
बच्चों के मन की सुनें, तनाव दूर करें
आज के समय में स्कूलों में बच्चों पर पढ़ाई का दबाव स्वाभाविक रूप से बना हुआ है। हर बच्चा अव्वल आना चाहता है और अभिभावकों की भी यही अपेक्षा रहती है, लेकिन सभी का मानसिक विकास, समझ और रुचि समान नहीं होती। ऐसे में सभी पर एक समान दबाव डालना तनाव का कारण बनता है। बच्चों के मन की बात सुनें, उन्हें उनकी रुचि के अनुसार प्रोजेक्ट और गतिविधियाँ दें। कार्य को दबाव की बजाय प्रेरणा से करवाएं। उनकी झिझक, भय और उलझनों को समझें—सिर्फ़ पढ़ाई ही नहीं, बल्कि उनके भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी ध्यान दें। ऐसा वातावरण बनेगा तो उनका तनाव स्वतः कम होगा।
– निर्मला वशिष्ठ, राजगढ़ (अलवर)
स्कूलों में बच्चों की रुचि का समय जरूरी
हर दिन स्कूल में एक ऐसा पीरियड होना चाहिए जब बच्चों को अपनी पसंद का कार्य करने की आज़ादी मिले—चाहे वह किताबें पढ़ना हो, योग करना, खेलना, संगीत या नृत्य सीखना या पाक कला जैसी कोई गतिविधि। बच्चों से खुलकर संवाद किया जाए और ऐसा वातावरण बनाया जाए जहाँ वे अपने भय या गलतियों के बारे में निःसंकोच बात कर सकें। शिक्षकों को बच्चों के तनाव के संकेतों को पहचानने और उनसे संवेदनशीलता से व्यवहार करने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण देना चाहिए।
– शालिनी ओझा, बीकानेर (राजस्थान)
बच्चों को खुलकर उड़ान भरने दें
बच्चों की पढ़ाई को बोझ नहीं, आनंद का माध्यम बनाया जाए। स्कूलों में स्वतंत्रता और रचनात्मकता का माहौल हो। आज के समय में किताबों का भार बच्चों की उमंग को दबा देता है। हर स्कूल में प्रतिदिन एक खेल का घंटा अनिवार्य होना चाहिए, प्रशिक्षित खेल अध्यापक और पर्याप्त खेल सामग्री उपलब्ध हो। इससे बच्चे मानसिक तनाव से मुक्त रहेंगे और आत्महत्या जैसे दुर्भाग्यपूर्ण कदमों से भी बच सकेंगे।
– कैलाश चन्द्र मोदी, सादुलपुर
खेलकूद और सकारात्मक माहौल से तनावमुक्ति
स्कूलों और कोचिंग संस्थानों में टेस्टों में पिछड़ने, अभिभावकीय अपेक्षाओं, आर्थिक दबाव और प्रतियोगिता की भावना से छात्रों में तनाव बढ़ रहा है। स्कूलों को सकारात्मक, सुरक्षित और सहयोगी माहौल प्रदान करना चाहिए। नियमित योग, व्यायाम, कला, चित्रकारी और खेलकूद जैसी गतिविधियाँ बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाती हैं। अभिभावकों को भी बच्चों के लिए सहज और प्रेरणादायक वातावरण बनाना चाहिए ताकि वे खुलकर सीख सकें।
– प्रकाश भगत, चांदपुरा (कुचामन सिटी)
स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें
बच्चों को तनाव से मुक्त रखने के लिए स्कूलों को सुरक्षित और सहयोगी वातावरण सुनिश्चित करना चाहिए। जीवन-कौशल शिक्षा, योग, पोषण और खेल को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए। शिक्षकों को बच्चों के साथ खुला संवाद अपनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाए। प्रत्येक वर्ष चार बार मानसिक स्वास्थ्य की स्क्रीनिंग हो और एंटी-बुलिंग टास्क फोर्स गठित की जाए। स्कूलों में ‘टेलिमानस’ हेल्पलाइन नंबर 14416 प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाए। शिक्षकों को ‘साइकोलॉजिकल फर्स्ट ऐड’ और ‘गेटकीपर ट्रेनिंग’ दी जाए ताकि वे बच्चों की भावनात्मक ज़रूरतों को समझ सकें।
– भूपेश दीक्षित, जयपुर
खुशियों का पाठ भी पढ़ाया जाए
स्कूल अब सिर्फ़ किताबों तक सीमित न रहें—यहाँ खुशियों, आत्मविश्वास और संवाद का पाठ भी पढ़ाया जाए। शिक्षा का उद्देश्य केवल अंक प्राप्त करना नहीं, बल्कि बच्चों में आत्मविश्वास और संतुलन विकसित करना हो। हर दिन थोड़ी प्रार्थना, थोड़ा खेल और खुला संवाद बच्चों को तनावमुक्त बना सकता है।
– डॉ. दीपिका झंवर, जयपुर
शारीरिक दंड से बढ़ता तनाव
स्कूलों में बच्चों के प्रति किसी भी तरह की हिंसात्मक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। डांट-फटकार, चांटा या दंड के रूप में दौड़ाना बच्चों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है और उन्हें तनावग्रस्त बनाता है। शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों से स्नेहपूर्वक व्यवहार करें। छात्रों को यह जानकारी दी जानी चाहिए कि वे शारीरिक या मानसिक दंड के विरोध में आवाज़ उठा सकते हैं और उनके अधिकार कानून द्वारा संरक्षित हैं।
– नरेश कानूनगो ‘शोभना’, देवास (म.प्र.)
स्कूलों में सकारात्मक और सहयोगी वातावरण जरूरी
बढ़ती घटनाओं से बचने के लिए स्कूल प्रबंधन को ध्यान और योग जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए ताकि बच्चे मानसिक रूप से शांत और केंद्रित रह सकें। उन्हें अपनी रुचियों और प्रतिभाओं के विकास का अवसर मिले। परीक्षा के दबाव को घटाकर, मार्गदर्शन और परामर्श सत्रों के ज़रिए उन्हें असफलता से निपटना सिखाया जाए। जब बच्चे सुरक्षित और सम्मानित महसूस करते हैं, तो वे तनाव से दूर रहते हैं।
– डॉ. अजिता शर्मा, उदयपुर
स्कूलों में योग और खेल अनिवार्य हों
बच्चों पर पढ़ाई का अनावश्यक दबाव न बनाया जाए। स्कूलों में योग, खेल और प्रतियोगिताएँ आयोजित हों। सौहार्दपूर्ण वातावरण में बच्चों को सीखने के अवसर दिए जाएं, ताकि वे मानसिक रूप से स्वस्थ और आत्मविश्वासी बन सकें।
– वसंत बापट, भोपाल
बच्चों की भावनाएँ समझें
छात्रों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रेरित करें। जब वे परेशान या चिंतित हों, तो शिक्षकों को उनसे मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। स्कूल में ऐसा वातावरण बनाया जाए जहाँ वे बिना झिझक अपने मन की बात कह सकें।
– अजीत सिंह सिसोदिया, खारा (बीकानेर)
तनावमुक्त माहौल में पढ़ाई जरूरी
स्कूलों में सकारात्मक, स्वच्छ और तनावमुक्त वातावरण बनाना आवश्यक है। शिक्षकों को धैर्यपूर्वक छात्रों की समस्याएँ सुननी चाहिए। पढ़ाई को रचनात्मक और आनंददायक बनाया जाए। खेल, योग, संगीत और कला जैसी गतिविधियाँ नियमित रूप से हों। बच्चों पर अत्यधिक दबाव न डालें और प्रतिस्पर्धा की बजाय सहयोग की भावना विकसित करें। समय-समय पर बच्चों की काउंसलिंग और शिक्षकों का प्रशिक्षण भी आवश्यक है।
– मोदिता सनाढ्य, उदयपुर
योग और संवाद से तनाव कम होगा
बच्चों को मानसिक शांति देने के लिए स्कूलों में योग और मेडिटेशन को अनिवार्य किया जाए। खेलकूद की गतिविधियाँ बढ़ाई जाएं और बच्चों से डांट की बजाय प्रेमपूर्वक बात की जाए। गलती होने पर उन्हें समझाकर आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करें। इससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ेगा और मानसिक विकास होगा।
– शैलेंद्र टेलर, उदयपुर
शिक्षा के साथ जीवन कौशल भी जरूरी
बच्चों को केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित न रखें। स्कूलों में खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम और समाजसेवा जैसे कार्यों से जोड़ें। पुस्तकालयों में ज्ञानवर्धक किताबें उपलब्ध हों ताकि बच्चे पढ़ाई को बोझ नहीं, आनंद समझें और व्यावहारिक ज्ञान से आत्मनिर्भर बनें।
– हरिप्रसाद चौरसिया, देवास (म.प्र.)
बच्चों को खुली बातचीत का अवसर दें
महंगी शिक्षा, अंकों का दबाव और डिजिटल अकेलापन बच्चों के भीतर तनाव और डर पैदा कर रहा है। उन्हें अपनी भावनाएँ साझा करने के लिए सुरक्षित माहौल मिले। उनके प्रश्नों का धैर्यपूर्वक उत्तर दें और उन्हें भावनात्मक सहारा दें ताकि वे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ सकें।
– डॉ. प्रेमराज मीना, करौली
आनंदमय वातावरण से घटे तनाव
स्कूलों में आनंदमय, सहयोगी और रचनात्मक वातावरण बनाया जाए। खेल, योग, ध्यान, संगीत और कला को नियमित रूप से शामिल किया जाए। परीक्षा का दबाव घटाकर संवाद-आधारित शिक्षण अपनाया जाए। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर निरंतर ध्यान देने से ही तनावमुक्त पीढ़ी तैयार होगी।
– संजय माकोड़े, बैतूल
अंकों से अधिक कौशल पर ध्यान दें
बच्चों पर पढ़ाई का बोझ कम कर कौशल आधारित शिक्षा दी जानी चाहिए। अभिभावकों की काउंसलिंग आवश्यक है ताकि वे बच्चों पर अनावश्यक दबाव न डालें। बच्चे की रुचि और उम्र के अनुसार उसे अवसर दिए जाएं। शिक्षक और माता-पिता मिलकर तनाव पहचानें और उसे दूर करने के उपाय करें।
– डॉ. चांदनी श्रीवास्तव, रायपुर
स्कूलों में खेल पीरियड अनिवार्य हों
लंबे अध्ययन सत्रों से बच्चों में ऊब बढ़ती है। उन्हें तनावमुक्त रखने के लिए स्कूलों में खेल के नियमित पीरियड जोड़े जाएं। खेल न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक ऊर्जा भी बढ़ाता है और बच्चों में रचनात्मकता बनाए रखता है।
– प्रियव्रत चारण ‘लव’, जोधपुर
तनावमुक्त शिक्षा के लिए संवाद आवश्यक
स्कूलों में बच्चों के लिए सकारात्मक माहौल बनाया जाए। खेल-कूद और व्यायाम के लिए समय निर्धारित हो। शिक्षक और छात्र के बीच खुला संवाद कायम रहे। होमवर्क और परीक्षा के दबाव को कम किया जाए। सप्ताह में एक दिन बच्चों की काउंसलिंग अवश्य की जाए ताकि वे मानसिक रूप से संतुलित रहें।
– शिवजी लाल मीना, जयपुर
Published on:
04 Nov 2025 05:24 pm
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