उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले से आई एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने खेती के क्षेत्र में दो विपरीत प्रवृत्तियों को उजागर कर दिया है, एक तरफ सरकार जैविक और वैकल्पिक उर्वरकों के उपयोग पर जोर दे रही है, तो दूसरी तरफ किसानों के खेतों में यूरिया की खपत विस्फोटक रूप से बढ़ रही है। सरकार की मंशा और जमीनी हकीकत के बीच यह विरोधाभास सिर्फ कानपुर की समस्या नहीं, बल्कि देशभर में कृषि नीतियों और व्यवहार के बीच बढ़ती खाई का प्रतीक बनता जा रहा है।
कानपुर में धान की खेती का रकबा तो 29% ही बढ़ा, लेकिन यूरिया की खपत पिछले वर्ष की तुलना में 65% अधिक हो गई है। अप्रैल से जुलाई 2025 तक 17,178 मीट्रिक टन यूरिया की बिक्री दर्ज हुई, जबकि 2024 में यह आंकड़ा मात्र 10,403 मीट्रिक टन था। ध्यान देने योग्य बात यह है कि ये आंकड़े केवल धान की रोपाई के दौरान की हैं। निराई के समय एक और खपत चक्र बचा हुआ है, जिससे यूरिया का यह आंकड़ा और भी उछल सकता है। इस भारी खपत को देखते हुए शासन ने आशंका जताई है कि इसमें जमाखोरी और कालाबाजारी की संभावना हो सकती है। कृषि विभाग को इस पर जांच के आदेश दिए गए हैं।
कृषि विभाग के अनुसार, इस वर्ष धान का रकबा 13,124 हेक्टेयर बढ़ा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या वाकई फसल की जरूरतों के अनुसार ही यूरिया का उपयोग हुआ है? या फिर किसानों ने सब्सिडी वाले उर्वरक को अतिरिक्त मात्रा में खरीदकर भंडारण कर लिया है?
वर्ष 2024 में 32,169 हेक्टेयर में धान की खेती हुई थी और 2025 में 45,297 हेक्टेयर में। यानी रकबा तो 29% बढ़ा, लेकिन यूरिया की खपत असमान्य रूप से ज्यादा है, जो यह संकेत देती है कि नीति के स्तर पर कहीं न कहीं मृदा स्वास्थ्य की अनदेखी हो रही है।
दूसरी ओर, केंद्र सरकार खेती के लिए संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन की दिशा में तेज़ी से काम कर रही है। 2014 में शुरू हुई मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता योजना के तहत किसानों को अब तक 25 करोड़ से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्डजारी किए गए हैं, जो मिट्टी की ज़रूरत के अनुसार उर्वरकों की मात्रा का मार्गदर्शन करते हैं।
हाल ही में संसद में केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बताया कि सरकार ने नैनो-फर्टिलाइज़र, बायो-फर्टिलाइज़र, डी-ऑइल केक, ऑर्गेनिक कार्बन वर्धक जैसे विकल्पों को अधिसूचित किया है और जैविक खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 31,500 से 46,500 रुपए तक की सहायता दी जा रही है।
एक तरफ प्राकृतिक खेती और मिट्टी के स्वास्थ्य की बातें, दूसरी ओर खेतों में यूरिया की झड़ी। इस विरोधाभास को दूर किए बिना देश में कृषि की स्थिरता संभव नहीं। कानपुर की रिपोर्ट पूरे प्रदेश और देश के लिए चेतावनी है कि यदि हम अब भी नहीं चेते, तो सब्सिडी का लाभ मिट्टी की मौत में तब्दील हो जाएगा। समय आ गया है कि नीति, व्यवहार और ज़मीन के हालात को एक ही पंक्ति में लाया जाए।
Updated on:
06 Aug 2025 07:14 pm
Published on:
06 Aug 2025 07:07 pm