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Rajasthan : ‘हलमा परंपरा’ से खिले परेशान शिक्षकों के चेहरे, रोशन हुए सरकारी स्कूल

Rajasthan : शिक्षा विभाग के आदेश के बाद एकबारगी शिक्षकों में उलझन थी। पर आदिवासियों की ‘हलमा परंपरा’ से बांसवाड़ा जिले में दर्जनों सरकारी स्कूल स्कूलें दमक उठे। जानें हलमा परंपरा क्या है?

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Rajasthan Halma tradition brought smiles to troubled teachers faces brightened up government schools Education Department order

सज्जगनढ़. राजकीय उमावि बावलापाड़ा में की गई सजावट। पत्रिका फोटो

Rajasthan : राज्य के आदिवासी बहुल दक्षिणांचल की ‘हलमा’ परंपरा के बूते सरकारी स्कूल भवन निखर उठे हैं। रंग-रोगन के सरकारी आदेश को धरातल पर उतारने में यह परंपरा अहम साबित हो रही है। दीपोत्सव से पहले घर-आंगन की तरह ही स्कूल परिसर की साफ-सफाई से लेकर रंग-रोगन किया जा रहा है। ग्रामीणों का समूह अपनी क्षमता अनुसार बिना पारिश्रमिक श्रमदान कर रहे हैं। इससे स्कूल की वर्षों से काली पड़ी दीवारें दमक उठी हैं।

शिक्षा विभाग के आदेश के बाद एकबारगी शिक्षकों में इसे लेकर उलझन थी। बजट संबंधित प्रावधान पंचायती राज विभाग के अधीन किया था, बजट अपर्याप्त होने से विरोध के स्वर भी उठे थे। बांसवाड़ा जिले में दर्जनों स्कूलें दमक उठी हैं। अब इन पर रंगीन रोशनी भी की जाएगी। बांसवाड़ा ब्लॉक में ग्रामवासियों ने विद्यालयों को अपना मानकर श्रमदान किया। कहीं युवाओं ने ब्रश थामे, तो कहीं महिलाओं ने साफ-सफाई की। साथ ही अरथूना ब्लॉक के 38 राउमावि में भी रंगरोगन पूर्ण हो गया है।

सामूहिक सहयोग की परंपरा ‘हलमा’

आदिवासी समाज की एक प्राचीन और अत्यंत महत्वपूर्ण सामूहिक सहयोग की परंपरा है, जो विशेष रूप से दक्षिण राजस्थान (बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर), मध्यप्रदेश और गुजरात के आदिवासी क्षेत्र में प्रचलित है। इस परंपरा का मूल भाव है सामूहिक श्रम और पारस्परिक सहयोग। आदिवासी जब किसी व्यक्ति या परिवार के पास खेत जोतने, कुआं खोदने, घर निर्माण, फसल काटने जैसे कार्यों के लिए पर्याप्त लोग या संसाधन नहीं होते, तब वह अपने गांव या आसपास के लोगों को ‘हलमा’ के लिए बुलाते हैं। गांव के लोग बिना किसी पारिश्रमिक के सामूहिक रूप से उस कार्य में हाथ बंटाते हैं।

राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, डोरियारेल
प्रधानाचार्य दीनबंधु भट्ट एवं स्टाफ ने जनसंपर्क कर ग्रामीणों एवं भामाशाहों से सहयोग लिया। भामाशाह सरपंच प्रदीप कुमार निनामा, नारायणलाल निनामा, तोलाराम कटारा, गेबीलाल निनामा, आदेश खराड़ी व अन्य ने सहयोग किया। शिक्षकगण कुंती मुनिया, दिनेश चंद्र आदिवासी, बलवीर सिंह पारगी, लक्ष्मणलाल मईडा के आह्वान पर ग्रामीण जुटे और सहयोग किया।

    राजकीय प्राथमिक विद्यालय, चाचाकोटा
    विद्यालय भवन पर लंबे समय से रंगरोगन नहीं होने से दीवारें काली पड़ गई थीं। ग्रामीणों ने सहयोग किया और एक ही दिन में पूरे भवन पर रंग-रोगन कर काया पलट कर दी।

      बांसवाड़ा ब्लॉक की स्थिति

      301 सरकारी स्कूल।
      35 वैकल्पिक भवन में संचालित।
      266 में रंग-रोगन का लक्ष्य।
      66 उमावि में कार्य पूर्ण।
      42 यूपीएस में से 33 में पूर्ण और 9 में चल रहा है।
      193 पीएस में 74 में कार्य पूर्ण, 52 में कार्य संचालित।

      स्कूल को अपना मानकर ग्रामीणों ने किया सहयोग

      ग्रामीण अंचल के विद्यालयों पर रंग-रोगन के आदेश के बाद इसके लिए प्रयास शुरू किए। फिर आदिवासियों की ‘हलमा’ परंपरा का ध्यान आया, तो संस्था प्रधानों को प्रेरित किया। इसके बाद ग्रामीणों ने क्षेत्र के स्कूल को अपना मानकर दीपोत्सव पर निखारने में सहयोग किया।
      सुशील जैन, मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी, बांसवाड़ा