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देश का ऐसा गांव जहां दिवाली के दिन मनाया जाता है मातम, जानिए दर्दनाक मौतों का इतिहास

Kali Diwali History: जहां देशभर में दिवाली के दिन रोशनी और खुशियां होती है वहीं कर्नाटक के मेलकोटे गांव में मंडयम अयंगर समुदाय इस दिन 235 साल पुराने नरसंहार की याद में शोक मनाता है। नरका चतुर्दशी को यहां 'काली दिवाली' के रूप में मनाया जाता है।

2 min read

भारत

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Devika Chatraj

Oct 18, 2025

Dark Diwali History

दिवाली के दिन मातम का इतिहास (Patrika)

जहां पूरे देश में दिवाली का त्योहार रोशनी, मिठाइयों और खुशियों के साथ मनाया जाता है, वहीं कर्नाटक के मंड्या जिले के प्राचीन मंदिर शहर मेलकोटे (मेलुकोटे) में यह दिन सदियों पुराने दर्द की याद दिलाता है। यहां के मंडयम अयंगर ब्राह्मण समुदाय के लोग 'नरका चतुर्दशी' को 'काली दिवाली' के रूप में मनाते हैं, क्योंकि ठीक 235 साल पहले इसी दिन टीपू सुल्तान की सेना ने सैकड़ों निर्दोष हिंदुओं का नरसंहार किया था। आज भी इस समुदाय के लोग दीये नहीं जलाते, बल्कि शोक मनाते हैं और पूर्वजों की आत्मा को श्रद्धांजलि देते हैं।

टीपू सुल्तान ने छीनी गांव की खुशियां

मेलकोटे, जिसे तिरुनारायणपुरम के नाम से भी जाना जाता है, श्री वैष्णव संत रामानुजाचार्य का कर्मस्थल रहा है। यहां चेलुवनारायण स्वामी मंदिर और योग नरसिंह मंदिर जैसे प्राचीन तीर्थस्थल हैं, जो वैष्णव भक्ति का प्रतीक हैं। 12वीं शताब्दी में होयसल राजा विष्णुवर्धन के संरक्षण में मंडयम अयंगर समुदाय यहां बस गया था। विजयनगर साम्राज्य के दौरान यह समुदाय फला-फूला और मंदिरों की देखभाल व प्रशासनिक पदों पर आसीन रहा। लेकिन 18वीं शताब्दी में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के आगमन ने सब कुछ उजाड़ दिया।

दिवाली की खुशियों के बीच 700-800 लोगों का कत्लेआम

इतिहासकारों और समुदाय के बुजुर्गों के अनुसार, 1790 ईस्वी (या 1783-1795 के बीच) में नरका चतुर्दशी के दिन मेलकोटे के अयंगर ब्राह्मण श्रीरंगपट्टना के नरसिंह मंदिर में दिवाली मना रहे थे। तिरुमाला अयंगर नामक एक प्रमुख विद्वान ने टीपू को प्रशासनिक सलाह दी थी, लेकिन बाद में टीपू को लगा कि तिरुमाला ने उसके खिलाफ षड्यंत्र रचा है। बदला लेने के लिए टीपू ने अपनी सेना को आदेश दिया कि मंडयम अयंगर समुदाय के सभी सदस्यों को घेर लिया जाए। दिवाली की रौनक के बीच सैनिकों ने मंदिर पहुंचकर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों समेत करीब 700-800 लोगों का कत्लेआम कर दिया। लाशों को पास के इमली के पेड़ों पर लटका दिया गया। यह नरसंहार भारद्वाज गोत्र के अधिकांश सदस्यों को निशाना बनाया गया, जिससे समुदाय बुरी तरह प्रभावित हुआ।

आज भी गांव में दिवाली के दिन शोक की लहार

नरसंहार के बाद मेलकोटे खाली हो गया। लोग भाग गए, मंदिर परिसर वीरान पड़ गया और शहर भूतिया बन गया। 29 कल्यानियों (पवित्र तालाबों) सूख गए, पानी की कमी हो गई और संस्कृत शिक्षा का केंद्र भी प्रभावित हुआ। बचे-खुचे लोग धीरे-धीरे लौटे, लेकिन दिवाली को कभी माफ नहीं किया। आज भी मंडयम अयंगर परिवार नरका चतुर्दशी पर शोक सभा आयोजित करते हैं, दीये जलाने से परहेज करते हैं और पूर्वजों की याद में प्रार्थना करते हैं।

किताबों में गलत लिखा इतिहास

समुदाय के अनुसार "यह नरसंहार श्रीरंगपट्टना में हुआ था, न कि मेलकोटे में, जैसा कि कुछ इतिहास की किताबों में गलत लिखा है। टीपू ने हिंदू मंदिरों को दान भी दिया, लेकिन उसके क्रूरता के प्रमाण इतिहास में दर्ज हैं। हमारा समुदाय आज भी इस जख्म को नहीं भूला।" 2014 में डॉ. एमए जयश्री और प्रो. एमए नरसिम्हन जैसे शोधकर्ताओं ने इस घटना पर पेपर पेश किया, जो समुदाय की मौखिक परंपराओं पर आधारित है।