बिहार में महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव और कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक गहलोत। (फोटो: X Handle Jaiky Yadav.)
Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति (Bihar Election 2025) में बड़ा उलटफेर हुआ है। महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav CM Face) को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करना इसका बिग गेम है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह ऐलान कर जादू कर दिया। क्यों कि महागठबंधन अब तक मुख्यमंत्री के नाम पर चुप था और जैसे ही तेजस्वी यादव का नाम आता, इधर उधर की बातें शुरू हो जाती थीं। कांग्रेस ने यह ऐलान गहलोत के मुंह से करवाया है। गहलोत ने कहा कि सभी वरिष्ठ नेताओं से बातचीत के बाद तेजस्वी को चुना गया है। वे युवा हैं और बिहार के भविष्य के प्रति समर्पित हैं। इस फैसले से महागठबंधन में एकजुटता का संदेश गया है, जबकि एनडीए में खलबली मच गई है।
इसका पीछे कई कारण हैं। सबसे पहले, तेजस्वी की लोकप्रियता एक कारण है। क्यों कि सन 2020 के चुनावों में महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं, जिसमें आरजेडी की बड़ी भूमिका थी। तेजस्वी ने उप मुख्यमंत्री रहते रोजगार और विकास के वादों से युवाओं का दिल जीता था। गहलोत ने कहा कि राहुल गांधी भी तेजस्वी को CM चेहरा बनाना चाहते थे। साथ ही, 2005 की साइकिल योजना को तेजस्वी का श्रेय मानते हुए गहलोत ने कहा कि वे इसे बहुत महत्व देते हैं।
आरजेडी की ओर से लालू प्रसाद यादव ने सीट बंटवारे के दौरान तेजस्वी के नाम पर जोर दिया। कांग्रेस को आखिरकार मानना पड़ा, क्योंकि बिना नाम घोषित किए गठबंधन टूटने का खतरा था। वीआईपी नेता मुकेश साहनी को डिप्टी CM उम्मीदवार बना कर पिछड़े वर्ग को लुभा कर साधने की कोशिश की गई है। वहीं प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है, जो महागठबंधन के वोट काट सकता था। जबकि नीतीश कुमार पर असर साफ है। तेजस्वी ने कहा कि एनडीए ने नीतीश को CM चेहरा घोषित क्यों नहीं किया? अमित शाह ने पहले ही कह दिया कि विधायक अपना नेता चुनेंगे। इससे नीतीश की कुर्सी पर संकट के बादल मंडराते हुए नजर आ रहे हैं।
तेजस्वी का के नाम का ऐलान नीतीश के लिए झटका है। जदयू के कोर वोटर (ईबीसी, महादलित) में असमंजस। भाजपा नीतीश को 'उपयोगी' मान रही है, लेकिन CM पद पर अस्पष्टता से गठबंधन में दरार आ सकती है। मुकेश साहनी का एनडीए छोड़कर महागठबंधन में आना भी भाजपा को नुकसान। महागठबंधन पर असर सकारात्मक। सीट बंटवारे पर विवाद सुलझा, युवा-यादव वोट एकजुट। लेकिन कांग्रेस को कम सीटें मिलने से असंतोष है।
निर्वाचन आयोग ने शेड्यूल जारी किया है। वोटिंग दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को होगी। मतगणना 14 नवंबर को होगी। प्रदेश में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं। एनडीए में भाजपा-जदयू 101-101, एलजेपी 29, जीतम राम मांझी और उपेंद्र कुशवाह की पार्टी 6-6 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वहीं महागठबंधन में राजद 143, कांग्रेस 61, वीआईपी 15, सीपीआई माले 20,सीपीआई 9, सीपीएम चार सीट और आईपी गुप्ता की पार्टी 3 सीट पर चुनाव लड़ रही है।
निर्वाचन आयोग ने शेड्यूल जारी किया है। वोटिंग दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को होगी। मतगणना 14 नवंबर को होगी। प्रदेश में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं। ध्यान रहे कि 2020 में एनडीए को 125 सीटें मिली थीं, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें। इस बार एनडीए भाजपा-जदयू 101-101 एलजेपी 29 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। महागठबंधन में आरजेडी 143, कांग्रेस 61, बीआईपी 15 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। जन सुराज सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
अशोक गहलोत सियासी चाणक्य माने जाते हैं।गौरतलब है कि गुजरात 2017 में गहलोत AICC प्रभारी थे, कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं और भाजपा को 99 पर रोक दिया था, जो मोदी-शाह के गढ़ में बड़ी सेंध मानी गई थी। वहीं कर्नाटक 2018 में पोस्ट-पोल गठबंधन में उनकी भूमिका से जेडीएस के साथ मिल कर सरकार बनी थी तो हिमाचल प्रदेश 2022 में गहलोत वरिष्ठ पर्यवेक्षक थे, और कांग्रेस ने 40 सीटें जीत कर सरकार बनाई थी। उन्होंने राजस्थान में सामाजिक योजनाओं जैसे पेंशन, स्वास्थ्य बीमा और राशन वितरण से गरीब-महिलाओं का वोट बैंक बनाया। गुटबाजी (सचिन पायलट के साथ) को संभालकर पार्टी एकजुट रखी। राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी के करीबी बन कर केंद्रीय कमान का समर्थन हासिल किया। बिहार में तेजस्वी यादव को CM चेहरा बनाने का ऐलान उनकी चाल का हिस्सा है—विपक्षी एकता बढ़ाने और 2024 लोकसभा चुनावों के लिए गठबंधन मजबूत करने का यह गेम है। गहलोत जानते हैं कि राज्य स्तर पर जीत राष्ट्रीय सत्ता का रास्ता खोलती है।
बहरहाल राजस्थान में गहलोत की जीतें कांग्रेस के लिए मील का पत्थर साबित हुई हैं। 1998 में 153 सीटें, 2008 में 96, 2018 में 99 सीटें। उन्होंने भाजपा को लगातार चुनौती दी है। लेकिन 2013 और 2023 में हार से सीखा भी है। अब वे राष्ट्रीय सियासत में सक्रिय हैं, जहां उनकी रणनीति विपक्ष को मजबूत करेगी। गहलोत का फॉर्मूला: जनकल्याण + एकजुटता = जीत।
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Updated on:
23 Oct 2025 04:13 pm
Published on:
23 Oct 2025 03:53 pm
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