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तेल खोज, भारी ट्रैफिक और बजरी कारोबार के बीच राजस्थान का ये राजमार्ग बना ‘मौत का हाइवे’, हर 3 महीने में होता है 1 हादसा

ग्रामीणों के अनुसार हाइवे पर गड्ढों इतने गहरे हैं कि हर वाहन चालक जान हथेली पर रखकर निकलता है। जब भी हादसा होता है, विभाग खानापूर्ति के नाम पर कुछ मिट्टी डालकर मामला रफा-दफा कर देता है। न सड़क सुधरती है, न सिस्टम।

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Photo: Patrika

सिणधरी, गुड़ामालानी और रागेश्वरी क्षेत्र में मौत का तांडव थमने का नाम नहीं ले रहा। हर दो से तीन माह के अंतराल में बड़ा हादसा होता है और कई परिवार उजड़ जाते हैं। मेगा हाइवे अब विकास की नहीं, गड्ढों और गफलत की पहचान बन चुका है।

बुधवार रात हुए हादसे में भी वही कहानी दोहराई गई हैं। स्कॉर्पियो गड्ढों में उछली और ब्रेक लगाए, इतने में ट्रेलर आ घुसा और देखते ही देखते आग का गोला बन गई। चार दोस्तों की मौके पर जलकर मौत हो गई।

गड्ढों में विकास दफन, हादसों में जिंदगी खत्म

ग्रामीणों के अनुसार हाइवे पर गड्ढों इतने गहरे हैं कि हर वाहन चालक जान हथेली पर रखकर निकलता है। जब भी हादसा होता है, विभाग खानापूर्ति के नाम पर कुछ मिट्टी डालकर मामला रफा-दफा कर देता है। न सड़क सुधरती है, न सिस्टम।

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि स्कॉर्पियो चालक ने गड्ढों से बचने के लिए ब्रेक मारी, अनियंत्रित ट्रेलर घुसा और घसीटते हुए दूर तक गया। टक्कर इतनी जोरदार थी कि पूरी गाड़ी चिंगारियों से धधक उठी और चार दोस्त चीखों के बीच जिंदा जल गए।

तेल और गैस की धरती… पर एक दमकल तक नहीं!

क्षेत्र में तेल व गैस निकाले जा रहे हैं, सैकड़ों ट्रक रोज गुजरते हैं, वहां एक दमकल तक क्यों नहीं है। सिणधरी, गुड़ामालानी और रागेश्वरी में बजरी खनन, ट्रक ट्रैफिक और ऑयल-गैस परियोजनाएं रोजाना सैकड़ों वाहनों की आवाजाही बढ़ा रही है। फिर भी क्षेत्र में दमकल जैसी मूलभूत सुविधा का अभाव है। आग लगने पर ग्रामीण अपने साधनों से आग बुझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन जब तक मदद आती है, हादसे राख में बदल चुके होते हैं।

अब सड़क नहीं, जीवन चाहिए

डाबड़, रागेश्वरी और आसपास के गांवों में लोगों का कहना है कि तेल निकल रहा है, ट्रक दौड़ रहे हैं, सरकार राजस्व कमा रही है, पर हमारी जान की कोई कीमत नही हैं। ग्रामीणों ने मांग की है कि क्षेत्र में तुरंत दमकल वाहन, आपात चिकित्सा इकाई और सड़क मरम्मत अभियान शुरू किया जाए, वरना आने वाले दिनों में भी गांवों में खुशियां नहीं, मातम ही लौटेगा। ग्रामीण कहते हैं कि मेगा हाइवे नहीं, अब यह मौत का हाइवे हैं।

पांच सालों में पांच बड़े हादसे, सैकड़ों जिंदगियां तबाह


● 3 फरवरी 2025, पायला खर्द : एक ही परिवार के पांच लोगों की मौत, तीन पीढ़ियां खत्म।
● 22 जून 2025, गांधव : ट्रेलर-टेंपो टक्कर में तीन की मौत, तीन गंभीर घायल।
● 23 अप्रैल 2024, आलपुरा : दो ट्रेलरों की भिड़ंत के बाद आग, तीन जिंदा जले।
● 11 मई 2023, मेगा हाईवे : ट्रक-टैंकर भिड़ंत में दो जिंदा जले, एक घायल।
● 11 सितंबर 2022, भाटाला : ट्रक-कार भिड़ंत में चार मौतें, दो घायल।