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हर घर की आवाज से ग्लोबल ब्रांड तक: भारतीय विज्ञापन जगत के लीजेंड पीयूष पांडे का ‘राजस्थान पत्रिका’ से था खास जुड़ाव

Piyush Pandey: भारतीय विज्ञापन की दुनिया के अनमोल रत्न पीयूष पांडे ने 23 अक्टूबर को 70 वर्ष की आयु में आखिरी सांस ली। पीयूष पांडे का देश के सबसे प्रतिष्ठित और लोकप्रिय अखबार राजस्थान पत्रिका से बहुत गहरा नाता रहा है। पीयूष पांडे के एक करीबी व्यक्ति ने उनके बारे में पत्रिका टीम से बात की।

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जयपुर

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Rashi Sharma

Oct 24, 2025

Ad Guru Piyush Pandey Shares A Great Connection With Patrika Group

पत्रिका समूह से पीयूष पांडे का था गहरा संबंध। (फोटो डिजाइन: पत्रिका)

Piyush Pandey: भारतीय विज्ञापन की दुनिया के अनमोल रत्न पीयूष पांडे ने 23 अक्टूबर, दिन गुरुवार को 70 वर्ष की आयु में आखिरी सांस ली। पीयूष पांडे 40 वर्षों से ज्यादा समय तक 'ओगिल्वी इंडिया' जो एक फेमस भारतीय विज्ञापन एजेंसी है, के साथ जुड़े रहे। पीयूष पांडे के अंदर रचनात्मकता और उपभोक्ता की जरुरत को भलीभांति समझने का एक अनोखा हुनर था। वो अपने देसी अंदाज से लोगों के साथ जुड़ते थे। अपनी अनूठी प्रतिभा का इस्तेमाल करके उन्होंने भारतीय विज्ञापनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया। पीयूष पांडे का व्यक्तित्व भी कमाल का था। अपनी दमदार आवाज और हिंदी भाषा के ज्ञान से उन्होंने विज्ञापन जगत पर एक अमिट छाप छोड़ी।

राजस्थान पत्रिका से रहा गहरा संबंध

जयपुर के सेंट जेवियर्स से पढ़ाई करने वाले पीयूष पांडे का देश के सबसे प्रतिष्ठित और लोकप्रिय अखबार राजस्थान पत्रिका से बहुत गहरा नाता रहा है। पीयूष पांडे के एक करीबी व्यक्ति ने उनके बारे में पत्रिका टीम से बात की। उन्होंने बताया, "पत्रिका के संस्थापक स्वर्गीय कर्पूरचंद कुलिश जी का पीयूष पांडे (जब वो बच्चे थे) के घर आना-जाना लगा रहता था। ये उनके बचपन की सबसे सुनहरी यादों में से एक थी। वहीं, पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी और उनके बेटों के साथ भी घनिष्ठ संबंध थे। पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का वो बहुत आदर-सम्मान करते थे।"

राजस्थान पत्रिका के प्रतिष्ठित पुरस्कार के थे ज्यूरी मेंबर

राजस्थान पत्रिका द्वारा विज्ञापन जगत के नए उभरते हुए चेहरों को दिए जाने वाले प्रतिष्ठित पुरस्कार 'कंसर्न्ड कम्यूनिकेटर अवॉर्ड' में पीयूष पांडे बतौर जज भाग लेते थे। वो इस क्षेत्र के हर युवा को बहुत प्रोत्साहित करते थे और उनका सपोर्ट भी करते थे। हर साल वो इस पुरस्कार समारोह का हिस्सा बनते थे। राजस्थान पत्रिका के लिए उनके इस योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

राजस्थान पत्रिका के साथ की थी अपनी किताब का लॉन्च

पीयूष पांडेय ने एक किताब भी लिखी थी, जिसका नाम था 'Pandeymonium'। इस किताब में उन्होंने एडवर्टाइजिंग पर अपने अनुभवों को शेयर किया था। बता दें कि उन्होंने अपनी इस किताब का लॉन्च राजस्थान पत्रिका और एक पेंग्विन के साथ किया था।

स्मृति वन में माता-पिता की याद में लगाए थे पौधे

इसके साथ ही उनके करीबी ने बताया कि पीयूष पांडे और उनकी बहन तृप्ति पांडे ने राजस्थान पत्रिका के स्मृति वन में अपने माता-पिता की याद में पौधरोपण भी किया था। जयपुर के रहने वाले पीयूष पांडे का यहां की धरोहरों के प्रति प्रेम अटूट था।

परिवार से मिली रचनात्मक सोच की विरासत

राजस्थान की धरती जयपुर में जन्म लेने वाले पीयूष पांडे बचपन से ही रचनात्मक कार्यों में रूचि रखते थे। उनके परिवार में भाई, बहन सभी बहुत क्रिएटिव थे। आपको बता दें कि उनके भाई प्रसून पांडे बड़े होकर मशहूर फिल्म निर्देशक बने और बहन इला अरुण ने फिल्मों में एक गायिका और अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बनाई। जबकि उनकी बहन तृप्ति पांडे आज भी उनके जयपुर वाले घर में ही रहती हैं।

हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ रखने वाले पीयूष पांडे ने 'चल मेरी लूना' और 'क्या स्वाद है जिंदगी में', जैसी ऑल टाइम हिट कैचलाइन्स दीं, जो बच्चे-बूढ़े हर उम्र वर्ग के लोगों की जुबान पर रहती हैं। इसके अलावा उन्होंने 'अबकी बार मोदी सरकार' जैसे नारे भी लिखे थे। पीयूष पांडे ने न सिर्फ विज्ञापन जगत में, बल्कि युवा पीढ़ी को भी प्रेरित किया। 2018 में उन्हें और उनके भाई प्रसून को रचनात्मक उपलब्धियों के लिए Cannes Lions का प्रतिष्ठित St. Marks Award मिला।