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क्या है नेली नरसंहार की कहानी, 42 साल बाद असम विधानसभा में पेश होगी रिपोर्ट, सामने आएगा सच

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि नेली नरसंहार की रिपोर्ट 25 नवंबर को असम विधानसभा में पेश की जाएगी। कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने इसे कांग्रेस को बदनाम करने की साजिश बताया है। जानिए क्या थी नेली नरसंहार की कहानी...

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CM हिमंत सरमा (Photo-IANS)

Nellie Massacre: असम (Assam) के नेली नरसंहार की जांच रिपोर्ट को 42 साल बाद विधानसभा में पेश किया जाएगा। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा (Chief Minister Himanta Biswa Sarma) ने बताया कि यह रिपोर्ट 25 नवंबर को असम विधानसभा में पेश की जाएगी। यह रिपोर्ट तिवारी आयोग ने तैयार की थी, जिसे इस घटना की जांच के लिए 1983 में गठित किया गया था। आयोग ने मई 1984 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी, लेकिन इसे अब तक कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। सीएम सरमा ने बताया कि रिपोर्ट की फॉरेंसिक जांच से इसकी सत्यता की पुष्टि हो गई है। अब सरकार इसे असम के इतिहास के अहम दस्तावेज के रूप में पेश करेगी। यह कदम राज्य चुनावों से पहले लिया गया है, जब प्रवासन का मुद्दा फिर चर्चा में है।

यह कांग्रेस को बदनाम करने की साजिश है

कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने कहा कि 42 साल बाद रिपोर्ट पेश करना कांग्रेस को बदनाम करने की कोशिश है।" पूर्वोत्तर लेखक अंगशुमान चौधरी ने इसे "मेमोरिसाइड" (स्मृति हत्या) का अंतिम अध्याय कहा है, जोकि असम में अल्पसंख्यकों के खिलाफ प्रायोजित हिंसा को दर्शाता है।

क्या था नेली नरसंहार?

18 फरवरी 1983 को असम के नगांव (अब मरिगांव) जिले के नेली कस्बे और आसपास के 14 गांवों (जैसे बोरबोरी, खुलापाथार, बरजोला) में तीवा, कर्बी और अन्य स्थानीय समुदायों के लोगों ने बंगाली मुस्लिमों पर हमला बोला था। उस समय असम आंदोलन (1979-1985) चरम पर था। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने "बाहरी घुसपैठियों" को हटाने की मांग की। हमलावर भालों, कुल्हाड़ियों, बंदूकों से लैस थे और छह घंटों में घरों में घुसकर नरसंहार किया। कुछ लोगों ने दावा किया कि स्थानीय पुलिस और CRPF की निष्क्रियता ने हिंसा को बढ़ावा दिया। एक बची हुई महिला, रशीदा बेगम ने 40वीं बरसी पर मीडिया को बताया कि चारों तरफ चीखें गूंज रही थीं, लोग भाग रहे थे, लेकिन कहीं छिपने की जगह नहीं थी।

घटना के बाद तत्कालीन असम सरकार ने जस्टिस त्रिभुवन प्रसाद तिवारी आयोग गठित किया, जिसकी 600 पेज की रिपोर्ट जनवरी 1984 में सौंपी गई। लेकिन कांग्रेस सरकार (हितेश्वर साकिया के नेतृत्व में) ने इसे सार्वजनिक नहीं किया। उसके बाद आठ सरकारों (कांग्रेस, AGP, BJP) ने इसे दबाए रखा।