फरीदाबाद नगर निगम में रावण के पुतला दहन पर जारी किए निर्देश।
Dussehra 2025: दशहरे पर रावण दहन की तैयारियों के बीच नगर निगम फरीदाबाद ने कड़े निर्देश जारी किए हैं। निगम ने साफ कर दिया है कि विकसित एवं उच्च श्रेणी के निगम पार्कों में बिना अनुमति किसी भी तरह का बड़ा सार्वजनिक आयोजन, खासकर रावण के विशालकाय पुतलों का दहन नहीं किया जाएगा। अगर किसी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) या अन्य संस्था ने इस आदेश की अवहेलना की तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
नगर निगम अधिकारियों का कहना है कि हर साल विभिन्न सेक्टरों और कॉलोनियों में दशहरा पर्व के दौरान लोग निगम के पार्कों में पुतला दहन करते हैं। इससे जहां पार्कों की संरचना और हरियाली को नुकसान पहुंचता है। वहीं आग लगने या हादसे जैसी बड़ी घटनाओं का खतरा भी बढ़ जाता है। इस बार ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए निगम ने पहले ही आरडब्ल्यूए और अन्य संस्थाओं को चेतावनी जारी कर दी है। निगम ने यह भी स्पष्ट किया है कि बिना पूर्व अनुमति आयोजन करने पर संबंधित आरडब्ल्यूए की मान्यता तत्काल प्रभाव से रद्द कर दी जाएगी। साथ ही निगम की ओर से मिलने वाला विकास फंड और अन्य सहायता राशि भी रोक दी जाएगी।
निगम ने जिम्मेदारी तय करते हुए कहा है कि अगर आयोजन के दौरान किसी भी प्रकार की दुर्घटना, आगजनी या जनहानि होती है, तो उसकी पूरी जवाबदेही आयोजनकर्ता संस्था या आरडब्ल्यूए की होगी। इस स्थिति में उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी। निगम आयुक्त धीरेंद्र खड़गटा ने कहा कि यह कदम नागरिकों की सुरक्षा और जनहित को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। उन्होंने सभी अधिकारियों, स्थानीय निकायों और आरडब्ल्यूए से अपील की है कि निगम के आदेशों का पालन करें, अन्यथा सख्त कदम उठाने पड़ेंगे।
दशहरे पर रावण-दहन का परंपरा पुराणों से जुड़ा हुआ है। रामायण के अनुसार रावण महान विद्वान और शिवभक्त था, लेकिन उसके भीतर अहंकार, काम और अधर्म का वास बढ़ गया था। जब उसने माता सीता का हरण किया, तब भगवान राम ने धर्म की रक्षा के लिए उसका वध किया। इसीलिए दशहरे को 'असत्य पर सत्य की विजय' और 'अधर्म पर धर्म की जीत' के प्रतीक रूप में मनाया जाता है। रावण का पुतला जलाना हमें यह स्मरण कराता है कि चाहे व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली या ज्ञानवान हो, यदि वह अन्याय और अहंकार के मार्ग पर चलता है तो उसका पतन निश्चित है।
आज के संदर्भ में, रावण-दहन केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एक सामाजिक और नैतिक संदेश भी है। आधुनिक जीवन में रावण के दस सिर अहंकार, लोभ, ईर्ष्या, आलस्य, क्रोध, हिंसा, अन्याय, छल, नशा और कामवासना जैसी बुराइयों का रूपक माने जाते हैं। पुतला जलाकर लोग यह संकल्प लेते हैं कि वे इन दोषों को स्वयं से दूर करेंगे और समाज को बेहतर बनाएंगे। इस प्रकार दशहरा हमें पुराणकालीन कथा, वैदिक मूल्य और आधुनिक जीवन तीनों स्तरों पर यह सिखाता है कि मानव जीवन का सच्चा उत्सव तभी है, जब हम भीतर और बाहर से अधर्म और असत्य का दहन करें।
पुतले को हमेशा खुले मैदान या ऐसे स्थान पर जलाना चाहिए जहाँ पास में घर, दुकान, बिजली की लाइन या पेड़ न हों। पुतला ज़मीन से पर्याप्त दूरी पर और हवा की दिशा को ध्यान में रखकर खड़ा करें ताकि जलने पर राख या आग इधर-उधर न फैले। आयोजन स्थल पर भीड़ को पुतले से सुरक्षित दूरी पर रखने के लिए बैरिकेड या रस्सी का इंतजाम करें। इसके अलावा पुतला जलाने से पहले अग्निशमन यंत्र, पानी की टंकी या रेत की बोरी पास में जरूर रखें। पुतले में केवल सूखी लकड़ी, कपड़ा और कागज का ही इस्तेमाल करें, ज्वलनशील रसायन या पटाखों की अधिकता से दुर्घटना की संभावना बढ़ती है।
दशहरे पर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक समझे जाने वाले पुतले को जलाने का काम अनुभवी और जिम्मेदार व्यक्ति को ही करना चाहिए। इस दौरान बच्चों और बुजुर्गों को पुतले के बहुत पास न जाने दें। एम्बुलेंस या प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था पास में होनी चाहिए। ताकि किसी अप्रत्याशित स्थिति में तुरंत मदद मिल सके। आयोजन में पुलिस या सुरक्षा स्वयंसेवकों की मौजूदगी से भी भीड़ को नियंत्रित करना आसान होता है।
Published on:
21 Sept 2025 06:05 pm
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