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Sunshine Study: भारत में धूप के घंटे हो रहे कम, बादल और प्रदूषण जिम्मेदार, बढ़ेंगी 20 फीसदी तक ये बीमारियां

Loosing Sunshine: इस साल बारिश का सीजन लंबा खींच जाने की वजह से अगर यह लग रहा है कि हमारे हिस्से धूप कम हो रही है तो आपका यह अंदाजा बिल्कुल सही है। इसकी पुष्टि के लिए आंकड़े मौजूद हैं। जानिए नई स्टडी में क्या बातें सामने आई हैं? डॉ. नलिन जोशी से जानिए धूप के घंटे कम होने से स्वास्थ्य की चुनौनियों कैसे बढ़ जाएंगी।

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Sunshine Loosing in India

डॉ. नलिन जोशी ने बताया कि धूप कम होने से कैसे बढ़ेंगी स्वास्थ्य की चुनौतियों (Photo: Ians)

Sunshine Study: भारत में धूप के घंटों में तेजी से कमी आ रही है। एक ताजे अध्ययन में यह बताया गया है कि किन वजहों से देश के अलग अलग इलाकों में धूप के घंटों में कमी आ रही है। आइए समझते हैं इससे क्या नुकसान होंगे?

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU), पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) और भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि पिछले तीन दशकों में भारत के अधिकांश हिस्सों में धूप के घंटों में लगातार कमी आ रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि घने बादलों (Dense cloud) और बढ़ते एरोसोल प्रदूषण (Aerosol Pollution) के चलते हो रहा है।

1988 से 2018 तक की अवधि का अध्ययन

Nature's Scientific Reports: इस महीने "नेचर्स साइंटिफिक रिपोर्ट्स" में प्रकाशित शोध में 1988 से 2018 के बीच नौ क्षेत्रों के 20 मौसम केंद्रों से धूप के घंटे के आंकड़ों की जांच की गई। इसमें पाया गया कि वार्षिक धूप के घंटे पूर्वोत्तर को छोड़कर सभी क्षेत्रों में घट गए हैं। इस अध्ययन में उस अवधि को शामिल किया गया जब सूर्य का प्रकाश इतना मजबूत होता है कि उसे धूप के घंटे के रूप में दर्ज किया जा सके।

उत्तर भारत में 13 घंटे से ज्यादा धूप में आई कमी

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर के अनुसार, बीएचयू के वैज्ञानिक मनोज के. श्रीवास्तव ने बताया कि पश्चिमी तट पर औसतन प्रति वर्ष धूप के घंटों में 8.6 घंटे की कमी देखी गई जबकि उत्तर भारतीय मैदानी इलाकों में सबसे अधिक 13.1 घंटे की गिरावट दर्ज की गई।" उन्होंने बताया कि पूर्वी तट और दक्कन के पठार में भी क्रमशः 4.9 और 3.1 घंटे प्रति वर्ष की गिरावट देखी गई। यहां तक कि मध्य अंतर्देशीय क्षेत्र में भी प्रति वर्ष लगभग 4.7 घंटे की कमी देखी गई।"

सूर्य की चमक पड़ रही मद्धिम

अध्ययन में कहा गया है कि अक्टूबर और मई के बीच जो सर्दी और गर्मी के महीने और यह सामान्य तौर सूखे महीने होते हैं, इनमें धूप में वृद्धि हुई। वहीं जून से सितंबर तक जो मानसून के महीने हैं, उनमें धूप में तेज़ी से गिरावट आई। अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों ने दीर्घकालिक "सौर मंदता" के लिए उच्च एरोसोल सांद्रता को जिम्मेदार ठहराया। इसके अलावा औद्योगिक उत्सर्जन, बायोमास दहन और वाहनों के प्रदूषण से निकलने वाले सूक्ष्म कण को भी जिम्मेदार ठहराया है।

एरोसोल की मात्रा से धूप के घंटों में आ रही कमी

पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि वायुमंडल में एरोसोल की उच्च मात्रा आकाश में बादलों को अधिक समय तक टिकने में मदद करती है और इससे ज़मीन तक पहुंचने वाले सूर्य के प्रकाश के घंटे कम हो जाते हैं।

सौर ऊर्जा परियोजना पर पड़ेगा असर

धूप के घंटों में कमी के चलते सौर ऊर्जा उत्पादन, कृषि और जलवायु मॉडलिंग पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हालांकि भारत सबसे तेज़ी से बढ़ते सौर ऊर्जा बाज़ारों में से एक के रूप में उभरा है लेकिन धूप की कम उपलब्धता बिजली उत्पादन और नवीकरणीय बुनियादी ढांचे की दीर्घकालिक योजना को प्रभावित कर सकती है।

बढ़ेंगी त्वचा और श्वांस संबंधी बीमारियां: डॉ. जोशी

जयपुर के श्वसन संबंधी मामलों के डॉक्टर नलिन जोशी ने पत्रिका डॉटकॉम से बातचीत में कहा ​कि प्रदूषण के चलते ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ रही है। धूप की कमी से त्वचा, एलर्जी और सांस संबंधी बीमारियों में कम से कम 15 से 20 फीसदी का इजाफा होगा।

कैसे होता है एरोसोल का निर्माण?

डॉ. नलिश जोशी ने बताया कि प्रदूषण अल्ट्रावॉयलेट बी किरणों रोकता है। इसमें बहुत सारे कम्पोनेंट। कुछ लार्ज पार्टिकल्स हैं। कुछ स्माल पार्टिकल्स एसओ4 और सीओ2 आदि हैं। कुछ गैसेज हैं- एनओ2 (No2), पीएम10 (PM10) आदि। ये सब मिलकर एरोसोल बनाती हैं।

उनका कहना है कि अल्ड्रवॉयलेट वी किरणें नहीं आने से विटामिन डी कम बनेगा। इससे शरीर की इम्यूनिटी कम होगी। स्लीप डिस्टरेंब बढ़ेगा और मनोवैज्ञानिक समस्याएं बढ़ेंगी। धूप की कमी से हृदय संबंधी, न्यूरो संबंधी रोगों में भी इजाफा होगा। इससे महिलाओं और पुरुषों में कुछ कैंसर के खतरे बढ़ेंगे। इससे आपकी आंतों की समस्या भी बढ़ेगी।

करना क्या चाहिए?

डॉ. जोशी हमें इस बारे में दूरगामी योजना बनानी पड़ेगी हम पराली को लेकर दशकों से हल्ला मचा रहे हैं, लेकिन पराली को नष्ट करने का कोई नया तरीका हमने नहीं खोजा है। जिस देश के वैज्ञानिक ब्रह्मोस बना सकते हैं, वहां पराली से निपटने का तरीका भी तैयार किया जा सकता है। इसके लिए इच्छाशक्ति और पैसा खर्च करना पड़ेगा।

JDA में ग्रामीण क्षेत्रों शामिल होने के क्या होंगे नुकसान?

डॉ. जोशी का कहना है कि हमें तेज से बढ़ रहे शहरीकरण पर लगाम लगाना पड़ेगा। अभी जयपुर विकास प्राधिकरण (Jaipur Development Authority) ने एक काम किया है। ग्रामीण क्षेत्रों को नगर निगम में शामिल कर लिया है। इससे होगा क्या? बिल्डर्स की संख्या बढ़ेगी। इमारतें बढ़ जाएंगी। कंक्रीट के जंगल बढ़ते जाएंगे। बिल्डर्स हराभरा जंगल खा जाएंगे। खेत खा जाएंगे। ये सब जब होगा तो पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ेगा।


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