राजस्थान पत्रिका के संस्थापक कर्पूर चन्द्र कुलिश। फोटो: पत्रिका
राजस्थान पत्रिका के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चन्द्र कुलिश के जन्मशती वर्ष के मौके पर उनसे जुड़े संस्मरण साझा किए हैं पद्म भूषण और ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित मोहन वीणा वादक पं. विश्वमोहन भट्ट ने। कुलिश जी के बनाए धारावाहिक ‘गीत गोविन्द’ से अपने जुड़ाव और कुलिश जी से समय-समय पर हुई मुलाकातों का जिक्र करते हुए पं. भट्ट का कहना है कि कुलिश जी के व्यक्तित्व का प्रभावशाली पहलू उनकी निर्भीकता थी। उनका एक ही मंत्र था - सच कहने का साहस रखो।
मुझे आज भी कुलिश जी से अपनी वह मुलाकात याद है जब वे ‘गीत गोविन्द’ धारावाहिक बनाने में जुटे थे। उन्होंने मुझे बुलाकर सहज इस धारावाहिक का संगीत पक्ष देखने का आदेश दिया। साथ ही यह भी कहा कि गीत गोविन्द केवल धुनों का नहीं, भावों का महाकाव्य है। इसे संगीत के साथ ही जीना होगा। उनकी सादगी और भरोसे ने मुझे भीतर तक छू लिया। वे हर पद का मर्म समझाते-कभी राधा का विरह, कभी कृष्ण का माधुर्य। मैं हैरान था यह महसूस करके जैसे यह महाकाव्य उनकी रगों में बहता था। संगीत संयोजन करते समय उनका मार्गदर्शन मेरे लिए गुरु-दर्शन जैसा अनुभव था।
फिर वर्ष 1994 का वह अवसर आया जब मुझे प्रतिष्ठित ग्रैमी अवार्ड मिला। कुलिश जी की पहल पर ही जयपुर के बिड़ला ऑडिटोरियम में इस अवार्ड के बाद मेरा नागरिक अभिनंदन हुआ। तब मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत थे। राज्य सरकार से एक लाख रुपये की सम्मान राशि भी प्राप्त हुई थी। उस दिन मंच पर खड़े होकर मैं सोच रहा था कि यह सम्मान कुलिश जी की उदारता और दृष्टि का ही परिणाम है। इसके बाद भी जब जब भी उनसे मुलाकात होती तो उनका मार्गदर्शन मुझे जीवन को दिशा देने का काम करने वाला ही रहा। वे बातचीत में कहते थे कि पत्रकार या कलाकार तभी बड़ा होता है जब वह जमीनी सच्चाई से जुड़ा रहे। साथ ही नसीहत भी देते कि कभी आसमान में उड़कर धरती से रिश्ता मत खोना। उनकी बातें इतनी साफ और व्यावहारिक होती थीं कि जैसे धुंध छंट जाए और रास्ता साफ दिखने लगे।
कुलिश जी के व्यक्तित्व का सबसे प्रभावशाली पहलू उनकी निर्भीकता थी। वे सत्ताधारियों को सच कहने से कभी नहीं हिचके। एक बार की मुलाकात में उन्होंने कहा था कि ‘सत्ता से दोस्ती पत्रकारिता को बीमार कर देती है। पत्रकार का एक ही दोस्त है, जनता।’ कुलिश जी का लेखन सदैव प्रेरक और सरकारों को सचेत करने वला रहा।अपने संपादकीय सहयोगी कैलाश मिश्र के निधन पर उन्होंने जिन भावों से श्रद्धांजलि आलेख लिखा वह आत्मीयता और संवेदनाओं से भरा था। अपने समय-समय पर अग्रलेख व आलेखों में भी उन्होंने यह साबित किया कि पत्रकारिता का धर्म है- जनता की आवाज बनना, सत्ता से सवाल करना। साथ ही लोकतंत्र की रक्षा करना। उनका मानना था कि अगर पत्रकार सच छुपाता है या दबाव में झुकता है, तो वह अपने धर्म से भटक जाता है। पत्रिका के शुरुआती दौर में सीमित संसाधनों के बीच भी उनके सपने बड़े थे। वे कहते भी थे, कि कागज और स्याही कम हो सकती है लेकिन कभी हौसला कम नहीं होना चाहिए। कुलिश जी की आज के युवाओं के लिए बड़ी सीख यही है कि संघर्ष कितना भी बड़ा हो, ईमानदारी और जनपक्ष को ध्यान में रखकर काम करना चाहिए। नवोदित पत्रकारों को तो इसका खास ध्यान रखना चाहिए। मेरा मानना है कि कुलिश जी ने सदैव जनपक्ष का साथ दिया और कभी पत्रकारिता को सत्ता की कठपुतली नहीं बनने दिया। उनका एक ही मंत्र था-सच कहने का साहस रखो, जनता के साथ खड़े रहो और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सदैव आगे रहो। देखा जाए तो यही पत्रकारिता का सच्चा धर्म है।
Updated on:
20 Oct 2025 10:48 am
Published on:
20 Oct 2025 10:45 am
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