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उजड़े वनस्पति उद्यान को संजीवनी की दरकार

बिना वनस्पति पौधों का वनस्पति उद्यान पुराने पौधों ने तोड़ा दम, नए के नाम पर बजट खपाने की तैयारी में वन विभाग

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बिना वनस्पति पौधों का वनस्पति उद्यान

बिना वनस्पति पौधों का वनस्पति उद्यान

शहर से सटे गर्रा स्थित बॉटनिकल वनस्पति उद्यान अपनी बदहाली पर आंसू बहाता नजर आ रहा है। इसका नाम भले ही वनस्पति उद्यान रखा गया हैं, लेकिन वनस्पति सिर्फ नाम मात्र का की है। यह एकमात्र ऐसा वनस्पति उद्यान है, जहां वनस्पति पौधे नहीं है। वहीं पिछले समय लाखों रुपए खर्च कर लगाए गए वनस्पति पौधों ने भी दम तोड़ दिया है। अब इस उजड़े उद्यान को संजीवनी की दरकार है। एक बार फिर बजट लाकर इसे संवारने की योजना बनाई जा रही है।

उजाड़ हो गए वनस्पति पौधे

गर्रा वनस्पति उद्यान में वैज्ञानिक अनुसंधान, वनस्पति संरक्षण, वनस्पती पौधों के प्रदर्शन और शिक्षा के उद्देश्य को लेकर दुर्लभ प्रजाति और औषधि युक्त पौधों का रोपण किया गया था। वनस्पति पौधों के संरक्षण और उसके संवर्धन के लिए सुरक्षित जालियां लगाकर बड़े-बड़े गमले लगाए गए थे, उन गमलों में विभिन्न प्रजाति के वनस्पती पौधों का रोपण किया गया था। इसके अलावा एक बड़े एरिया में विभिन्न प्रकार के औषधि युक्त पौधे लगाए गए थे। लेकिन पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी यहां एक भी वनस्पति पौधा पनप नहीं सका और गमले में रखे पौधे सूख गए हैं। कुछ पौधों को मवेशियों ने अपना निवाला बना वहीं कुछ सिंचाई के अभाव में सूख गए।

कैसे बढ़ेगा रूझान

सवाल यह उठता है कि जब वनस्पति गार्डन में ही वनस्पति पौधों की जानकारी लोगों को नहीं मिल पा रही है और वनस्पति पौधे और औषधि दुर्लभ प्रजाति के पौधे मानव जीवन के लिए क्यों जरूरी है, इसका ज्ञान ही नहीं होगा तो फिर लोगों में वनस्पति के प्रति रूझान कैसे बढ़ेगा।

1986 से संचालित गर्रा गार्डन

जानकारी के अनुसार गर्रा स्थित बॉटनिकल गार्डन दक्षिण वन मंडल के अंतर्गत आता है, जो लगभग 47 हेक्टेयर में फैला होने के साथ ही वैनगंगा नदी के किनारे मौजूद है। यह 1986 से संचालित है। कभी यहां पर मोर, तेंदुए, चीतल, सांभर, हिरण की उछल कूद पर्यटकों की पहली पसंद हुआ करती थी। लेकिन जब से यहां के वन्य प्राणियों को वन विहार भोपाल भेजा गया है, तब से लोगों की आवाजाही कम हो गई है। वन्य प्राणियों के पिंजरे भी पूरी तरह से जर्जर हो चुके हंै। अब ये गार्डन अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है।