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‘हाथ में मशाल लिए आत्माओं को बुलाते हैं’, जानें देश के अलग अलग हिस्सों में कैसे दिवाली मनाते हैं लोग

देश के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग तरीकों से दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में इस दिन शमशान में मां काली की पूजा होती है और अरुणाचल में मक्खन के दिए जलाए जाते है।

3 min read

भारत

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Himadri Joshi

Oct 18, 2025

Diwali traditions in different parts of country

देश के अलग अलग हिस्सों में दिवाली की परंपराएं (प्रतीकात्मक तस्वीर)

देशभर में इन दिनों दिवाली के त्योहार की धूम है। चारों तरफ रोशनी और सजावट देखने को मिल रही है। इस साल 20 अक्टूबर, सोमवार के दिन दिवाली मनाई जाएगी। देश के अलग अलग हिस्सों में इस त्योहार को अलग अलग और अनोखे तरीकों से मनाया जाता है। कहीं पर लोग हाथों में मशाल लिए अपने घरों के बाहर खड़े होते है तो कहीं पर इस दौरान कुत्तों और कौवों की पूजा की जाती है। आइए जानते है देश के किन राज्यों में इस तरह की विशेष परंपराओं के साथ दिवाली मनाई जाती है।

गोवा में सजाया जाता है अखाड़ा

समुद्र तट पर स्थित गोवा राज्य में दिवाली के साथ साथ नरक चतुर्दशी को भी उतनी ही धूमधाम से मनाया जाता है। देश के अन्य हिस्सों में जहां दिवाली पर भगवान राम की पूजा होती है वहीं गोवा में नरक चतुर्दशी के दिन मुख्य रूप में कृष्ण भगवान की पूजा की जाती है। दशहरे पर जैसे कई राज्यों में रावण के पुतले जलाए जाते है उसी तरह नरक चतुर्दशी के दिन गोवा में नरकासुर राक्षक का पुतला जलाया जाता है।

श्मशान में होती है मां काली की पूजा

पश्चिम बंगाल में पहले नवरात्र पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है और उसके बाद दिवाली को मां काली की अराधना कर के मनाया जाता है। यहां कोलकाता के कालीघाट मंदिर के पास स्थित केवड़ातला शमशान में जलती चिताओं के बीच मां की पूजा होती है। जब तक शमशान में कोई शव नहीं आता देवी को भोग नहीं चढ़ाया जाता है। पूजा के समय यहां जलने के लिए आने वाली एक चिता भी पंडाल में रखी जाती है। यह एक 150 साल पूरानी परंपरा है जिसकी शुरुआत 1870 में हुई थी।

अरुणाचल में मक्खन के दिए जलाते है

अरुणाचल के सीमावर्ती इलाके तवांग में बहुत ही अनोखे ढंग से दिवाली मनाई जाती है। जहां अन्य जगहों पर रोशनी और पटाखों के साथ दिवाली होती है वहीं तवांग में दिवाली का मतलब शांतिपूर्ण तरीके से प्रार्थना करना है। यहां रहने वाली मोनपा जनजाति के लोग और बौद्ध अनुयायी दिवाली के मौके पर अपने घरों और मठों में मक्खन के दीये जलाते है। यहां पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए रोशनी की जाती है और उसी के अनुकूल पटाखे जलाए जाते है। इन विशेष मक्खन के दिपकों को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।

कुत्तों और कौवों की होती है पूजा

सिक्किम में दिवाली का यह त्योहार तिहार के नाम से मनाया जाता है। यह खास तौर पर जानवरों के प्रति सम्मान और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार भी दिवाली की तरह पांच दिनों तक चलता है। इसे यमपंचक भी कहा जाता है क्योंकि यह मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना से जुड़ा है। पांच दिनों के इस त्योहार के पहले दिन कौवों की पूजा कर उन्हें मिठाई और फल खिलाए जाते है। दूसरे दिन कुत्तों को नहलाकर मालाएं पहनाई जाती है। त्योहार के तीसरे दिन गायों को माता के तौर पर पूजा जाता है और चौथे दिन बैलों की पूजा कर के घरों में गीत गाए जाते है। इस त्योहार के आखिरी दिन बहने अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना करते हुए उन्हें सात रंगों के टीकें लगाती है और भाई भी बहनों की रक्षा का वचन देते है।

हाथों में मशाल लेकर आत्माओं को बुलाते है लोग

ओडिशा में दिवाली के समय एक बहुत ही अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है। इस परंपरा को कौंरिया काठी और बड़बदुआ डाका कहा जाता है। इसके अनुसार, दिवाली के दिन लोग रात में जलती हुई मशालें लेकर अपने घरों के बाहर खड़े होते है और अपने पूर्वजों को याद कर के एक खास मंत्र का जाप करते है। इसके जरिए पूर्वजों को घर आने का न्योता दिया जाता जिससे उनकी आतमाएं अपने घरों में वापस लौट कर अपने लोगों को आशीर्वाद दे।