माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों की परेशानियों को समझें, उनका सहयोग करें और यह महसूस न होने दें कि वे अकेले हैं। बच्चों के साथ समय बिताना और उनकी भावनाओं को समझना अत्यंत आवश्यक है।
बच्चों को जीवन की वास्तविकता का पता नहीं होता और थोड़ी सी विषम परिस्थिति में वे घबरा कर गलत निर्णय ले लेते हैं। जीवन सबसे बड़ा उपहार है, जो हमें अपनी गलतियों को सुधारने और बिगड़ी चीजों को सही करने का मौका देता है। माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों की परेशानियों को समझें, उनका सहयोग करें और यह महसूस न होने दें कि वे अकेले हैं। बच्चों के साथ समय बिताना और उनकी भावनाओं को समझना अत्यंत आवश्यक है।
आज आत्महत्या के मामलों में वृद्धि हो रही है, जिसे रोकने के लिए दोस्ती सबसे बड़ा सहारा बन सकती है। कठिन समय में अच्छे दोस्त होने से समस्याओं का समाधान निकल सकता है। यदि इंसान दिल खोलकर दोस्तों से अपनी बात कहे, तो आत्महत्या जैसे विचार बदल सकते हैं।
बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति रोकने के लिए माता-पिता को अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। बच्चों पर अनावश्यक अपेक्षाओं का दबाव डालने से बचें और उनके साथ अधिक समय बिताएं। उनकी रुचियों और इच्छाओं को समझकर, उनके भविष्य निर्माण में मदद करें।
माता-पिता को बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य सुधारने के लिए उन्हें अध्यात्म और सकारात्मक सोच की ओर प्रेरित करना चाहिए। मंत्रोच्चार और ध्यान के माध्यम से बच्चों को शांत और नकारात्मक विचारों से बचाया जा सकता है।
बच्चों की आत्महत्या रोकने के लिए माता-पिता और शिक्षकों को सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। बच्चों को उनके रुचि के विषयों में प्रोत्साहित करें। मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बढ़ावा दें और उन्हें जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए प्रेरित करें।
बच्चों की भावनाओं को समझने और उन्हें सही मार्गदर्शन देने के लिए परिवार और समाज को संवेदनशीलता और संवाद बढ़ाने की आवश्यकता है। मित्रवत व्यवहार से ही बच्चों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने से रोका जा सकता है।
बच्चे मानसिक तौर पर अपरिपक्व होते हैं और दबाव सहन करने की क्षमता नहीं होती। स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई और अन्य गतिविधियों में माता-पिता का मार्गदर्शन अहम भूमिका निभा सकता है। अन्य बच्चों से तुलना करना बच्चों के मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। अतः अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों से उनकी दैनिक दिनचर्या पर समय-समय पर बात करें।
आधुनिक युग में बच्चे सामाजिक प्रवृत्ति से एकाकी प्रवृत्ति की ओर बढ़ रहे हैं। इसका प्रमुख कारण अभिभावकों का व्यवहार और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स हैं। मोबाइल फोन ने बच्चों की सहनशीलता को कम कर दिया है। यदि माता-पिता बच्चों को उनकी गलती पर डांट दें, तो वे इसे भारी बेइज्जती समझते हैं और आत्महत्या जैसा कदम उठाने से नहीं चूकते। दूसरी ओर, माता-पिता की अप्रत्याशित परिणामों की अपेक्षा भी बच्चों को ऐसा करने पर मजबूर करती है। आत्महत्या जैसी प्रवृत्तियों को रोकने के लिए नैतिक शिक्षा को व्यवहार में लाना अत्यंत आवश्यक है।
बच्चों में आत्महत्या के बढ़ते मामलों के कारणों का विश्लेषण करना बहुत जरूरी है। यह सब अचानक नहीं होता। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों के साथ ऐसा संबंध बनाएं, जिससे बच्चे अपनी हर बात, चाहे वह गलती ही क्यों न हो, साझा कर सकें। हर बच्चे की पढ़ाई की क्षमता अलग होती है, इसे लेकर उन पर दबाव न डालें। साथ ही, बच्चों की संगति पर ध्यान देना भी महत्वपूर्ण है। यदि बच्चे में कोई असामान्य हरकत दिखे, तो उसे अकेला न छोड़ें और तुरंत मनोचिकित्सक से सलाह लें।
Updated on:
23 Jan 2025 02:50 pm
Published on:
23 Jan 2025 02:48 pm
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