शिव की क्रोधाग्नि का विग्रह रूप कहे जाने वाले कालभैरव का अवतरण मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी को हुआ। इनकी पूजा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा, जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि का भय नहीं रहता। शिव पुराण में कहा गया है कि कालभैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं। कालभैरव बनारस के कोतवाल कहे जाते हैं। इनके कई रूप हैं। जो बनारस में कई जगह स्थापित   हैं। इनके अलग अलग नाम हैं। कालभैरव, आसभैरव, बटुक भैरव, आदि भैरव, भूत भैरव, लाट भैरव, संहार भैरव, क्षत्रपाल भैरव। कहा जाता है कि रविवार और मंगलवार को इनका दर्शन करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
बनारस में आने वाला कोई भी अधिकारी सबसे पहले इनका दर्शन किए बिना इनके आशीर्वाद के कोई काम शुरू नहीं करता। ऐसा माना गया है कि बनारस में रहना है तो बनारस के कोतवाल का दर्शन करना अच्छा होता है। और तो और भौरो नाथ के लिए प्रसाद सोचना नहीं होता ये ऐसे देवता हैं जिन्हें सब पसंद है। चाहे वह टॉफी, बिस्किट, मिठाई या दारू से लेकर गांजा भांग। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनका दर्शन किये वगैर विश्वनाथ का दर्शन अधूरा रहता है।
<strong>भैरव के रूप इन जगहों पर है स्थापित</strong>
कालभैरव विशेश्वरगंज, आस भैरव नीचीबाग, बटुक भैरव व आदि भैरव कमच्छा, भूत भैरव नखास, लाट भैरव कज्जाकपुरा, संहार भैरव मीरघाट और क्षत्रपाल भैरव मालवीय मार्केट में स्थित है।