"आपको फर्क डालने के लिए बड़ा होने की ज़रूरत नहीं है।" इस एक पंक्ति में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आवाज उठाने वाली लिसिप्रिया कंगुजम की सोच और साहस झलकता है। मणिपुर की इस बालिका ने बहुत कम उम्र में वह कर दिखाया जो बड़े-बड़े नेता भी नहीं कर पाए—जलवायु संकट को लेकर वैश्विक मंचों पर दुनिया का ध्यान खींचा। नेपाल भूकंप से लेकर ओडिशा के चक्रवातों तक, प्रकृति के प्रकोपों ने उनके भीतर संवेदना, जागरूकता और संकल्प को जन्म दिया। उन्होंने 'द चाइल्ड मूवमेंट' की शुरुआत की और आज यह एक वैश्विक मंच बन चुका है।पौधरोपण से लेकर प्लास्टिक के खिलाफ अभियान, स्कूलों में जलवायु शिक्षा की मांग से लेकर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलनों तक—लिसिप्रिया की यात्रा प्रेरणा, नेतृत्व और उम्मीद की मिसाल है। यह सिर्फ एक बच्ची की कहानी नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बदलाव की शुरुआत है। पत्रिका संवाददाता राखी हजेला से लिसिप्रिया कंगुजम की खास बातचीत-
प्रश्न- जलवायु परिवर्तन के लिए इतनी कम उम्र में आवाज उठाने की प्रेरणा आपको कहां से मिली? क्या कोई विशेष घटना थी जिसने आपको इसके लिए कदम उठाने को मजबूर किया?
उत्तर - मैं लिसिप्रिया कंगुजम मेरी जलवायु कार्यकर्ता बनने की यात्रा किसी एक घटना से प्रेरित नहीं थी, बल्कि इसने मेरे शुरुआती वर्षों में देखे गए मानवीय पीड़ा और पर्यावरणीय आपदाओं के अनुभवों से आकार लिया। वर्ष 2015 में नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप के बाद मैंने अपने पिता के साथ राहत कार्यों में हिस्सा लिया। उस समय मैं चार साल की थी, टीवी पर जब मैंने रोते-बिलखते बच्चों को देखा तो वहीं से जलवायु परिर्वतन और प्राकृतिक आपदा शब्दों की जानकारी हुई।
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प्रश्न- आपने जब महज छह साल की उम्र में एक्टिविज्म की शुरुआत की, तब आपके परिवार और दोस्तों की क्या प्रतिक्रिया थी? उन्होंने आपको किस तरह समर्थन दिया?
उत्तर- जब मैंने छह साल की उम्र में अपनी जलवायु जागरूकता की यात्रा शुरू की, तब मेरे परिवार ने मेरा पूरा साथ दिया। मेरे पिता कनारजीत कंगुजम स्वयं एक मानवीय राहत कार्यकर्ता थे, जिन्होंने मुझे बहुत कम उम्र से ही आपदाओं की वास्तविकता से परिचित कराया। वह मुझे अकसर अपने साथ लेकर जाते थे। उन्होंने मुझे नेपाल भूकंप और ओडिशा के चक्रवातों के दौरान राहत कार्यों में साथ ले जाकर संवेदना और जिम्मेदारी की भावना सिखाई।
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प्रश्न- आपने The Child Movement की स्थापना की। इसका उद्देश्य क्या है और यह कैसे दुनियाभर के बच्चों को जलवायु कार्रवाई के लिए प्रेरित कर रहा है?
उत्तर जब मैं छह साल की थी तब मैंने वर्ष 2018 में द चाइल्ड मूवमेंट की स्थापना की। जो आज एक वैश्विक स्वैच्छिक मंच है, जहां बच्चे जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण न्याय और आपदा लचीलापन जैसे मुद्दों पर अपनी आवाज उठा सकते हैं। इसका उद्देश्य जागरूकता फैलाना, नीतियों पर असर डालना और बच्चों के नेतृत्व में बदलाव लाना है। मुझे लगता है कि इस आंदोलन से मेरी उम्र के बच्चे काफी जागरुक हुए हैं। मैंने मंडे फॉर मदर नेचर जैसे अभियान के तहत पौधरोपण कार्यक्रम की शुरुआत की जिसके तहत स्कूलों में हर सोमवार को पौधरोपण किया जाता है। इसमें बच्चे बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं। आज यह दुनियाभर के बच्चों के लिए प्रेरणा बन चुका है।
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प्रश्न- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में दुनिया के नेताओं को संबोधित करना आपके लिए कैसा अनुभव था? क्या आपको लगता है कि आपकी बातों को गंभीरता से लिया गया?
उत्तर- उस समय मैं केवल 8 साल की थी। उस दौरान इस सम्मेलन में मंच पर कदम रखते हुए मैंने एक संदेश देने की कोशिश की थी कि यह समय है कार्यवाही का है क्योंकि यह एक वास्तविक जलवायु आपातकाल है। मुझे लगता है कि यह मेरे लिए भी एक शिक्षाप्रद अनुभव था। मैं वहां ग्रेटा थनबर्ग से मिलकर प्रेरित हुईं, लेकिन यह भी महसूस किया कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन नतीजों के लिहाज से असफल रहा क्योंकि वहां आश्वासन तो दिए गए, पर ठोस कार्य नहीं हुआ।
प्रश्न- भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता बढ़ाने में सबसे बड़ी चुनौती क्या है? और आप इससे कैसे निपट रही हैं?
उत्तर- भारत में हमें इस क्षेत्र में कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उसमें शामिल हैं-
जलवायु शिक्षा की कमी- अधिकतर स्कूलों में जलवायु परिवर्तन पर समर्पित शिक्षा नहीं दी जाती। इसके समाधान के रूप में इसे सभी स्कूलों में अनिवार्य विषय बनाए जाने की मांग की है। कुछ राज्यों में इसकी शुरुआत भी हो चुकी है।
नीतिगत उदासीनता- मैंने जलवायु कानून की मांग को लेकर संसद के बाहर प्रदर्शन किए, लेकिन अभी तक कोई ठोस कानून नहीं बना है। मैं छात्रों के लिए सालाना 10 पेड़ लगाने की अनिवार्यता और जलवायु शिक्षा को कानूनी रूप देने की मांग कर रही हूं।
मीडिया की तुलना और आलोचना- मुझे अक्सर भारत की ग्रेटा थनबर्ग कहा जाता है, जिससे मेरी अलग पहचान दबती है। मेरा मानना है कि मेरी अपनी खुद की कहानी है और उम्र बदलाव की सीमा नहीं है।
कोविड.19 का असर- महामारी ने मेरी गतिविधियों को कुछ थीमा जरूर किया लेकिन सोशल मीडिया कैम्पेन के जरिए हमें 2020 में ही 2.5 लाख से अधिक पौधे लगवाने में कामयाबी हासिल की।
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प्रश्न- इतनी कम उम्र में स्कूल और एक्टिविज़्म में संतुलन बनाना कितना चुनौतीपूर्ण होता है ? आप समय का प्रबंधन कैसे करती हैं?
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प्रश्न- आप भारत और दुनिया भर के उन युवाओं को क्या संदेश देना चाहती हैं जो जलवायु परिवर्तन पर कुछ करना चाहते हैं? लेकिन यह नहीं जानते कि शुरुआत कैसे करें?
उत्तर- आपको फर्क डालने के लिए बड़ा होने की ज़रूरत नहीं है। जो युवा शुरुआत करना चाहते हैं, वे छोटे-छोटे कदमों से शुरुआत करें।
पौधे लगाएं। मेरा मानना है कि एक्टिविज़्म भी सीखने का एक तरीका है और बदलाव लाने के लिए बड़ा होना जरूरी नहीं।
प्लास्टिक का कम उपयोग करें।
पानी बचाएं।
अपने स्कूल या परिवार में जागरूकता फैलाएं।
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प्रश्न- क्या मणिपुर में बड़े होने ने आपके पर्यावरणीय दृष्टिकोण को प्रभावित किया?
उत्तर- हां, मणिपुर की हरियाली, नदियां और पहाड़ों से घिरा वातावरण बचपन से ही मुझे प्रकृति से जोड़ता रहा। वहां की संस्कृति सादगी और पृथ्वी के प्रति सम्मान पर आधारित है।
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प्रश्न- क्या आपको लगता है कि वैश्विक मीडिया भारत के जलवायु मुद्दों को सही तरीके से प्रस्तुत करता है?
उत्तर- बिल्कुल नहीं। वैश्विक जलवायु आंदोलन में मीडिया की दोहरी मानसिकता चरम पर है। वे ग्लोबल साउथ की असली आवाज़ को नहीं दिखाते।
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प्रश्न- आप अगले 5-10 वर्षों में जलवायु क्षेत्र में क्या हासिल करना चाहती हैं? क्या कोई बड़ा लक्ष्य है जिस पर आप काम कर रही हैं?
उत्तर- अगले 5-10 वर्षों के लक्ष्य बेहद प्रभावशाली और दूरदर्शी हैं।
Published on:
19 Jun 2025 03:43 pm