नगर निगम। फोटो: पत्रिका
जयपुर। राजधानी की दोनों शहरी सरकारों का कार्यकाल अगले महीने 9 नवंबर को समाप्त हो जाएगा। इसके बाद चुनाव होने तक नगर निगमों का संचालन अधिकारी करेंगे।
माना जा रहा है कि राज्य सरकार शहरी सरकारों की जिम्मेदारी संभागीय आयुक्त को सौंप सकती है। सूत्रों के अनुसार, इस संबंध में फाइल सरकार स्तर पर चल रही है और अगले सप्ताह तक आदेश जारी होने की संभावना है।
पार्षदों के न होने से राशन कार्ड में संशोधन, मूल निवास, जाति प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, आरटीई और पुलिस सत्यापन जैसे कार्य प्रभावित होंगे। अब तक ये कार्य पार्षदों के माध्यम से हो रहे थे, लेकिन उनके न रहने से नागरिकों को सांसदों, विधायकों या राजपत्रित अधिकारियों के यहां सिफारिश के लिए जाना होगा।
एकीकृत निगम बनने के बाद न केवल प्रशासनिक ढांचा बदलेगा, बल्कि राजनीतिक गणित भी पूरी तरह बदल जाएगा। मौजूदा पार्षदों और दावेदारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती लॉटरी प्रणाली की है, क्योंकि भविष्य की राजनीति उसी पर टिकेगी।
-पहले दो निगमों में बंटे शहर में विकास कार्यों को लेकर लगातार विवाद रहे। स्ट्रीट लाइट और सीवर लाइन जैसे बुनियादी कार्य तक समय पर पूरे नहीं हो पाए।
-एक निगम बनने से बजट, विकास कार्य और जिम्मेदारियों का केंद्रीयकरण होगा। योजनाओं का समन्वय बढ़ेगा और संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव होगा।
-निगम के पुनर्गठन के बाद पहली बार जयपुर नगर निगम की सीमा का विस्तार हुआ है। करीब 80 गांवों को जोड़ा गया है।
-इन इलाकों में विकास करवाना निगम के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि मौजूदा बाहरी क्षेत्रों में भी बुनियादी सुविधाओं की स्थिति खराब है।
-जेडीए और आवासन मंडल के साथ विवाद भी प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती बने रहेंगे।
पहले केंद्र से आने वाले फंड को लेकर दोनों निगमों में अक्सर विवाद होता था। कांग्रेस शासनकाल में केंद्र से मिला पैसा हैरिटेज निगम में भेजा जाता था, जिससे मतभेद पैदा हुए। एक निगम व्यवस्था आने के बाद ऐसी स्थिति की संभावना बेहद कम है।
नई परिसीमन प्रक्रिया में दो से तीन वार्डों को मिलाकर नया एक वार्ड बनाया गया है, जिसमें आबादी और क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखा गया है। हालांकि विपक्ष का आरोप है कि भाजपा नेताओं ने परिसीमन में मनमानी की है और अपने राजनीतिक हित के अनुसार सीमाएं तय की हैं।
150 वार्डों में बने नए समीकरणों के बीच भाजपा को टिकट वितरण में कड़ी मशक्कत करनी होगी। करीब 30 पार्षद दोबारा चुनाव नहीं लड़ना चाहते, जबकि कई के वार्ड बदले या समाप्त हो चुके हैं। भाजपा का रिकॉर्ड रहा है कि वह बहुत कम पुराने चेहरों को रिपीट करती है।
कांग्रेस के मौजूदा पार्षदों की संख्या पहले से ही कम है, इसलिए उनके फिर से मैदान में उतरने की संभावना अधिक है। साथ ही पार्टी नए चेहरों को भी मौका देने की रणनीति बना रही है। हैडिंग सुझाव
राजस्थान नगर पालिका अधिनियम की धारा-7 के अनुसार बोर्ड का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। इसकी गणना बोर्ड की पहली बैठक यानी महापौर के निर्वाचन की तिथि से होती है। वर्तमान बोर्ड के महापौर का चुनाव 10 नवंबर 2020 को हुआ था, इसलिए इसका कार्यकाल 9 नवंबर 2025 को पूरा होगा।
- अशोक सिंह, सेवानिवृत्त विधि निदेशक, स्वायत्त शासन विभाग
Published on:
23 Oct 2025 09:50 am
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