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धराली त्रासदी के बाद केन्द्र सरकार ने गंगोत्री राजमार्ग की सुरक्षा में उठाया कदम
उत्तराखंड में धराली त्रासदी के बाद केन्द्र सरकार हिमालय रेंज के निर्माणाधीन विकास परियोजनाओं की सुरक्षा को लेकर पुनर्विचार कर रही है।
पर्यावरण विशेषज्ञों ने भी सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय को चेताया है। केन्द्र सरकार भविष्य की विकास परियोजनाओं को पर्यावरण संरक्षण व संतुलन को ध्यान में रखते हुए आगे बढाएगी। जो परियोजनाएं पूरी हो चुकी है, उनकी सुरक्षा का पुन: रिव्यू कर आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि परियोजनाओं की डिज़ाइन पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील भगीरथी इको-सेंसिटिव जोन के लिए अनुकूल नहीं हैं। घाटी की ढलानों में मार्ग को दस मीटर चौड़ा करने से नई भूस्खलन की परेशानी बढ़ गई।
वैकल्पिक डीपीआर पर मांगे सुझाव-
उत्तराखंड के देहरादून स्थित क्षेत्रीय कार्यालय की ओर से तहसीरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड को निर्देश दिए गए है कि वे निर्धारित रास्तों पर स्लोप प्रोटेक्शन और भूस्खलन नियंत्रण के उपायों की समीक्षा करें। साथ ही प्रस्तावित वैकल्पिक डीपीआर में सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) से भी तकनीकी सुझाव मांगे गए हैं।
हिमालय रेंज में बड़े प्रोजेक्ट और संभावित खतरा :
1. चारधाम ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट : गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ने वाला राजमार्ग। इसका बड़ा हिस्सा भगीरथी और अलकनंदा घाटी के भूस्खलन क्षेत्र से है।
चिन्ता: ढलानों व पेड़ों की कटाई और सुरंग निर्माण से आपदा का खतरा।
2. हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स : तपोवन-विष्णुगाड़, विष्णुप्रयाग, पाला-मानेरी, लखवार-ब्यासी।
चिन्ता : सुरंग खुदाई, जल प्रवाह में बदलाव और डैम निर्माण से भूस्खलन का खतरा।
3. रेल परियोजना : ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन।
चिन्ता : सुरंगों से भूगर्भीय संरचना अस्थिर होती है और भूस्खलन की घटनाएं।
4. अन्य परियोजनाएं : अटल टनल (रोहतांग), जोजिला टनल, तनकपुर-लिपुलेख रोड, नेलांग रोड।
चिन्ता : हिमालयी ढलानों पर दबाव बढ़ रहा, भूस्खलन और ग्लेशियर पिघलने का खतरा।
5. शहरी विस्तार और विकास : जोशीमठ, औली, मनाली, मसूरी व नैनीताल में होटल, पार्किंग, नई कॉलोनियों और रिसॉर्ट्स का अनियंत्रित निर्माण।
चिन्ता : ढलानों पर लोड बढ़ने से भूस्खलन और जमीन धंसने का खतरा।
विशेषज्ञों के सुझाव-
-स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति बनाकर प्रत्येक परियोजना की भौगोलिक और पर्यावरणीय जांच।
-भूगर्भीय जोखिम मैपिंग के आधार पर पुनः डिज़ाइन।
-स्थानीय लोगों और वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट को अनिवार्य मानना।
-वैकल्पिक मार्ग/तकनीक अपनाना, जैसे सुरंग के बजाय पुल या एलिवेटेड रोड।
-आपदा प्रबंधन और राहत योजनाओं को परियोजनाओं का हिस्सा बनाना।
Published on:
17 Sept 2025 05:29 am
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