नागौर. राजस्थान सरकार की बहुप्रचारित टाउनशिप योजना नागौर जैसे जिलों में सिर्फ कागजों में सजी रह गई। कॉलोनियों के सुनियोजित विकास, चौड़ी सडक़ों, पार्क, जल निकासी, स्ट्रीट लाइट और मूलभूत ढांचे के दावे ज़मीन पर उतर नहीं पाए। मानसून में कॉलोनियां जलमग्न होती हैं। हालात यह हैं कि कई इलाकों में अब भी पक्की व्यवस्थित सडक़ें तक नहीं हैं। यही नहीं, कई जगहों पर तो स्ट्रीट लाइटें भी बंद रहती हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह योजना सिर्फ बजट दिखाने और भाषणों तक ही सीमित रही है।
घोषणाएं गूंजती रहीं, ज़मीन पर सन्नाटा
टाउनशिप योजना की घोषणा में वादा किया गया था कि जिलों में आधुनिक कॉलोनियां बसेंगी। इसमें योजनाबद्ध आवासीय निर्माण, मजबूत पेयजल लाइन, जल निकासी तंत्र, हरे-भरे पार्क, रोशन स्ट्रीट लाइट्स और सामुदायिक भवन तक शामिल थे। जबकि आज भी नागौर की अधिकांश कॉलोनियों में न तो ड्रेनेज सिस्टम है, न ही बेहतर सफाई व्यवस्था। कई स्थानों पर तो कॉलोनी का स्वरूप भी पूरी अधूरा है। इसके बाद भी कागजी दावों में जिम्मेदार शेर बने हुए हैं।
नागौर की कॉलोनियां बेहाल
शहर के कई क्षेत्रों में अभी तक नालियां नहीं बनीं। कुछ स्थानों पर तो मानसून में पानी घरों तक घुस जाता है। विकास के नाम पर यहां सिर्फ बोर्ड लगे हैं, लेकिन काम अधूरे हैं। कॉलोनियों में पार्कों की स्थिति भी दयनीय है — कुछ जगह तो नाममात्र के पार्क हैं, जिनमें झूले तक नहीं लगे और घास उगी नहीं। नगर परिषद क्षेत्र में ’शिवाजी कॉलोनी, श्रीराम कॉलोनी, जंभेश्वर कॉलोनी, राजपूत कॉलोनी आदि जगहों की स्थिति को देखकर हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन क्षेत्रों में उखड़ी सडक़ें, जल निकासी कोई व्यवस्था तक नहीं है। कचरे का उठाव ही कई दिनों तक नहीं होता है। अन्य क्षेत्रों में सुगन सिंह सर्किल से लेकर नया दरवाजा से बंशीवाला मंदिर, काठडिय़ा का चौक, बाठडिय़ा का चौक, भूरावाड़ी एवं मिश्रावाड़ी सरीखे दर्जनों क्षेत्रों की पड़ताल देखकर सुविधाओं की बदहाली ही बता देती है कि विकास के नाम पर जनता केवल छली गई है।
घोषणाएं होती रही, और जिम्मेदार मौज करते रहे
राजस्थान सरकार ने वर्ष 2002 एवं वर्ष 2010 में में ’शहरीकरण के दबाव को नियंत्रित करने और सुनियोजित विस्तार के लिए’ टाउनशिप नीति लागू की थी। इसके तहत जिला मुख्यालयों पर निजी या सार्वजनिक भागीदारी से विकसित कॉलोनियों में आवश्यक सुविधाएं सुनिश्चित की जानी थीं। इसी वर्ष में गत माह यानि की विगत जुलाई माह में प्रदेश सरकार ने नई टाउनशिप नीति भी घोषित कर दी है। अब इस पर भी अमल होता है या नहीं, क्यों कि पूर्व में घोषित हो चुकी टाउनशिप नीतियां कागजों पर ही उतरी, हकीकत में नहीं।
क्या थी टाउनशिप नीति में यह काम किया जाना था
. नियोजित आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्र
. चौड़ी सडक़ें और जल निकासी व्यवस्था
. पेयजल आपूर्ति की मजबूत पाइपलाइन
पार्कए सामुदायिक भवन और सार्वजनिक शौचालय
स्ट्रीट लाइट और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
नागौर की कॉलोनियों की सुविधाओं पर एक नजर
.अधिकांश जगहों पर आज तक निर्धारित मादण्ड के तहत ड्रेनेज लाइन नहीं डाली गई, जहां डाली है, वहां पर कइयों को कनेक्शन तक नहीं दिए गए
.सडक़ें या तो अधूरी हैं या सालों से उखड़ी पड़ी हैं।
.स्ट्रीट लाइटें लंबे समय से खराब हैं या लगाए ही नहीं गए।
.पार्क नाम के हैं, लेकिन देखरेख के अभाव में बदहाल हैं।
. बारिश में जलभराव इतना होता है कि घरों में पानी घुस जाता है।
जनता का आक्रोश
स्थानीय निवासी सीताराम का कहना है प्लॉट खरीदते समय बताया गया था कि कॉलोनी योजना के तहत विकसित होगी। लेकिन ना पार्क है, और न ही लाइट,। बरसात में घुटनों तक पानी भर जाता है। इसी तरह ’जगराम जाखड़ बताते हैं कि बच्चों के खेलने के लिए पार्क तक नहीं बना। कचरा हर गली में फैला है। हम टैक्स जरूर देते हैं लेकिन सुविधा कुछ नहीं।
तो आज नागौर की यह हालत नहीं होती…
स्थानीय निकाय के तहत कुल 60 वार्ड हैं। इसको लेकर कई पार्षदों ने भी नगरपरिषद पर विकास नहीं करने के आरोप लगाए हैं। पार्षदों में गोविंद कड़वा, मुजाहिद, धर्मेन्द्र पंवार एवं मनीष कच्छावा का आरोप है कि शहर को टाउनशिप योजना के तहत विकसित किया जाता तो आज नागौर की यह हालत नहीं होती।
प्रशासन को यह करना चाहिए ….
प्रशासन को चाहिए कि ’सभी लंबित टाउनशिप परियोजनाओं की स्थिति सार्वजनिक करे’।
नगर परिषद को सप्ताहवार प्रगति रिपोर्ट’ जारी करनी चाहिए।
जन सुनवाई तंत्र से आमजन की भागीदारी सुनिश्चित की जाए
नगरपरिषद में समस्याओ के समाधान के लिए कंट्रोल रूप बनना चाहिए। इसमें शिकायतों के निस्तारण के लिए संबंधित अधिकारियों एवं जिम्मेदारों को निर्धारित अवधि में समाधान का विकल्प देना चाहिए। समाधान नहीं करने वालों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए।
नागौर शहर में विकास की एक झलक दिखाती सडक़
तो आज नागौर की यह हालत नहीं होती…
स्थानीय निकाय के तहत कुल 60 वार्ड हैं। इसको लेकर कई पार्षदों ने भी नगरपरिषद पर विकास नहीं करने के आरोप लगाए हैं। पार्षदों में गोविंद कड़वा, मुजाहिद, धर्मेन्द्र पंवार एवं मनीष कच्छावा का आरोप है कि शहर को टाउनशिप योजना के तहत विकसित किया जाता तो आज नागौर की यह हालत नहीं होती।