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जंगल उजाड़ने वालों को दे रहे शह : आदिवासी

जिले में कट रहे जंगल को बचाने आदिवासी कोरकू समाज आगे आया हैं। इन्होंने आरोप लगाया कि टास्क फोर्स समिति अतिक्रमण कारियों को शह देकर पट्टा देने आ रही है, जबकि वे जंगल को उजाडऩे वाले हैं। इधर, टास्क फोर्स समिति सदस्यों का कहना था कि हम तो जंगल बचाने और सामुदायिक वनाधिकार कानून में आ रही समस्या को सुलझाने आए।

पट्टा देने नहीं, जंगल बचाने आए हैं : टास्क फोर्स

जिला न्यायालय परिसर के पास गुरुवार सुबह 11 बजे से गुड़ी वन परिक्षेत्र के कोरकू समाज के 11 गांवों के 200 से अधिक आदिवासी रैली निकालकर कलेक्ट्रेट पहुंचे। रैली में अधिंकाश महिलाएं व पुरुष हाथ में बैनर लिए हुए थे। कलेक्ट्रेट में ज्ञापन लेने जब कोई अधिकारी नहीं आया तो वहीं धरने पर बैठ गए । करीब एक घंटे बाद तहसीलदार महेश सोलंकी को उन्होंने मुयमंत्री के नाम ज्ञापन दिया। इसके बाद सर्किट हाउस में टास्क फोर्स सदस्यों के सामने अपनी बात रखी। अतिक्त्रस्मण कारियों का पट्टे नहीं देने पर ग्रामीण अड़े रहे। सदस्यों ने कहा कि वे पट्टा देने नहीं आए हैं। रैली में वनग्राम बोरखेड़ा, बामंदा, भिलाई, गुजरी , तालियधड़, सरमेश्वर आड़ा खेड़ा, हंडिया, नहारमाल, टाकलख़ेड़ा सहित आसपास के गांव के आदिवासी शामिल हुए।

बाहरी व कुछ स्थानीय लोग काट रहे जंगल

कोरकू समाज के लोगों का कहना है कि आज वे जंगल के अंदर जाने से डरते हैं। उन्हें देखते ही अतिक्रमणकारी पत्थर चलाते थे। महिलाएं भी पथराव कर देती है। इस वजह से वे जंगल से लकड़ी लाने व पशुओं को चराने भी नहीं जा पा रहे हैं। अतिक्रमण करने वाले जिले के बाहर से आए है।

हम समस्या को समझने आए

टास्क फार्स के सदस्य शरदचंद लेले, कालूसिंग मुजाल्दा, मिलिंद दांडेकर, मिलिंद थेटे, पूर्व विधायक राम दांगोरे दो दिन का खंडवा व बुरहानपुर का दौरा किया। सदस्यों का कहना है कि जिले में वनाधिकार कानून में व्यक्तिगत कामों में ध्यान दिया है। अब सरकार ने निर्णय लिया है कि अब जंगल के संरक्षण, पुर्नजीवन और प्रबंधन पर काम हो। इसी के साथ वन ग्रामों का राजस्व ग्रामों में परिवर्तन को लेकर 2022 से प्रक्रिया शुरू है। इसमें क्या समस्या आ रही है उसे समझने आए हैं।

2005 के पहले बसे को ही पट्टा

टास्क फोर्स के सदस्य वैज्ञानिक शरद चंद लेले ने कहा वर्ष 2005 के पहले जो जंगल में बसे हैं उन्हें कानून के तहत पट्टा मिलना चाहिए। इसके बाद बसने वाले वह चाहे 2010 में हाल में बसे हो उनको पट्टे मिलना संभव नहीं है। आज जो लोग आए थे उनकी चिंताएं सही है, आज भी जंगल कट रहे है। जो लोग आए थे उनको सबसे पहले कानून की समझ बनाना जरूरी है। जो जंगल बचाना चाहता है उनको कहेंगे कि धारा 3 (1 ) घ के अंतर्गत सामुदायिक वन प्रबंधन का अधिकार मिलना चाहिए। गांव वालों को इसकी मांग करना चाहिए।

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