मुगल-ए-आजम फिल्म से मिला नाटक में शीश महल बनाने का आइडिया
अलवर. राजर्षि अभय समाज के रंगमंच पर किया जाने वाला महाराजा भर्तृहरि नाटक का प्रदर्शन 1958 में प्रारंभ हुआ। उस समय यह सादा पर्दों पर प्रदर्शित किया गया था। पहले दिन की बुकिंग अच्छी हुई। इसके चलते नाटक का मंचन 2 दिन तक किया गया। धीरे-धीरे इसमें नए सीन-सीनरी लगाकर नाटक में चार चांद लगा दिए। इसके लिए खास तौर से दिल्ली से पेंटर बेअंत राय को बुलाया गया था। दर्शकों की बेहद मांग पर यह नाटक राम राज्याभिषेक के बाद दिवाली से एक दिन पहले तक 15 दिन खेला जाने लगा और यह श्रद्धा का प्रतीक बन गया। दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं।
संस्था के प्रचार मंत्री अमृत खत्री ने बताया कि 1960 में पूरे भारत में मुग़ल-ए-आज़म फिल्म रिलीज हुई थी। उस समय तत्कालीन डायरेक्टर बाबू श्याम लाल सक्सेना, स्टेज मिस्त्री भगवान सहाय व बिहारी लाल शर्मा यह फिल्म देखकर आए। फिल्म देखने के बाद बाबू श्याम लाल ने कहा कि मुग़ल-ए-आज़म में जो शीश महल दिखाया गया है, ऐसा ही नाटक में भी होना चाहिए। आगे चलकर इसमें शीश महल, चलता हुआ सिंहासन आदि बनाए गए जो आज भी विद्यमान है।
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18 अक्टूबर तक होगा नाटक का प्रदर्शन
राजर्षि अभय समाज के रंगमंच पर 18 अक्टूबर तक प्रतिदिन रात 9.30 बजे तक नाटक का मंचन किया जाएगा। यह नाटक महाराजा भतृर्हरि के जीवन पर आधारित है। भारत के रंगमंच से पारसी शैली लुप्त हो चुकी है, लेकिन अलवर में आज भी इस नाटक के जरिए इस शैली को बचाया हुआ है।
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Published on:
06 Oct 2025 06:47 pm
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