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राजस्थान में कांग्रेस का संगठन सृजन अभियान: क्यों हो रहा है विवाद? गहलोत ने क्यों जताई नाराजगी? जानें पूरी कहानी

Rajasthan Politics: राजस्थान में कांग्रेस का संगठन सृजन अभियान संगठन अभियान गुटबाजी और आंतरिक कलह की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है।

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Rajasthan Congress

फोटो- पत्रिका नेटवर्क

Rajasthan Politics: राजस्थान में कांग्रेस का संगठन सृजन अभियान संगठन को मजबूत करने और जिला अध्यक्षों के चयन के लिए शुरू किया था। लेकिन अब यह अभियान गुटबाजी और आंतरिक कलह की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है। इस अभियान को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक ट्वीट किया, जिसके बाद इस अभियान पर और सवाल खड़े हो गए।

अशोक गहलोत ने इसे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का नायाब प्रयोग बताया, लेकिन साथ ही राजस्थान में इसको लेकर सवाल उठाए। गहलोत ने खासतौर पर बड़े नेताओं के दखल और एकतरफा प्रस्तावों पर नाराजगी जताई।

जोधपुर, अजमेर, झुंझुनूं, जयपुर, कोटा, भीलवाड़ा, राजसमंद, चुरू, दौसा सहित कई जिलों में पर्यवेक्षकों की बैठकों के दौरान शक्ति प्रदर्शन और नारेबाजी ने पार्टी की पुरानी गुटबाजी को फिर से हवा दी है। यह अभियान पारदर्शिता और कार्यकर्ताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया था, लेकिन अब सवालों के घेरे में है। आखिर यह विवाद क्यों गहरा रहा है? क्या है इसका पूरा माजरा?

संगठन सृजन अभियान: उद्देश्य और प्रक्रिया

कांग्रेस हाईकमान ने राजस्थान में संगठन को मजबूत करने के लिए जिला अध्यक्षों के चयन के लिए संगठन सृजन अभियान शुरू किया। यह अभियान गुजरात मॉडल पर आधारित है, जिसमें पर्यवेक्षकों को सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं से राय लेकर तीन से छह नामों का पैनल तैयार करना है।

इस प्रक्रिया का उद्देश्य पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से जिला अध्यक्षों का चयन करना है, ताकि संगठन में सभी की भागीदारी सुनिश्चित हो और पार्टी की जमीनी ताकत बढ़े। पर्यवेक्षकों को 20 अक्टूबर तक अपनी फाइनल रिपोर्ट तैयार कर हाईकमान को सौंपनी है। लेकिन इस प्रक्रिया में बड़े नेताओं का दखल और दावेदारों का शक्ति प्रदर्शन इसे विवादों में घेर रहा है।

जोधपुर में क्यों भड़का विवाद?

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गढ़ जोधपुर में संगठन सृजन अभियान को लेकर सबसे ज्यादा विवाद उठा है, इसकी चर्चा भी पूरे प्रदेश से लेकर दिल्ली तक है। हाल ही में जोधपुर शहर में नए जिला अध्यक्ष के चयन के लिए एआईसीसी पर्यवेक्षक सुशांत मिश्रा ने सरदारपुरा, जोधपुर शहर और सूरसागर विधानसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कीं।

इन बैठकों में दावेदारों से आवेदन लिए गए और फीडबैक इकट्ठा किया गया। लेकिन सूरसागर में हुई एक बैठक में माहौल उस समय गरमा गया, जब गहलोत गुट के करीबी माने जाने वाले प्रीतम शर्मा और पायलट गुट के समर्थक राजेश रामदेव के बीच नोकझोंक हो गई।

बैठक में वन-टू-वन मीटिंग की लिस्ट को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप लगाए। प्रीतम शर्मा ने दावा किया कि लिस्ट में पायलट गुट के समर्थकों को जानबूझकर शामिल नहीं किया गया, जिसके जवाब में राजेश रामदेव ने पलटवार किया। यह तकरार इतनी बढ़ी कि अन्य कार्यकर्ताओं को बीच-बचाव करना पड़ा। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इसके बाद इस अभियान की पोल खुलती नजर आ रही है।

गहलोत ने क्यों जताई नाराजगी?

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस पूरे घटनाक्रम पर नाराजगी जताते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपनी बात रखी। उन्होंने लिखा कि संगठन सृजन अभियान हाईकमान का एक अनूठा प्रयोग है, जिसका मकसद सभी कार्यकर्ताओं की राय लेकर जिला अध्यक्षों का चयन करना है। लेकिन कई जगहों पर किसी नेता को जिला अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पास करने या किसी सीनियर नेता को इसके लिए अधिकृत करने की खबरें सामने आई हैं, जो हाईकमान की भावना के खिलाफ है।

गहलोत ने कहा कि सीनियर नेताओं द्वारा अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना या कार्यकर्ताओं द्वारा एकतरफा प्रस्ताव पास करना इस अभियान के उद्देश्य को कमजोर करता है।

गहलोत की इस टिप्पणी के बाद जोधपुर, अजमेर, कोटा और दौसा जैसे अन्य जिलों में हो रही गुटबाजी को भी हवा मिली है। सूत्रों के अनुसार, कई जगहों पर सीनियर नेता अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को जिला अध्यक्ष बनाने के लिए दबाव बना रहे हैं, जो इस अभियान की पारदर्शिता पर सवाल उठा रहा है। लेकिन यहां सवाल ये भी उठ रहा है कि कांग्रेस में गुटबाजी कौनसे बड़े नेता कर रहे हैं? क्योंकि गहलोत के ट्विट का इशारा सीधा प्रदेश नेतृत्व की तरफ माना जा रहा है।

अन्य जिलों में भी गुटबाजी का शोर

जोधपुर के अलावा, अजमेर, कोटा और दौसा में भी संगठन सृजन अभियान के दौरान गुटबाजी खुलकर सामने आई है। अजमेर में गहलोत और पायलट समर्थकों के बीच तनातनी देखने को मिली। कोटा में पूर्व मंत्री प्रहलाद गुंजल और शांति धारीवाल के समर्थक आमने-सामने आ गए, जिसके चलते नारेबाजी और शक्ति प्रदर्शन की नौबत आई।

दौसा में तो सीनियर नेताओं ने राहुल गांधी की भावना के विपरीत जाकर मौजूदा जिला अध्यक्ष को फिर से नियुक्त करने का सुझाव दे दिया, जो इस अभियान के मकसद के खिलाफ है। इन घटनाओं ने कांग्रेस की आंतरिक एकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सोशल मीडिया पर यूजर्स ने तंज कसा कि संगठन सृजन अभियान का मतलब गुट सृजन अभियान तो नहीं?

हाईकमान का हस्तक्षेप और तटस्थ पर्यवेक्षक

इस विवाद को देखते हुए कांग्रेस हाईकमान ने कड़ा रुख अपनाया है। राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने पर्यवेक्षकों को निर्देश दिए हैं कि विवादों को शांत किया जाए और प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए। पार्टी सूत्रों के अनुसार, जोधपुर में तटस्थ पर्यवेक्षक भेजने पर विचार किया जा रहा है ताकि गुटबाजी को रोका जा सके।

वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने दावा किया कि गुटबाजी की कोई गुंजाइश नहीं है और सभी दावेदार पार्टी के सच्चे सिपाही हैं।

कौन हैं दावेदार और कहां हो रहा दखल?

संगठन सृजन अभियान के तहत कई जिलों में सीनियर नेताओं द्वारा अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर जिला अध्यक्षों के चयन में दखल देने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं। सीकर में सुनीता गठाला, हनुमानगढ़ में शबनम गोदारा, गंगानगर में अंकुर मिगलानी, बालोतरा में प्रियंका मेघवाल, बाड़मेर में लक्ष्मण गोदारा और करनाराम मेघवाल, जोधपुर देहात में राकेश चौधरी और प्रमिला चौधरी, जोधपुर शहर में सलीम खान और नरेश जोशी के नाम सामने आ रहे हैं।

वहीं, अजमरे में रघु शर्मा गुट और धर्मेंद्र राठौड़ गुट, भीलवाड़ा में रामलाल जाट और धीरज गुर्जर गुट, राजसमंद में सीपी जोशी गुट, चुरू में कृष्णा पूनिया और राहुल कस्वां, जयपुर में पहले पुष्पेन्द्र भारद्वाज का नाम सामने आने के बाद अंदरखाने विवाद हो गया। इसके अलावा कई अन्य जिलों में कांग्रेस से हारे हुए प्रत्याशी, पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद, पूर्व विधायक भी अपने-अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल करते नजर आ रहे हैं।

दखल ने अभियान को पटरी से उतारा

संगठन सृजन अभियान को लेकर कांग्रेस हाईकमान की मंशा साफ है कि जिला अध्यक्षों का चयन पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से हो। राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और केसी वेणुगोपाल इस प्रक्रिया को पूरी तरह निष्पक्ष रखने की कोशिश में हैं। लेकिन दावेदारों का शक्ति प्रदर्शन और सीनियर नेताओं का दखल इस अभियान को पटरी से उतार रहा है। आने वाले दिनों में, जब पर्यवेक्षक अपनी फाइनल रिपोर्ट तैयार करेंगे, तब और जिलों में गुटबाजी की खींचतान सामने आ सकती है।

कांग्रेस नेतृत्व का कहना है कि दावेदारों में जोश के कारण नारेबाजी और शक्ति प्रदर्शन हो रहा है, लेकिन यह गुटबाजी नहीं है। डोटासरा ने दावा किया कि सभी को अपनी दावेदारी जताने का हक है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह अभियान वाकई संगठन को मजबूत करेगा, या फिर कांग्रेस की पुरानी गुटबाजी की बीमारी को और गहरा करेगा?


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