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संपादकीय : विश्व कप का ताज हमारी बेटियों को करेगा प्रेरित

भारत की महिला क्रिकेट टीम ने रविवार रात को नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में जो धमाका किया, उसकी गूंज लंबे समय तक बनी रहेगी। बनी रहनी भी चाहिए, क्योंकि यह ऐतिहासिक उपलब्धि है। विश्व कप चैंपियन बनना छोटी उपलब्धि हो भी नहीं सकती। 52 साल हुए हैं महिला क्रिकेट विश्व कप को शुरू […]

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भारत की महिला क्रिकेट टीम ने रविवार रात को नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में जो धमाका किया, उसकी गूंज लंबे समय तक बनी रहेगी। बनी रहनी भी चाहिए, क्योंकि यह ऐतिहासिक उपलब्धि है। विश्व कप चैंपियन बनना छोटी उपलब्धि हो भी नहीं सकती। 52 साल हुए हैं महिला क्रिकेट विश्व कप को शुरू हुए और यह पहली बार है जब ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे देशों की बपौती माना जाने वाला यह ताज वहां से निकलकर भारत के मस्तक पर सुशोभित हुआ है। इसे महिला क्रिकेट में वर्चस्व का स्थानांतरण माना जा सकता है, ठीक पुरुष विश्व कप की तरह जब 1983 में भारत ने वेस्ट इंडीज से क्रिकेट की सत्ता छीन ली थी। वह कमाल कपिल देव की टीम ने किया था। अब ठीक वैसा कारनामा महिलाओं के लिए हरमनप्रीत कौर की टीम ने कर दिखाया है। जब मील का पहला पत्थर कायम होता है तो आगे से आगे मंजिलों के लिए रास्ते खुलते जाते हैं। दुनिया जानती है कि कपिल देव की टीम के विश्व विजेता बनने के बाद भारतीय पुरुष क्रिकेट में किस कदर सकारात्मक बदलाव आए और भारतीय टीम की आज की धाक में भी उसी जीत का कहीं न कहीं योगदान है। इसलिए पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि महिला विश्व चैंपियन बनने के बाद भारतीय महिला क्रिकेट की तस्वीर बदलने वाली है। खेल का माहौल अब बहुत सिर चढ़कर बोलेगा और यह बुलंदियों तक पहुंचने के अनेक मार्ग भी खोलेगा। आने वाली कई-कई पीढिय़ां भारत की इस जीत से प्रेरित और प्रभावित होंगी। जिस तरह से कोई भी किसी रोल मॉडल में अपनी छवि देखता है, ठीक उसी तरह लड़कियां इस जीत की नायिकाओं में खुद को फिट बिठाने और उनका कारनामा दोहराने में लग जाएंगी।
हरमनप्रीत कौर के शब्दों में हम जीत सकते हैं, इसके प्रति अविश्वास कभी भी नहीं रहेगा। बस आगे प्रगति के सोपान तय करने के लिए हमें इस जीत को अपनी आदत बनाना होगा। पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि लंबे समय तक यह आदत बनी रहेगी और भारत के सिर पर और कई ताज सुशोभित होते रहेंगे। भारतीय टीम पूरी तरह संतुलित और क्षमतावान थी। यह चैंपियन बनने की पूरी हकदार थी। अकेली यही टीम थी जिसने किसी के लिए भी मुकाबला आसान नहीं होने दिया। लीग मुकाबलों में ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका को पसीना लाने वाली यही टीम थी। यह ऐसा समय था, जब टीम कुछ लडख़ड़ाई थी, लेकिन एक बार जो यह संभली तो इसके बाद उसके सामने टिकने लायक कूवत किसी की नहीं रही थी। सात बार के चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के 338 रन बनने के बावजूद उसे आसानी से पीट देने के बाद भारत के विश्व कप विजेता बनने में कोई संशय शेष नहीं रहा था। फाइनल का परिणाम इसकी गवाही है कि दक्षिण अफ्रीका हमारे सामने बिल्कुल टिक नहीं पाया। देश का मान बढ़ाने के लिए बेटियों को सलाम!