कर्नाटक के हुब्बल्ली में आयोजित राजस्थान पत्रिका परिचर्चा में विचार रखते गुर्जर समाज के लोग।
परिचर्चा के दौरान गुर्जर समाज के लोगों ने कहा कि गुर्जर समाज के आराध्य देवनारायण भगवान न केवल गायों के रक्षक थे बल्कि वे असहायों की सेवा के लिए भी सदैव तत्पर रहे। देवनारायण पराक्रमी योद्धा थे जिन्होंने अत्याचारी शासकों के विरूद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध किए। वे शासक भी रहे। परिचर्चा के प्रारम्भ में राजस्थान पत्रिका हुब्बल्ली के संपादकीय प्रभारी अशोक सिंह राजपुरोहित ने भगवान देवनारायण की जीवनी पर प्रकाश डाला।
देवनारायण का प्रिय था लीलाधर घोड़ा
उत्तर कर्नाटक गुर्जर समाज के अध्यक्ष बल्लारी प्रवासी दुर्गाराम चांदेला मालपुरिया कला ने कहा, भगवान देवनारायण हमारे आराध्य देव है। राजस्थान के आसींद से सात किलोमीटर दूर मालासेरी की डूंगरी में भगवान देवनारायण का अवतार हुआ था। उसी के पास गुर्जर समाज का सवाई भोज मंदिर स्थित है। भगवान देवनारायण ने घोड़े को भी अपना स्वरूप माना। भगवान देवनारायण ने मालासेरी की पहाड़ी में कमल के फूल में अवतार लिया। उक्त घोड़ा भगवान देवनारायण को अत्यंत प्रिय था। उन्होंने इसका नाम लीलाधर रखा था। इसी कारणवश गुर्जर समाज जन छठ पर देवनारायण के साथ-साथ घोड़े का भी जन्म दिवस मनाता आ रहा है। देवनारायण राजस्थान के एक लोक देवता, शासक और महान योद्धा थे। इनका भव्य मंदिर आसीन्द में है।
भगवान विष्णु की घोर तपस्या
हरिहर (दावणगेरे) प्रवासी चन्द्राराम बगड़वाल मालपुरिया कला ने कहा, संवत 968 के पूर्व जब बगड़ावत भाइयों का पतन हुआ तो उनके कुल को आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं बचा, इसलिए बगड़ावत भाइयों में सबसे बड़े सवाई भोज की पत्नी माता साडू द्वारा भगवान विष्णु की घोर तपस्या की गई, विष्णु भगवान द्वारा उन्हें आशीर्वाद दिया गया कि वे पहाड़ों को चीर कर कमल के फूल में आपके आंगन मैं अवतार लेंगे।
कष्टों का किया निवारण
रायचूर प्रवासी लक्ष्मणराम कोली मेव की ढाणी ने कहा, देवनारायण को विष्णु के अवतार के रूप में गुर्जर समाज द्वारा लोकदेवता के रूप में पूजा की जाती है। उन्होंने लोगों के दु:ख व कष्टों का निवारण किया। देवनारायण महागाथा में बगडावतों और राण भिणाय के शासक के बीच युद्ध का रोचक वर्णन है।
अंतिम समय ब्यावर के पास रहे
हुब्बल्ली प्रवासी मदन चाड़ मालपुरिया कला ने कहा, देवनारायण का अन्तिम समय ब्यावर तहसील के मसूदा से 6 किमी दूरी पर स्थित देहमाली स्थान पर गुजरा। भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को उनका वहीं देहावसान हुआ। देवनारायण से पीपलदे द्वारा सन्तान विहीन छोड़कर न जाने के आग्रह पर बैकुण्ठ जाने से पूर्व पीपलदे से एक पुत्र बीला व पुत्री बीली उत्पन्न हुई। उनका पुत्र ही उनका प्रथम पुजारी हुआ।
गायों के रक्षक
कुष्ठगी (कोप्पल) प्रवासी सोहन चाड़ मालपुरिया कलां ने कहा, कृष्ण की तरह देवनारायण भी गायों के रक्षक थे। उन्होंने बगड़ावतों की पांच गायें खोजी, जिनमें सामान्य गायों से अलग विशिष्ट लक्षण थे। देवनारायण प्रात:काल उठते ही सरेमाता गाय के दर्शन करते थे। यह गाय बगड़ावतों के गुरू रूपनाथ ने सवाई भोज को दी थी। देवनारायण के पास 98000 पशु धन था। जब देवनारायण की गायें राण भिणाय का राणा घेर कर ले जाता तो देवनारायण गायों की रक्षार्थ राणा से युद्ध करते हैं और गायों को छुड़ाकर लाते थे।
ग्वालों की संख्या अधिक
इलकल (बागलकोट) प्रवासी प्रकाश चाड़ मालपुरिया कला ने कहा, देवनारायण की सेना में ग्वाले अधिक थे। 1444 ग्वालों का होना बताया गया है, जिनका काम गायों को चराना और गायों की रक्षा करना था। देवनारायण ने अपने अनुयायियों को गायों की रक्षा का संदेश दिया।
कई जगह बने हैं देवालय
सिरिगुप्पा (बल्लारी) प्रवासी रमेश पोसवाल मेव की ढाणी ने कहा, देवनारायण ने जीवन में बुराइयों से लड़कर अच्छाइयों को जन्म दिया। हर असहाय की सहायता की। राजस्थान में जगह-जगह इनके अनुयायियों ने देवालय अलग-अलग स्थानों पर बनवाये हैं जिनको देवरा भी कहा जाता है। ये देवरे अजमेर, चित्तौड़, भीलवाड़ा व टोंक में काफी संख्या में है। देवनारायण का प्रमुख मन्दिर भीलवाड़ा जिले में आसीन्द कस्बे के निकट खारी नदी के तट पर महाराजा सवाई भोज में है।
लोकप्रिय है देवनारायण की फड़
सिरिगुप्पा (बल्लारी) प्रवासी नरेन्द्र गुर्जर मंडली ने कहा, देवनारायण की पूजा भोपाओं द्वारा की जाती है। ये भोपा विभिन्न स्थानों पर जाकर लपेटे हुये कपड़े पर देवनारायण की चित्रित कथा के माध्यम से देवनारायण की गाथा गाकर सुनाते हैं। देवनारायण की फड़ में 335 गीत हैं जिनका लगभग 1200 पृष्ठों में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15000 पंक्तियां हैं। ये गीत परम्परागत भोपाओं को कण्ठस्थ रहते हैं। देवनारायण की फड़ राजस्थान की फड़ों में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सबसे बड़ी है।
सुनी जाती है देवनारायण की गाथाएं
हुब्बल्ली प्रवासी किशन चाड़ मालपुरिया कला ने कहा, कलयुग के प्रथम चरण में भगवान विष्णु ने विक्रम संवत 968 में मालासेरी डूंगरी में पहाड़ चीरकर कमल के फूल में देवनारायण के रूप में अवतरित हुए थे और भगवान देवनारायण ने जन कल्याण के लिए सभी जातियों का उद्धार किया। आज भी पूरे देश और विश्वभर में भगवान देवनारायण की गाथाएं सुनाई जाती हैं।
Published on:
29 Aug 2025 09:02 pm
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