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महात्मा गांधी के पोते ने JLF में ‘गांधी और टॉल्स्टॉय’ पर की चर्चा, बोले- ‘अहिंसा और सत्याग्रह की नींव टॉल्स्टॉय ने रखी’

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) में 'टू सेज: गांधी एंड टॉल्स्टॉय' सत्र में गोपाल कृष्ण गांधी और डेनियल टॉल्स्टॉय ने मंच साझा किया।

Jaipur Literature Festival

Jaipur Literature Festival 2025: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) 2025 के आखिरी दिन 'टू सेज: गांधी एंड टॉल्स्टॉय' सत्र में महात्मा गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी और प्रसिद्ध रूसी लेखक लियो टॉल्स्टॉय के प्रपौत्र डेनियल टॉल्स्टॉय ने मंच साझा किया। इस सत्र में दोनों महान विचारकों के विचारों, उनके पत्राचार और उनके आपसी संबंधों पर चर्चा हुई।

'गांधी-टॉल्स्टॉय' के बीच गहरी वैचारिक समानता

इस चर्चा को मॉडरेट कर रहीं मानसी सुब्रमण्यम ने बताया कि गांधी और टॉल्स्टॉय दोनों अपने धर्म, सत्य और अहिंसा में अटूट विश्वास रखते थे। टॉल्स्टॉय की उम्र 80 वर्ष थी और गांधी उस समय केवल 40 वर्ष के थे, लेकिन इसके बावजूद टॉल्स्टॉय गांधी के विचारों से गहराई से प्रभावित थे।

बता दें, टॉल्स्टॉय ने लिखा था कि प्रेम ही मानवता को सभी बुराइयों से बचाने का एकमात्र तरीका है। यह विचार गांधी के अहिंसक प्रतिरोध और सत्याग्रह की नींव बना।

गांधी और टॉल्स्टॉय का ऐतिहासिक पत्राचार

सत्र के दौरान गोपाल कृष्ण गांधी ने 7 सितंबर 1910 को टॉल्स्टॉय द्वारा गांधी को लिखे गए पत्र का उल्लेख किया। यह पत्र टॉल्स्टॉय की मृत्यु से केवल 8 सप्ताह पहले लिखा गया था। इसमें टॉल्स्टॉय ने कहा था कि प्रेम और करुणा ही जीवन का सर्वोच्च नियम होना चाहिए। अहिंसा और प्रेम कुतर्कों से प्रभावित नहीं होते।

यह पत्राचार 1909-1910 तक चलता रहा, जिसमें टॉल्स्टॉय ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसक सत्याग्रह को समर्थन दिया। टॉल्स्टॉय ने अपने पत्र 'ए लेटर टू ए हिंदू' में भारत की मुक्ति के लिए अहिंसा को सबसे प्रभावी हथियार बताया था।

टॉल्स्टॉय फार्म और सत्याग्रह आंदोलन

गांधी और उनके मित्र हरमन कालेनबाख ने 1910 में दक्षिण अफ्रीका में 'टॉल्स्टॉय फार्म' की स्थापना की, जहां सत्याग्रहियों को प्रशिक्षण दिया जाता था। यह फार्म भारतीयों के खिलाफ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आंदोलन का केंद्र बना।

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गांधी पर टॉल्स्टॉय का प्रभाव

जयपुर लिटरेचर में बोलते हुए गोपाल कृष्ण गांधी ने बताया कि अहिंसा, सत्याग्रह और स्वदेशी के जो सिद्धांत गांधीजी ने अपनाए, वे टॉल्स्टॉय की शिक्षाओं से काफी प्रभावित थे। गांधीजी ने टॉल्स्टॉय की मृत्यु के बाद भी उनके विचारों को अपने आंदोलन का आधार बनाए रखा। टॉल्स्टॉय के संदेशों ने गांधी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नए रास्ते दिखाए।

आज भी प्रासंगिक हैं टॉल्स्टॉय और गांधी के विचार

सत्र के दौरान गोपाल कृष्ण गांधी ने कहा कि आज के समय में शब्दों की मर्यादा और संवेदना को बनाए रखना बहुत जरूरी है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे खेल की दुनिया में भी खिलाड़ी एक-दूसरे का सम्मान करते हैं, ठीक उसी तरह गांधी और टॉल्स्टॉय ने अपने विरोधियों के प्रति भी प्रेम और करुणा का भाव रखा।

उन्होंने कहा कि नीरज चोपड़ा ने नदीम के लिए और भारतीय शतरंज खिलाड़ी गुकेश ने अपने प्रतिद्वंद्वी के लिए जो सम्मान दिखाया, वही अहिंसा का मूल भाव है, जिसे गांधी और टॉल्स्टॉय ने अपने जीवन में अपनाया था।

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में ऐतिहासिक चर्चा

इस सत्र ने गांधी और टॉल्स्टॉय के वैचारिक संबंधों को नए सिरे से समझने का मौका दिया। यह चर्चा इस बात की पुष्टि करती है कि अहिंसा, सत्य और प्रेम के सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने 100 साल पहले थे।

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