अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे चर्चा करते हुए। (फाइल फोटो: X Handle Amar.)
Anna Hazare Kejriwal Movement: नेपाल में चल रहे Gen‑Z विरोध प्रदर्शन (Nepal Gen‑Z protests)को लेकर कांग्रेस ने एक अहम टिप्पणी की है। कांग्रेस ने कहा कि भारत में भी 2012‑13 के दौरान ऐसे ही हालात बने थे, जब अन्ना हजारे ( Anna Hazare) और अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ा जन आंदोलन(Anna Hazare Kejriwal Movement) हुआ था। उनका दावा है कि उस समय कांग्रेस सरकार ने बातचीत का रास्ता अपनाया और देश को हिंसा से बचाया। कांग्रेस के मीडिया पैनलिस्ट सुरेन्द्र राजपूत (Surendra Rajput)ने नेपाल में हो रही हिंसा और विरोध प्रदर्शनों ( Nepal Protest )की अन्ना हजारे‑अरविंद केजरीवाल आंदोलन से तुलना की है। उनका कहना है कि भारत ने उस समय हिंसा को नहीं, बातचीत को तरजीह दी थी, और यही तरीका सरकारों को शांतिपूर्ण समाधान की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि "अराजकता के लाभार्थी अब सत्ता में हैं" — मतलब वे लोग जो उस आंदोलन से ताकत पाते हैं, आज वे राजनीतिक रूप से मजबूत हो चुके हैं। राजपूत ने संकेत दिया कि भारत में फिलहाल ऐसी स्थिति नहीं बनने पाएगी, क्योंकि यहां लोकतंत्र व संविधान मजबूत हैं और यहां समय रहते समस्याओं के समाधान निकाले जाते हैं।
नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में पिछले कुछ बरसों के दौरान विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक अस्थिरता देखने को मिली है। सोशल मीडिया, महंगाई और सरकारी नीतियों को लेकर जनता में नाराज़गी बढ़ी है। सुरेन्द्र राजपूत ने कहा कि भारत ने अन्ना‑केजरीवाल आंदोलन के समय ऐसी परिस्थितियाँ पहले झेली हैं। उस समय जनता ने शांति बनाए रखी थी और गोली और हिंसा से बचा गया था।
राजपूत ने यह भी जोड़ा कि मध्यस्थता, संवाद और संवैधानिक उपायों से ये टकराव हल हो सकते हैं — ठीक वैसे ही जैसे यूपीए सरकार ने 2012‑13 में किया था। उन्होंने कहा कि भारत में जनता, सरकार और विपक्ष — तीनों को यह समझना चाहिए कि अराजकता से कुछ नहीं मिलता।
भाजपा के नेता C.R. Kesavan ने सुरेन्द्र राजपूत की तुलना को “खतरनाक और राष्ट्रविरोधी” करार दिया है। उनका कहना है कि ऐसे बयान देश में डर और अशांति पैदा कर सकते हैं। उन्होंने विचार विमर्श की जगह राजनीतिक लाभ के नाम पर डर फैलाने की प्रवृत्ति को अनुचित बताया। राजपूत के बयान और BJP के जवाब से यह स्पष्ट है कि भारत में विरोध, सुरक्षा और अभिव्यक्ति की आज़ादी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बहस तीव्र हो रही है। राजनीतिक दलों की रणनीतियाँ और उनके बयानों का जनता पर असर बढ़ गया है।
बहरहाल सुरेन्द्र राजपूत का बयान यह बताता है कि भारत में लोकतंत्र की झलक है कि विरोध और असंतोष हों, लेकिन हिंसा से बचने की कोशिश की जाती है। भारत ने कहा है कि अराजकता को नहीं, संवाद और नियमों को तरजीह देते हैं। यह कहना गलत नहीं है कि भारत ऐसा अनुभव लेने वाला पहला देश बन चुका है।
संबंधित विषय:
Published on:
11 Sept 2025 09:59 pm
बड़ी खबरें
View Allराष्ट्रीय
ट्रेंडिंग