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जम्मू कश्मीर में नमाज के बाद बवाल, हजरतबल दरगाह में तोड़ा अशोक स्तंभ

श्रीनगर की हजरतबल दरगाह एक बार फिर चर्चा में है। ईद-ए-मिलाद के मौके पर शुक्रवार को यहां एक बड़ी घटना सामने आई। दरगाह के बाहर लगाए गए एक नवनिर्मित शिलापट्ट को कुछ लोगों ने तोड़ दिया। इसके बाद माहौल तनावपूर्ण हो गया।

वक्फ बोर्ड ने हाल ही में करोड़ों रुपये खर्च करके दरगाह का जीर्णोद्धार कराया था। इस दौरान एक उद्घाटन शिलापट्ट भी लगाया गया, जिस पर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक – अशोक स्तंभ उकेरा गया था। लेकिन इसी प्रतीक चिन्ह को लेकर विवाद खड़ा हो गया। जुमे की नमाज के बाद बड़ी संख्या में लोग शिलापट्ट के पास जमा हो गए। नाराजगी जताई गई, वक्फ बोर्ड के खिलाफ नारे लगे और पत्थरबाजी तक हुई। उद्घाटन शिलापट्ट पर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ के इस्तेमाल को लेकर कुछ लोगों ने आपत्ति जताई। नेशनल कॉन्फ्रेंस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे धार्मिक भावनाओं के साथ छेड़छाड़ बताया। PDP नेता इल्तिजा मुफ्ती ने आरोप लगाया कि मुस्लिम समुदाय को जानबूझकर उकसाया जा रहा है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी सवाल उठाया। उनका कहना था कि धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीक लगाने की परंपरा नहीं रही है। जब दरगाह का जीर्णोद्धार ही किया गया था, तो क्या सिर्फ वही काफी नहीं था? पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा, कि…जिन लोगों ने भावनाओं में बहकर तोड़फोड़ की और वे प्रतीक के खिलाफ नहीं हैं…यह कहना सही नहीं है कि इन लोगों को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया जाना चाहिए और वे आतंकवादी हैं…यह हमारे लिए ईशनिंदा है…जिम्मेदार लोगों, विशेष रूप से वक्फ बोर्ड के खिलाफ धारा 295-ए के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए…” वहीं, जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की चेयरपर्सन दरख्शां अंद्राबी ने इस घटना को संविधान पर हमला बताया। उन्होंने शिलापट्ट तोड़ने वालों को “उपद्रवी और आतंकी” करार दिया। साथ ही यह भी कहा कि अगर इन लोगों पर एफआईआर नहीं होती, तो वह भूख हड़ताल पर जाएंगी।

हजरतबल दरगाह जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों का एक बेहद पवित्र स्थल माना जाता है। यहां पैगंबर मोहम्मद का एक बाल रखा गया है, जिसे मुई-ए-मुकद्दस कहा जाता है। इसे खास मौकों पर आम जनता को दिखाया जाता है। माना जाता है कि यह बाल 1699 ईस्वी में यहां लाया गया था। दरगाह की शुरुआत 17वीं सदी में एक बाग और हवेली के रूप में हुई थी, जिसे कश्मीर के तत्कालीन गवर्नर सुलेमान शाह ने बनवाया था। बाद में मुगल बादशाह शाहजहां के बेटे दाराशिकोह ने इसे एक मस्जिद में बदलवाया।

बता दें कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 124 के तहत, राष्ट्रीय प्रतीकों – जैसे ध्वज, गान, संविधान या प्रतीक चिन्ह – का अपमान करना अपराध है। इसके लिए 3 साल तक की जेल, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है – क्या धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीकों का इस्तेमाल उचित है? और अगर इसका विरोध होता है, तो क्या वह धार्मिक भावनाओं से जुड़ा मामला है या संविधान विरोधी हरकत? फिलहाल प्रशासन इस मामले की जांच कर रहा है, लेकिन यह साफ है कि हजरतबल जैसी ऐतिहासिक और संवेदनशील जगह पर इस तरह का विवाद कई स्तरों पर चर्चा का विषय बन गया है।

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