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हुबली

लहरिया महोत्सव: कर्नाटक में साकार हुई राजस्थानी संस्कृति, परंपरागत लहरिया वेशभूषा में महिलाएं रहीं आकर्षण का केन्द्र

कर्नाटक में निवास कर रही राजस्थान मूल की महिलाओं ने राजस्थान की समृद्ध लोक संस्कृति को नए रंग में पेश किया। अवसर था लहरिया महोत्सव का, जहां रंग-बिरंगी लहरियों में सजी-धजी महिलाएं राजस्थानी लोकगीतों पर थिरकती नजर आईं। हुब्बल्ली (कर्नाटक) में आयोजित लहरयिा महोत्सव के दौरान घूमर नृत्य की लय और लोकधुनों की गूंज ने महोत्सव को राजस्थान की यादों से भर दिया।

घूमर नृत्य की बेहतरीन प्रस्तुति
सावन लहरिया उत्सव हुब्बल्ली (कर्नाटक) की मेजबानी में यहां हुब्बल्ली के केशवापुर इलाके में आयोजित लहरिया महोत्सव में कर्नाटक में राजस्थान की संस्कृति की अनोखी झलक देखने को मिली। प्रवासी समाज की महिलाओं द्वारा आयोजित इस महोत्सव में पारंपरिक लहरिया परिधान और आभूषण पहने महिलाओं ने राजस्थानी गीतों पर शानदार प्रस्तुतियां दीं। महोत्सव की शुरुआत गणेश वंदना से हुई और इसके बाद महिलाओं ने घूमर नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी, जिसने सभी का दिल जीत लिया। महोत्सव के दौरान महिलाओं के लिए अलग-अलग प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया। इन प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया। सामूहिक नृत्य और समूह प्रस्तुति में महिलाओं का उत्साह देखने लायक था।महोत्सव की थीम थी- रंग-रंगीलो लहरियो। शहर के विभिन्न इलाकों से आईं महिलाएं लहरिया और पारंपरिक गहनों में सजी-धजी नजर आईं। लोकगीतों और सावन के गीतों पर प्रस्तुतियों ने महोत्सव को और भी जीवंत बना दिया। महोत्सव में शामिल महिलाओं ने बताया कि इसका उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि राजस्थानी संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाना और महिला सशक्तिकरण को मंच प्रदान करना भी है। लुप्त होती परंपराओं को जीवंत रखने और समाज को अपनी जड़ों से जोड़े रखने के लिए इस तरह के आयोजनों की आवश्यकता पर भी बल दिया गया। राजस्थान मूल की वनीता देवड़ा सवराटा ने कहा, राजस्थान का घूमर एक प्रसिद्ध नृत्य है। इस पर महिलाओं ने बेहतरीन नृत्य प्रस्तुत कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ा दी। राजस्थानी पहनावा हर किसी को अलग और आकर्षक बनाता है। राजस्थान का खान-पान, वेशभूषा और रीति-रिवाज अपने आप में अनूठे हैं। यहां की मीठी बोली हर आगंतुक को अपना बना लेती है। राजस्थान मूल की दीक्षिता राठौड़ सांगाणा ने कहा, राजस्थान के लोकनृत्य और लोककलाएं अपने आप में मिसाल हैं। राजस्थान की मेहमाननवाजी की कोई तुलना नहीं है। यहां के पहनावे में खासकर राजपूती पोशाक अपनी शान और गौरव को दर्शाती है। राजस्थान वीरों की धरती रही है और आज भी इसकी झलक हर कला और संस्कृति में दिखाई देती है।