गाजियाबाद की एक शांत-सी कॉलोनी कविनगर के लोग शायद ही सोच सकते थे कि उनके पड़ोस में एक "दूतावास" चल रहा था-वो भी पूरी तरह फर्जी। झंडे लगे वाहन, राजनयिक सूट, काले शीशे वाली गाड़ियां, पांच सितारा होटलों में ठहराव, विदेश यात्राएं, और मंत्रालयों में VIP एंट्री... लेकिन इसके पीछे था एक ऐसा किरदार, जिसकी असलियत जब सामने आई तो अफसरों तक को हैरानी हुई।
47 वर्षीय हर्षवर्धन जैन, उद्योगपति पिता का बेटा, एक शानदार लाइफस्टाइल का दीवाना था। बचपन से ही विदेशों की चकाचौंध और अफसरों जैसा रुतबा उसके ख्वाबों का हिस्सा बन गए थे। पिता जेडी जैन, गाजियाबाद के नामचीन कारोबारी रहे हैं-रोलिंग मिल, राजस्थान में मार्बल की माइनिंग और लंदन तक एक्सपोर्ट का काम। लेकिन बेटा इस पूंजी और पहचान से कुछ और ही बनाना चाहता था-राजदूत।
हर्षवर्धन ने खुद को "वेस्ट आर्कटिक" जैसे काल्पनिक देशों का काउंसल एंबेसडर घोषित किया। 12 डिप्लोमेटिक पासपोर्ट, प्रेस कार्ड, पैन कार्ड, 18 अलग-अलग फर्जी डिप्लोमेटिक नंबर प्लेट... वो हर वो दस्तावेज बना चुका था जो उसे असली राजनयिक साबित करें। वो कभी लंदन तो कभी पेरिस घूम आता। सऊदी और दुबई उसके लिए रोजमर्रा के अड्डे थे।
ATS की पूछताछ में हर्षवर्धन ने कबूला, “मैं मंत्रालयों में जाता था, पहचान थी... किसी ने कभी नहीं रोका।” उसका दावा था कि उसने फ्रांस से पीएचडी की है। वो कहता था कि विदेशों में काम दिलाने के बहाने दूसरे देशों के नागरिक उसके पास आते थे और वो उन्हें सेट करवा देता। बदले में हवाला के जरिए पैसा आता।
हर्षवर्धन कभी चुप, कभी गोलमोल जवाब देता। कभी झूठ बोलता तो कभी बयान बदलता। ATS को शक है कि इसमें कुछ ब्यूरोक्रेट्स और नेताओं का भी नाम हो सकता है, जिनकी शह से हर्षवर्धन मंत्रालयों में आता-जाता रहा।
घर की अलमारी से 12 महंगी विदेशी घड़ियां मिलीं, जिनकी कीमत करीब 5 करोड़ रुपये आंकी गई है। वहीं 44 लाख रुपये की करेंसी—जिसमें अमेरिकी डॉलर, यूरो और दिरहम तक शामिल हैं—उसके घर से बरामद की गई। 4 लग्जरी गाड़ियां मिलीं—मर्सिडीज, हुंडई सोनाटा जैसी गाड़ियां, जिनमें वह घूमता था।
जिस कोठी में वह फर्जी दूतावास चला रहा था, वह उसके पिता के घर से महज 100 मीटर दूर थी। लेकिन बताया जाता है कि हर्षवर्धन के गलत कामों के कारण पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। वह पत्नी और बेटे के साथ एक किराए के घर में रहता था, लेकिन अंदाज बिल्कुल VIP का था।
उसकी पत्नी दिल्ली के चांदनी चौक में गोल्ड-सिल्वर का कारोबार संभालती हैं, और बेटा गाजियाबाद के एक प्राइवेट स्कूल में 12वीं का छात्र है।
हर्षवर्धन का नाम 2012 में भी सामने आया था, जब दिल्ली में उसके पास से सैटेलाइट फोन मिला था। हालांकि तब किसी सबूत के अभाव में उसे छोड़ दिया गया था। इस बार मामला गहराया क्योंकि STF और ATS को उसकी शेल कंपनियों और हवाला नेटवर्क का बड़ा लिंक मिला है।
पूछने पर हर्षवर्धन बार-बार यही दोहराता है—“मुझे पहचान चाहिए थी… सम्मान चाहिए था… और ये सब बिना रोके मिल गया।” एक उद्योगपति के बेटे ने जब कारोबार नहीं, बल्कि झूठ और दिखावे के रास्ते को चुना, तो शायद उसने सोच लिया था कि फर्जी ही उसकी असल पहचान है।
अब मामला केवल STF या ATS तक सीमित नहीं है। विदेश मंत्रालय, ED और अन्य केंद्रीय जांच एजेंसियां इस नेटवर्क की परतें खोलने में जुटी हैं। PNB में मौजूद उसके 7 खातों की जांच की जा रही है। रिश्तेदारों, खासकर बरेली में रहने वाले ताऊ, और संपर्क में आने वाले अफसरों से पूछताछ की तैयारी है।
हर्षवर्धन की कहानी केवल एक शख्स की नहीं, बल्कि उस सिस्टम की भी है जो "लुक", "रुतबे" और "रिलेशन" के नाम पर झूठ को भी सच मानने लगता है। ये एक चेतावनी है—दिखावे के पीछे की हकीकत को समय रहते पहचानना ज़रूरी है, वरना नकली राजदूत असली अफसरों से आगे निकल जाते हैं।
Published on:
24 Jul 2025 02:55 pm