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राजस्थान के इस चावल के विदेशी भी हैं दीवाने, किसानों को भी मिल रहा अच्छा मुनाफा

Kali Kamod Rice : राजस्थान के इस मशहूर काली कमोद चावल के विदेशी भी हैं दीवाने। बांसवाड़ा के अकेले जौलाना क्षेत्र से ही करीब 10 टन उत्पादन हो रहा है। साथ ​ही किसानों को भी अच्छा मुनाफा मिल रहा है। काली कमोद चावल के बारे में जानें और बहुत कुछ।

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Rajasthan kali kamod rice Foreigners are also crazy farmers are also getting good profits

प्रेमजी पाटीदार, किसान, रैयाना। फोटो पत्रिका

Kali Kamod Rice : बर्तन में पकने बाद उठती मनभावन खुशबू और बेजोड़ स्वाद की वजह से मशहूर काली कमोद किस्म के चावल की खेती इस साल बढ़ी है। इस दिवाली चावल का पककर तैयार हो जाएगा और प्रसंस्करण इकाइयों में पहुंचेगा। अकेले जौलाना क्षेत्र से ही करीब 10 टन उत्पादन होगा। अब तक चुनिंदा गांवों में ही इसकी खेती होती थी, लेकिन किसानों में रुझान साल-दर-साल बढ़ रहा है। काली कमोद चावल के विदेशी भी दीवाने हैं।

उत्पादन बढ़ने के पीछे वजह है किसानों को मिल रहा अच्छा मुनाफा। काली कमोद व जीरा चावल की पैदावार जनजातीय इस इलाके के सीमित रकबे में ही होती है। इन दिनों खेतों में चावल की महक है। जहां एक बीघा में काली कमोद 4 क्विंटल होती है, वहीं अन्य किस्म का धान 12 क्विंटल तक होता है। कम समय में अधिक पैदावार के कारण दूसरे धान की फसल के बीज भी बाजार में आसानी से उपलब्ध है।

पहले सिर्फ इन गांवों में होती थी खेती

कुछ वर्ष पहले तक केवल जौलाना व रैयाना गांवों में ही में ही काली-कमोद की फसल उत्पादित होती थी। अब अच्छा मुनाफा मिलने से गढ़ी क्षेत्र के कई गांवों में किसानों ने इसे अपनाया है।

पकने में लगाता है 5 माह, काली कमोद से अच्छा मुनाफा

काली कमोद पकने में पांच से साढ़े पांच माह का समय लगता है। दूसरी किस्म का धान चार से साढ़े चार माह में पक जाता है। किसानों की मानें तो काली कमोद से अच्छा मुनाफा हुआ है, लेकिन पकने में उतनी ही मेहनत और वक्त भी ज्यादा लगता है।

प्रसंस्करण इकाइयों आने लगीं

गढ़ी क्षेत्र में धान की अच्छी पैदावार होने से यहां छोटी-छोटी राइस मिलें स्थापित हो गई हैं। यहां के किसानों की फसल घर बैठे ही व्यापारी खरीद रहे हैं। इन गांवों में खेती की जमीन और यहां का वातवरण काली कमोद की पैदावार के लिए मुफीद है। एक अनुमान है कि पूरे क्षेत्र में सौ क्विंटल से भी अधिक काली कमोद और जीरा धान की पैदावार हो रही है। किसान कम समय में अधिक पैदावार वाले धान के बीज खरीद लाए व उगा रहे हैं।

यहां भी बढ़ा रुझान

मलाना, चितरोड़िया, फलाबारां, झड़स, डडूका, नवापादर, मादलदा, बोदिया, झड़स, ओडवाड़ा, खेरन का पारड़ा, बखतपुरा, सेमलिया, अवलपुरा, बाडिय़ा, आमजा सहित कई गांवों के किसान अब काली कमोद उगा रहे हैं।

काली कमोद उच्च कोटि का चावल

काली कमोद सबसे उच्च कोटि का है। स्वाद और महक ही इसकी खासियत है। पैदावार बढ़ रही है। बांसवाड़ा व अंतरराष्ट्रीय बाजार की मांग के मुताबिक उत्पादन और बढ़ेगा। विभिन्न राज्यों व सुपरमार्केट में भी यह चावल उच्चे दामों में बिक रहा है।
प्रेमजी पाटीदार, किसान, रैयाना