
Varuthini Ekadashi 2025
Varuthini Ekadashi 2025 fast: वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी वरुथिनी एकादशी एकदशी के नाम से जानी जाती है। वैशाख और एकादशी के योग धर्म-कर्म के नजरिए से बहुत शुभ है। इस दिन भगवान विष्णु के लिए व्रत करने का विधान है। इस मौसम में आम, तरबूज, खरबूजे का दान का विधान है।
ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा के अनुसार हिंदू धर्म में एकादशी पर्व का विशेष महत्व है। वरुथिनी एकादशी का महत्व खुद भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया था। इस व्रत को यदि विधि-विधान से किया जाता है तो जातक को सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए शुभ अवसर माना जाता है।
वैशाख मास भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए इस मास में पड़ने वाली एकादशी का महत्व भी बहुत खास होता है। मान्यता है कि धन की कमी को पूरा करने के लिए वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से बहुत लाभ होता है।
वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वराह स्वरूप की पूजा की जाती है। इस एकादशी के व्रत से भक्तों के सभी पाप और दुख दूर होते हैं। माना जाता है कि सूर्य ग्रहण के समय दान-पुण्य करने से जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य वरुथिनी एकादशी के व्रत और इस दिन दान करने से मिलता है। भगवान विष्णु की कृपा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और कार्यों में आ रही बाधाएं दूर होती हैं।
ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा ने बताया कि वरुथिनी एकादशी व्रत को करने से भगवान विष्णु के सभी अवतार प्रसन्न होते हैं। इस व्रत को करने से व्रती को जीवन में कभी धन की कमी नहीं होती है। कर्ज से मुक्ति मिलती है और परिवार में संपन्नता आती है।
वरुथिनी एकादशी पर श्री हरि की पूजा होती है। इस दिन का भक्तों के बीच बहुत महत्व है।
वरूथिनी एकादशी को वैशाख एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग देवताओं को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए उपवास करते हैं। वरुथिनी का अर्थ है सुरक्षा। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त इस उपवास को रखते हैं उन्हें नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है।
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ज्योतिषाचार्या एवं टैरो कार्ड रीडर नीतिका शर्मा ने बताया कि एकादशी के दिन मांस मदिरा के अलावा अन्य किसी भी प्रकार की नशीली और तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
साथ ही एकादशी के दिन चावल का सेवन वर्जित माना गया है, इसलिए इस दिन यदि व्रत नहीं भी रखा तो भी चावल का सेवन न करें। इस दिन क्रोध करने से बचें।
साथ ही किसी के लिए भी अपशब्दों का प्रयोग न करें। इसके अलावा एकादशी तिथि पर पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा ने बताया कि वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 23 अप्रैल को शाम में 4:44 बजे होगा और एकादशी तिथि का समापन 24 अप्रैल को दोपहर में 2:31 बजे होगा। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार, उदय काल में तिथि होने पर ही व्रत करना उत्तम रहता है। इसलिए वरुथिनी एकादशी का व्रत 24 अप्रैल को किया जाएगा।
ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा ने बताया कि वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ धन की देवी माता लक्ष्मी की भी पूजा करना चाहिए। वरुथिनी एकादशी के महत्व के बारे में खुद भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया था। इस व्रत को करने से कन्यादान के समान पुण्य मिलता है। पौराणिक मान्यता है कि राजा मान्धाता को वरुथिनी एकादशी व्रत करके ही स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी।
1.ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा ने बताया कि वरुथिनी एकादशी पर सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं।
2. जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग करना चाहिए।
3. घर के मंदिर में गणेश पूजा करें, गणेश जी को जल और पंचामृत से स्नान कराएं।
4. वस्त्र-हार-फूल से श्रृंगार करें, चंदन का तिलक लगाएं, दूर्वा अर्पित करें, लड्डू का भोग लगाएं, धूप-दीप जलाएं, श्री गणेशाय नम: मंत्र का जप करें।
5.गणेश पूजा के बाद भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की पूजा करें, विष्णु-लक्ष्मी का दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करना चाहिए। अभिषेक में दूध का इस्तेमाल करेंगे तो बहुत शुभ रहेगा।
6. हार-फूल और वस्त्रों से श्रृंगार करें, इसके बाद मिठाई का भोग तुलसी के साथ लगाएं। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें, धूप-दीप जलाकर आरती करें।
7. शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़े फूलों से श्रृंगार करें, शिवलिंग पर चंदन का लेप लगाएं। मिठाई का भोग लगाएं और दीपक जलाएं।
8. शिव जी के सामने राम नाम का जप करना चाहिए।
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1. ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा ने बताया कि इस दिन शंख, चक्र, कमल, गदा एवं पीताम्बरधारी भगवान विष्णु की रोली, मोली, पीले चन्दन,अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए और साथ ही यथाशक्ति श्री विष्णु के मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करते रहना चाहिए।
2. इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है।
3. भक्तों को परनिंदा, छल-कपट,लालच,द्धेष की भावनाओं से दूर रहकर,श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए।
4. द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।
Updated on:
24 Apr 2025 11:02 am
Published on:
22 Apr 2025 10:06 pm
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