अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ओर से चीन से आयातित वस्तुओं पर सौ प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा ने विश्व व्यापार में हलचल मचा दी है। यह निर्णय केवल आर्थिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश है कि अमेरिका तकनीकी और संसाधन निर्भरता को राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौती मानता है। वाशिंगटन और बीजिंग के संबंध पहले से ही तनावपूर्ण हैं, ऐसे में यह कदम चीन की उस शक्ति को चुनौती देने का प्रयास है, जो उसने वैश्विक आपूर्ति-शृंखला पर नियंत्रण के माध्यम से अर्जित की है।
चीन पहले ही दुर्लभ धातुओं यानी रेयर अर्थ्स पर अब तक के सबसे सख्त नियंत्रण लागू करने की घोषणा कर चुका है। इसमें सबसे उल्लेखनीय प्रावधान विदेशी प्रत्यक्ष उत्पाद नियम का है, जो अमेरिकी शैली में अपनाया गया है। इस नियम के अनुसार वे विदेशी कंपनियां भी चीनी अनुमति के बिना ऐसे उत्पाद निर्यात नहीं कर पाएंगी, जिनमें चीनी मूल के रेयर अर्थ या उनसे विकसित प्रौद्योगिकी का उपयोग हुआ हो। यह वही नीति है, जिसे अमेरिका ने पहले चीनी कंपनियों के विरुद्ध अपनाया था। अब चीन उसी औजार को पश्चिम के विरुद्ध प्रयोग कर रहा है। दिसंबर से प्रभावी होने वाले इन नियमों के अंतर्गत पाँच नई धातुएँ — होमियम, एर्बियम, थुलियम, यूरोपियम और यटरबियम भी नियंत्रण के दायरे में आई हैं। अब चीन सत्रह में से बारह रेयर अर्थ तत्वों के निर्यात पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण रखता है। इसके साथ ही चीन ने अपने नागरिकों को भी विदेशी रेयर अर्थ परियोजनाओं में भाग लेने से मना किया है, जब तक उन्हें सरकारी अनुमति न मिल जाए। यह स्पष्ट संकेत है कि बीजिंग संसाधन के साथ ज्ञान और प्रौद्योगिकी पर भी नियंत्रण स्थापित करना चाहता है।
चीन का तर्क है कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है, क्योंकि कुछ विदेशी कंपनियां इन धातुओं का प्रयोग सैन्य उपकरणों और मिसाइल तकनीक में कर रही थीं। परंतु उसका वास्तविक उद्देश्य अमेरिका पर दबाव बनाना है, विशेष रूप से ऐसे समय में जब ट्रंप ने चीनी वस्तुओं पर सौ प्रतिशत टैरिफ की घोषणा की है। यह ‘आर्थिक टकराव’ की स्थिति है, जहाँ तकनीकी निर्भरता को सामरिक हथियार के रूप में देखा जा रहा है। रेयर अर्थ तत्व आधुनिक तकनीकी ढाँचे की रीढ़ हैं। इलेक्ट्रिक वाहन, स्मार्टफोन, सोलर पैनल, रडार, जेट इंजन और सेमीकंडक्टर तत्वों पर निर्भर हैं। चीन विश्व का लगभग 60 प्रतिशत खनन और 90 प्रतिशत प्रसंस्करण करता है। इस नियंत्रण से उसे उद्योग, ऊर्जा और रक्षा क्षेत्रों में भारी सामरिक शक्ति मिली है। अमेरिका वर्षों से इस निर्भरता को घटाने की कोशिश कर रहा है, किंतु चीन के नए प्रतिबंधों ने उसकी चिंता और बढ़ा दी है। नीति-निर्माताओं का मानना है कि यदि चीन रेयर अर्थ का निर्यात रोक दे, तो अमेरिका की रक्षा और तकनीकी क्षमता ठप हो जाएगी। बीजिंग की प्रतिक्रिया संयमित किंतु दृढ़ है। यह संकेत समूचे पश्चिमी गठबंधन को है कि संसाधनों पर पकड़ शक्ति और राजनीति दोनों की नई मुद्रा बन चुकी है। शायद इसी कारण रेयर अर्थ तत्वों को ‘इक्कीसवीं सदी का तेल’ कहा जा रहा है।
इस वैश्विक तनाव के बीच पाकिस्तान की सक्रियता उल्लेखनीय है। हाल में इस्लामाबाद और वाशिंगटन के बीच रेयर अर्थ सहयोग पर वार्ता प्रारंभ हुई है। पाकिस्तान का दावा है कि उसके उत्तरी और बलूचिस्तान क्षेत्रों में इन तत्वों के भंडार हैं, जिन्हें वह अमेरिका को उपलब्ध करा सकता है। सतही तौर पर यह आर्थिक अवसर प्रतीत होता है, परंतु गहराई में यह भू-राजनीतिक चाल है। आर्थिक संकट और कूटनीतिक अलगाव से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए यह साझेदारी उसे फिर से वैश्विक प्रासंगिकता दिलाने का साधन हो सकती है। इस समूचे परिदृश्य का भारत पर गहरा, यद्यपि अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा। एशिया में संसाधन राजनीति के इस नए मोड़ से शक्ति-संतुलन बदल सकता है। यदि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच खनिज सहयोग बढ़ता है, तो भारत को अपनी नीति में रणनीतिक समायोजन करना होगा। भारत के पास भी लिथियम, नियोडिमियम और कोबाल्ट जैसे क्रिटिकल मिनरल्स हैं, किंतु उनका दोहन और प्रसंस्करण अभी आरंभिक अवस्था में है। आवश्यकता है कि भारत केवल कच्चा माल निर्यातक न बने, बल्कि तकनीकी मूल्यवर्धन का केंद्र बने।
इस दिशा में भारत ‘क्रिटिकल मिनरल्स अलायंस’ जिसमें अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, के साथ सक्रिय साझेदारी से वैश्विक आपूर्ति-शृंखला में विश्वसनीय केंद्र बन सकता है। इसके लिए दीर्घकालिक नीति, तकनीकी निवेश और पर्यावरणीय संतुलन की आवश्यकता है। आने वाले दशकों में शक्ति-संरचना पारंपरिक हथियारों या सॉफ्टवेयर से नहीं, बल्कि संसाधनों की उपलब्धता और नियंत्रण से तय होगी। भारत को अपने खनिज संसाधनों को राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक नीति व कूटनीतिक रणनीति का सशक्त आधार बनाना होगा।
इक्कीसवीं सदी की प्रतिस्पर्धा केवल आर्थिक नहीं, बल्कि संसाधन-आधारित शक्ति संघर्ष है। रेयर अर्थ मिनरल्स पर चीन का वर्चस्व, अमेरिका की रणनीतिक प्रतिक्रिया और इनके बीच पाकिस्तान की अवसरवादी कूटनीति — ये तीनों मिलकर वैश्विक शक्ति-संतुलन का नया भूगोल गढ़ रहे हैं। भारत के लिए यही समय है कि वह रणनीतिक स्पष्टता, नवाचार और आत्मनिर्भरता के साथ अपनी भूमिका तय करे।
Published on:
14 Oct 2025 04:00 pm
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