।
4 अगस्त 2025: छमतरी, छत्तीसगढ़ में मोबाइल नहीं मिलने से 17 वर्षीय छात्र ने खुदकुशी की।
1 अगस्त 2025: इंदौर में मोबाइल गेम में पैसे हारने के बाद 13 वर्षीय किशोर ने जान दी।
ज्यादा स्क्रीन टाइम पढ़ाई और सेहत दोनों के लिए खराब है। मोबाइल पर हिंसक गेम खेलने और आपत्तिजनक सामग्री देखने के बाद बच्चा अकेला रहना पसंद करता है। छोटी-छोटी बातों पर नाराज होता है। मोबाइल हाथ से लेते ही गुस्सा करता है या तोडफ़ोड़ करने की कोशिश करता है। मोबाइल की लत छुड़वाने के लिए रचनात्मक पहल करनी चाहिए। - सुनीता शर्मा, बाल मनोविज्ञान विशेषज्ञ
Published on:
12 Oct 2025 09:33 am
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