भुवनेश जैन
चौबीस लोगों की जान लेने वाले जैसलमेर बस हादसे पर पूरा राजस्थान शर्मिंदा है। इस हादसे ने देश ही नहीं, पूरी दुनिया के सामने राजस्थान की छवि पर कालिख पोत दी है। आश्चर्य है, इतना सब होने के बावजूद हमारे परिवहन मंत्री स्वयं को और अपने विभाग को हर तरह की जिम्मेदारी से बरी कर रहे हैं।
‘पत्रिका’ ने इस हादसे को लेकर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री व परिवहन मंत्री से बातचीत की थी। घोर अचरज की बात है कि उन्होंने हादसे के लिए स्वयं तो कोई जिम्मेदारी लेने से इंकार कर ही दिया, बल्कि ‘जांच’ होने तक अपने विभाग को भी क्लीन चिट दे दी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की जिम्मेदारी केवल नीति और निगरानी की है।
कौन नहीं जानता कि जिन सरकारी विभागों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है, उनमें परिवहन विभाग अग्रणी है। यही महकमा है जिसमें भ्रष्टाचार ही सबसे बड़ा शिष्टाचार हैं। कॉन्ट्रैक्ट परमिट के नाम पर खुले आम अवैध यात्री बसें चलती हैं। सरकारी कोष को करोड़ों का चूना लगाया जाता है और अवैध वसूली का बंटवारा हो जाता है। क्या बस मॉडिफिकेशन के कारखाने अफसरों की नजरों से छुपे हैं, लेकिन जब नोटों का चश्मा चढ़ता है तो वे कारखाने नजर नहीं आते। स्लीपर बसों में इमरजेंसी गेट और सीटों की लम्बाई व संख्या के मानदंड धरे रह जाते हैं। भौतिक सत्यापन में कुछ होता है, वास्तविकता कुछ और। कुछ समय पूर्व तक ‘पत्रिका’ कार्यालय के पास परिवहन विभाग में असली कर्मचारी कम दिखते थे और ऐवजी कर्मचारी व दलाल पूरा दफ्तर संभालते थे। यह बात नीचे से ऊपर तक सब जानते थे, लेकिन वर्षों तक यह चलता रहा।
जैसलमेर दुखांतिका में 24 लोग मरे हैं, 200 भी मर जाएं तो भी अफसरों की आखों में शर्म नहीं आएगी। वे ऊपर से अभयदान लेकर बैठे हैं। फिर जब मंत्री भी उन्हें बचाने के लिए कमर कस ले तो फिर मौतों की क्या चिंता। जनता है- वह तो मरेगी ही कीड़े-मकोड़ों की तरह। दीपावली तो बस अफसरों की ही मननी चाहिए। यह कैसी नीति है? कैसी निगरानी है? मंत्री कहते हैं कि जांच में कोई दोषी पाया गया तो कार्रवाई होगी। कैसी जांचें होती है, सब जानते हैं। निलंबन क्या कोई सजा है? लीपा-पोती कर दी जाती है। अगली बार से भ्रष्टाचार की दरें और बढ़ जाती हैं। सरकारी अस्पताल, सरकारी स्कूल, सरकारी परिवहन व्यवस्था, इनका कोई धणी-धोरी नजर नहीं आता। स्कूल गिर जाए, बच्चे मर जाएं, मंत्री को कोई फर्क नहीं पड़ता। अस्पताल में आग लग जाए, मरीज भुन जाएं, मंत्री की बला से। ‘ऐसे लापरवाह मंत्रियों के बारे में जनता क्या कह रही है’, क्या सरकार के पास यह पता लगाने की कोई प्रणाली नहीं है! क्या वह अपने ही मंत्रियों को मर्यादा में नहीं रख सकती? शासन किसी का भी हो, सरकार को समझना होगा कि जनता की मूलभूत समस्याओं पर काम करना जरूरी है। मंत्री महोदय का जिस तरह का वक्तव्य आया है, उससे तो कतई नहीं लगता कि जनता की तकलीफ से उनका कोई सरोकार है।
bhuwan.jain@in.patrika.com
Published on:
19 Oct 2025 10:26 am
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