पत्रकारिता कोई व्यवसाय नहीं है, यह समाज कल्याण के प्रति व्यक्ति का वह गुण है जो अपने निजी हित से परे पूरी मुखरता के साथ आत्म अभिव्यक्ति को स्वर देता है। हिंदी पत्रकारिता में यह विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहां पत्रकार की बिरादरी समाज में अलग रुतबा और रसूख रखती है। पत्रकार एक साधारण मनुष्य ही होता है जो अपने आसपास की घटनाओं और परिस्थितियों पर केवल सजग निगरानी ही नहीं रखता, बल्कि एक सक्षम प्रतिक्रिया भी देता है। ऐसे में हिंदी पत्रकारिता का पत्रकार किसी समुदाय का वह पहला व्यक्ति होता है जो सामाजिक और असामाजिक तत्वों से सबसे पहले आंखें मिलाता है। हालांकि, इसमें एक दूरदर्शी नजरिए की भी आवश्यकता होती है, जो किसी विषय की गंभीरता को मापने के लिए उपयोगी होती है। इसी नजरिए से हिंदी पत्रकार की मौलिक विशेषज्ञता आकार लेती है।
पत्रकार किसी एक विषय या बीट के लिए अपने अनुभव का विस्तार करता है। यह विस्तार उसकी अपनी सुचिता से जुड़े दर्शक, पाठक या श्रोता वर्ग से संबंधित होता है, जो उस पत्रकार की विश्वसनीय छवि को आधार मानता है। ऐसे में हिंदी पत्रकारिता के किसी माध्यम की विश्वसनीयता भी सीधे तौर पर उस पत्रकार के विस्तार पटल से रेखांकित होती है। इसका उदाहरण है सुरेंद्र प्रताप सिंह की छवि, जिन्होंने एक आधे घंटे के अपने एपिसोड से टीवी पत्रकारिता में 'आज तक' जैसे कालजयी ब्रांड को जन्म दिया। सुधि वर्ग अपनी पसंद और नापसंद के पहले चरण में माध्यम को भी जांचता है। इस जांच प्रक्रिया में उसके अपने अनुभव, उसकी रुचि और माध्यम की सहज उपलब्धता बहुत मायने रखती है। ऐसा नहीं कि दर्शक, श्रोता या पाठक की रुचियां स्थाई हों या उनमें बदलाव की संभावना न हो। इसके विपरीत, देश, काल, और परिस्थितियों के साथ-साथ ये अभिरुचियां बदलती रहती हैं। यह बदलाव एक निश्चित समय सीमा में होता है, जिसे बड़े समाचार पत्र समूह, मीडिया हाउस और जनसंचार एजेंसियां भांप लेती हैं और इसके अनुसार ही कन्टेंट डिजाइन करने पर जोर देती हैं।
यहीं से शुरू होता है खबर की दिशा, प्रायोजित कॉन्टेंट और जनता के मुद्दे। इसमें बाजार अपने हित को इंजेक्ट करने की कुत्सित चेष्टा करता है और कहीं न कहीं सफल भी हो जाता है। खबरनवीसों को इस बात से कोई मतलब नहीं कि हिंदी पत्रकारिता में करियर बनाने के लिए किसी सार्थक गुरु का अनुयायी होना जरूरी है या पूर्ण व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करके मीडिया एथिक्स के प्रति संवेदनशील होना जिम्मेदारी है। अंतत: खबर वही बिकाऊ है, जिसमें पाठक का हित हो न हो, पर पाठक की रुचि और अभिरुचि आवश्यक होती है। यही कारण है कि हिंदी पत्रकारिता में, चाहे माध्यम कोई भी हो, उसमें विषयवस्तु की विविधता एक अनिवार्य तत्व के रूप में शामिल होती है।
हिंदी पत्रकारिता के लिए चार बुनियादी बातें न बदली हैं, न बदलेंगी। इनमें पहली बात है सच्चाई की निरंतर खोज। दूसरी है बदलाव की पहल या बदलाव की दिशा में काम करना। तीसरी है आम लोगों के हितों की रखवाली और उनके भले के लिए काम करना। चौथी और संभवत: सबसे जरूरी है अपनी आजादी को बरकरार रखना—पूंजी, तकनीक और सत्ता, सभी से। अगर ये चारों बाधित हो रही हैं या होती हुई लगें, तो उनके लिए संघर्ष करना भी हिंदी पत्रकारों का काम है। इसमें मिलने वाली सफलता का स्तर ही उनकी असली सफलता है।
हिंदी पत्रकारिता के कुछ सरोकार जो किसी साधारण नागरिक को एक अहम पत्रकार के रूप में स्थापित करते हैं, उनमें सबसे पहले हैं सत्य और निष्पक्षता, जो खबरों को प्रस्तुत करने के लिए जरूरी हैं। इसके बाद बारी आती है जनता को महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर जागरूक करने और उन्हें सूचित करने की। यह आवश्यक है कि हिंदी पत्रकारिता जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ काम करे, ताकि जनता का विश्वास बनाए रखा जा सके। जिम्मेदारी और जवाबदेही हिंदी पत्रकारिता की रीढ़ होती हैं। इन सरोकारों में आगे हम निष्पक्ष विश्लेषण को रखते हैं। हिंदी पत्रकारिता में निष्पक्ष विश्लेषण किसी पत्रकार की नैतिक जवाबदेही को तय करता है, जिससे जनता को विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने में मदद मिल सके। इसके बाद भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ लडऩा और जनता के अधिकारों की रक्षा करना हिंदी पत्रकारिता को पूजनीय बनाता है। जनता खबरदार रहे, सजग रहे और निश्चिंत होकर विभिन्न स्रोतों से जानकारी प्राप्त करे। एक पत्रकार होने के नाते हिंदी पत्रकारिता की जिम्मेदारी को समझना चाहिए और जनता को पत्रकारों से अपेक्षा होती है कि वे सत्य और निष्पक्षता के साथ काम करें। तभी जनता का सहयोग प्राप्त होता है। जनता को भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और हिंदी पत्रकारिता को समर्थन देना चाहिए, जो इन मुद्दों पर काम कर रही है।हिंदी पत्रकारिता सत्य का शोध और मूल्य प्रतिष्ठापना का सतत संघर्ष है। हिंदी पत्रकारिता का कालधर्म युगबद्ध परिवेश को सूक्ष्म पारखी दृष्टि से देखता है। कला, साहित्य, काल, इतिहास के अंधेरे-उजालों के बीच हिंदी पत्रकारिता सूर्य वीथि बनाती है, जो राष्ट्रीय लोक चेतना को उद्दीप्त करने का समर्थ माध्यम है। गीता में जगह-जगह 'शुभ दृष्टि' का प्रयोग है। यह शुभ दृष्टि ही हिंदी पत्रकारिता है, जिसमें गुणों को परखना तथा मंगलकारी तत्वों को प्रकाश में लाना शामिल है। सूरज 'समदृष्टि' से सभी जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों को पोषण देता है। वास्तव में, वही सच्चा पत्रकार है, जो सूरज के इसी भाव को थामे जनता को खबरदार और सक्षम बनाता है। सम्यक् हित में सम्यक् प्रकाशन को हिंदी पत्रकारिता कहा जा सकता है। असत्य, अशिव और असुंदर के कौंधते शोर पर 'सत्यं शिवं सुंदरम्' की शंखध्वनि ही हिंदी पत्रकारिता है। हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर हमें इस शुभ दृष्टि को और सशक्त करना होगा, ताकि यह जनता के हित में सत्य और सुंदरता का प्रकाशन कर सके।
-डॉ. ओमप्रकाश प्रजापति, सहायक प्रोफेसर, हिंदी विभाग
हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला
Published on:
29 May 2025 03:29 pm